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नारी पर अत्याचार, नपुंसकता का परिचायक

Shailendra Mahto मणिपुर जैसी घटनाओं पर विपक्ष द्वारा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाना, विपक्ष अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहता है. देश में जब भी ऐसी आंतरिक या बाहरी स्थिति हो तो सरकार और विपक्ष एक साथ मिलकर आत्मचिंतन और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर एक गहन विश्लेषण की, जनता अपेक्षा करती है. मणिपुर में मानवता को शर्मसार करने वाली नृशंस, हृदय विदारक और घृणा से परिपूर्ण घटना की जितनी भी निंदा और भर्त्सना की जाए कम है. इस घटना के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों, संस्थाओं और समर्थकों को ऐसा दंड दिया जाना चाहिए ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो. यह वस्तुतः देश के स्वाभिमान, सम्मान और गौरव पर सीधा प्रहार है और पूरे देश को एक स्वर से राजनीतिक लाभा- लाभ की चिंता किए बगैर ऐसी घटनाओं में एकजुटता दिखाना ही राष्ट्रभक्ति है. नारी का सम्मान किसी राजनीतिक दल के चुनावी अंकगणित से प्रेरित ना हो अपितु यह मानवता के प्रति समर्पित निष्ठा का विषय है. देश के किसी भी कोने में ऐसी घटना ना हो, इसकी गारंटी सभी राजनीतिक दलों को देनी चाहिए. देश के राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं. किसी के ऊपर एक उंगली उठाते समय अक्सर अपने तरफ तीन उंगलियां होती है. शोर-शराबे से इस तथ्य को छुपाना या झूठलाना अपनी ओछी मानसिकता और दिवालियापन का द्योतक है. महिलाओं पर अत्याचार के मामले देश में भरे पड़े हैं . द्रोपदी सिर्फ पांच पांडवों की पत्नी ही नहीं थी, वह कुरुवंश की कुलवधू भी थी, पंचाल देश की बेटी भी थी, साक्षात भगवान श्री कृष्ण की मुंह बोली बहन थी और भावी भारत का वर्तमान भी थी. किसी दुशासन, दुर्योधन की कापुरुषता को संवर्धित करने वाली आचार्य द्रोण और भीष्म पितामह के निहित स्वार्थ से प्रेरित तटस्थता और मूकदर्शिता के कारण ही महाविनाशकारी और विध्वंसकारी महाभारत का युद्ध हुआ, जिसमें लाखों प्राणों की आहुति दी गई. बेटी मणिपुर की हो या झारखंड की, पश्चिम बंगाल की हो या बिहार , राजस्थान की, देश के किसी भी राज्य की हो या दुनिया के किसी भी हिस्से की हो- वह बेटी है. बेटी देश के भविष्य को अपने गर्भ में पालती है. तथाकथित बुद्धिजीवी, राजनेता, मीडिया कर्मी, शासन-प्रशासन अपने निहित क्षूद्र स्वार्थों से प्रेरित होकर चयनशीलता (सिलेक्टिविटी) दर्शाते हुए मूकदर्शकता, नपुसंकता और कापुरुषता का प्रदर्शन करेंगे तो देश का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. "यत्र नारी पूज्यंते- रमंते तत्र देवता" यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र का मूल मंत्र है. नारी- मां है, देवी है. इसके विपरीत जो भी व्यक्ति, समूह या दल आचरण करते हैं, वे मानवता और राष्ट्रीय अस्मिता को चुनौती दे रहे हैं. हमारा भारतवर्ष विभिन्न संस्कृति, विभिन्न रंग- रूप, विभिन्न भाषा, विभिन्न आचार- विचार का देश है, जहां शांति कायम करना सिर्फ सरकार का ही काम नहीं है बल्कि हम सब सिविल सोसाइटी का भी जिम्मेदारी है. Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं.

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