Surjit Singh
क्या आपने कभी सोचा है, या समझने की कोशिश की है, कि ये जो सब सामान महंगा मिल रहा है, इसके लिये जिम्मेदार कौन है. पेट्रोल-डीजल की कीमत में बड़ी बढ़ोतरी, सरकार के स्तर पर लगाया जाने वाला टैक्स या फिर कुछ और है बड़ी वजह. जी हां, सब महंगा होने के पीछे की एक बड़ी वजह दूसरी भी है. जिसे बड़ी होशियारी से छिपाया जा रहा है. छिपाने में सारे राजनीतिक दल शामिल हैं.
हाल ही में इकोनॉमिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (Economic Policy Institute) का एक अध्ययन (https://www.epi.org/blog/corporate-profits-have-contributed-disproportionately-to-inflation-how-should-policymakers-respond/) प्रकाशित हुआ है. इसके मुताबिक, महंगाई बढ़ने की एक बड़ी वजह कॉरपोरेट पूंजी का मुनाफा है. या यूं कहें मुनाफे की हवस है. वो वही कॉरपोरेट, जो सरकार की गोद में बैठा रहता है. अध्ययन के मुताबिक, किसी भी सामान के दाम में मुनाफे का 54 प्रतिशत हिस्सा कॉरपोरेट को मिलता है. जबकि मजदूरों को सिर्फ 7.9 प्रतिशत.
मुनाफे का सिर्फ 7.9 प्रतिशत हिस्सा मेहनत करने वाले मजदूरों को मिलने की बात से यह भी स्पष्ट होता है कि बढ़ती महंगाई के बीच मिडिल क्लास और कमजोर वर्ग के लिये आने वाला समय कितना भयावह होगा. मालिक और मजदूरों के बीच मुनाफे के बंटवारे का यह सबसे खराब दौर है. शायद ही किसी काल में मजदूरों को इतना कम और कॉरपोरेट को इतना अधिक मुनाफा मिला हो. इस स्थिति के लिये सरकार में बैठे वो लोग जिम्मेदार हैं, जो नीतियां बनाते हैं. नीति बनाते वक्त सिर्फ कॉरपोरेट का ख्याल रखते हैं.
अगर सरकार महंगाई पर काबू पाना चाहती है तो कॉरपोरेट को काबू में लाना होगा. जो कि आज के दौरान में देश में संभव नहीं दिखता. मोदी सरकार में जिस तरह कॉरपोरेट फल-फुल रहे हैं, जिस तरह लेबर लॉ से लेकर तमाम तरह के कानून कॉरपोरेट की सुविधा और फायदे के हिसाब से तय किये गये हैं, उससे यह साफ संदेश है कि सरकार की चिंता कॉरपोरेट (उद्योगपतियों) का मुनाफा बढ़ाना है, ना कि मजदूरों को फायदा पहुंचाने या महंगाई को काबू करने की. तभी हमें यह देखने को मिल रहा है कि उद्योगपतियों की संपत्ति तो दिन-दुनी और रात चौगुनी बढ़ रही है और देश में गरीबों की संख्या उससे भी तेजी से बढ़ रही है. हालात कितने खराब हैं, यह इस तथ्य से ही समझ सकते हैं कि देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों के पास खाने के लिये अनाज तक नहीं है.