Ranchi : जिला परिषद की ओर से सौंपे गए भवनों की बात को फिलहाल छोड़ भी दिया जाए, लेकिन रेमडिसिविर इंजेक्शन और आयुष्मान योजना के मामले में हजारीबाग जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. खुद सिविल सर्जन डॉ. सरयू प्रसाद सिंह ने कहा था कि तीन दिनों के अंदर जांच रिपोर्ट उन्हीं के स्तर से गठित टीम से मांगी गई है. आज दिन तीन तो क्या, सप्ताह भर से अधिक की अवधि गुजर गई, लेकिन कार्रवाई तो दूर की बात, जांच भी पूरी नहीं हो पायी है. यह ‘शुभम संदेश’ नहीं, खुद हजारीबाग के सिविल सर्जन कह रहे हैं. जब उनसे जांच के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने गोलमटोल जवाब दिया. कहा कि रेमडिसिविर के मामले में तो डीसी स्तर से ही कार्रवाई हो सकती है. आयुष्मान मामले में पीड़ित पक्ष सीधा स्वास्थ्य सचिव से लेकर पीएमओ पोर्टल तक चला गया. अगर आयुष्मान कार्ड से उनका इलाज नहीं हुआ था और पूरा भुगतान अस्पताल ने करा लिया था, तो उन्हें पहले सिविल सर्जन और डीसी से शिकायत करनी चाहिए थी. सिविल सर्जन ने कहा कि इधर आरोग्यम अस्पताल प्रबंधन का कहना था कि उन्हें आयुष्मान कार्ड दिया ही नहीं गया. तो यह दोनों के आपस की बात है. यहां सनद रहे कि बैजनाथ महतो ने तब डीसी से जनता दरबार में इस बात की शिकायत की थी. लेकिन किसी प्रकार का संज्ञान नहीं लिया गया था. सिविल सर्जन ने यह भी कहा कि दोनों मामले में अभी जांच पूरी नहीं हुई है.
सवालों में घिरा जिला प्रशासन, आखिर कार्रवाई के लिए इतनी मोहलत क्यों ?
वह एचबीजेड आरोग्यम सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल हजारीबाग में रेमडिशिविर की कालाबाजारी पर उठे सवाल हों या विष्णुगढ़ के बैजनाथ महतो से जुड़ा आयुष्मान योजना का मामला हो. दोनों मामलों में अब तक कोई कार्रवाई नहीं होना, कुछ अलग ही माजरा बयां कर रहा है. चर्चा-ए-आम तो यहां तक है कि पिछली बार की तरह इस बार भी जिला प्रशासन तमाशबीन बना हुआ है. साक्ष्य मिटाने के लिए तो कहीं जांच में विलंब नहीं किया जा रहा है. चूंकि मीडिया में खबर आने के बाद जांच में विलंब होने के बीच कुछ भी किया जा सकता है. आरोपों के कटघरे में घिरे स्वास्थ्य संस्थान पर कार्रवाई के लिए आखिर इतनी मोहलत क्यों दी जा रही है. जबकि सरकार ने खासकर रेमडिसिविर के मामले में तत्काल प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई का आदेश भी जारी किया था. तत्कालीन डीसी आदित्य आनंद ने तो पूरे मामले को ही ठंड बस्ते में डाल दिया था, लेकिन अब क्या परेशानी है.
सरकार के आदेश पर कार्रवाई होनी चाहिए : स्वास्थ्य सचिव
स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार सिंह से जब आरोग्यम से जुड़े रेमडिशिविर और आयुष्मान योजना के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश पर कार्रवाई होनी चाहिए. पिछले डीसी ने नहीं किया, तो वर्तमान डीसी को कार्रवाई करनी चाहिए. चूंकि दोनों मामलों में स्वास्थ्य सचिव के स्तर से ही कार्रवाई का आदेश दिया गया है, तो उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से किसी व्यक्ति विशेष को कार्रवाई के लिए तो लिखा नहीं जाता है. डीसी एक पद है और उस पद पर जो भी अधिकारी बैठे हैं, उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए.
मामले पर ईडी की भी नजर
आरोग्यम अस्पताल को लेकर जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं और जिस तरह राज्य सरकार के आदेश के बाद भी हजारीबाग जिला के अधिकारी अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, इस पर केंद्रीय एजेंसी इंफोर्समेंट डाइरेक्टोरेट (ईडी) की भी नजर है. ईडी की दिलचस्पी की वजह यह बताई जा रही है कि रेमडिसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी की जांच उसे ही करनी है. रेमडिसिविर इंजेक्शन को लेकर सरकार के स्तर से आरोग्यम अस्पताल हजारीबाग के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया गया. लेकिन हजारीबाग जिला प्रशासन ने प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई. उस वक्त आदित्य आनंद डीसी के पद पर थे. मीडिया में खबर आने के बाद वर्तमान डीसी ने ‘शुभम संदेश’ को बताया था कि कार्रवाई होगी. लेकिन अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं करायी गई है. अगर आरोग्यम के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होती है, तो मामले की जांच ईडी शुरू कर देगी. ऐसे में प्राथमिकी दर्ज करने में आना-कानी करने वाले हजारीबाग जिला के अधिकारियों से भी यह सवाल पूछा जा सकता है कि आखिर प्राथमिकी दर्ज करने में विलंब क्यों की गई. चूंकि प्राथमिकी दर्ज करने में जितनी देर होगी, आरोपियों को साक्ष्य नष्ट करने का उतना ही वक्त मिलेगा.
अब होली के बाद बोर्ड की बैठक में मामले को उठाएंगे : जिप अध्यक्ष
हजारीबाग जिला परिषद के अध्यक्ष उमेश मेहता ने कहा कि उन्होंने आरोग्यम को सौंपे गए भवनों से संबंधित फाइलें मंगवाई है. उसके अध्ययन से यह साफ पता चला है कि भवनों के हस्तांतरण के मामले में कहीं रजिस्ट्री, डीड या एग्रीमेंट नहीं किया गया है. जिला परिषद की जमीन के नवीकरण के मामले में वर्ष 2008 में डीसी को पत्र लिखा गया था. नवीकरण के लिए कोई जवाब नहीं आने पर पैसे जमा नहीं हुए. उन्होंने माना कि जब जिला परिषद बोर्ड की यह जमीन थी ही नहीं, तो तत्कालीन अध्यक्ष व सचिव को इस मामले को देखना चाहिए था कि कैसे आरोग्यम को तीन-तीन भवन हस्तांतरित कर दिए गए.