Saurav Singh
Ranchi: पलामू जिले के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में 8 जून 2015 को हुई कथित पुलिस नक्सली मुठभेड़ के सात साल पूरे हो गये. सात साल बाद भी पता नहीं चल पाया है कि 12 लोगों को किसने मारा है. न ही मारे गए लोगों के परिजनों को इंसाफ मिल पाया है. सीबीआई की टीम अभी तक साक्ष्य संकलन में ही जुटी है. तीन साल से अधिक वक्त बीत जाने के बाद भी CBI ने रिपोर्ट नहीं सौंपी है और न ही कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंच पायी है. पढ़ें – LIC का IPO एशिया का Biggest Loser, निवेशकों के डुबोये 1.80 लाख करोड़
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डॉ आरके के अलावा किसी का कोई नक्सल रिकॉर्ड नहीं था
कथित पुलिस नक्सली मुठभेड़ में मारे गये 12 लोगों को पुलिस ने माओवादी बताया और अपनी पीठ थपथपा ली. शर्मनाक यह रहा कि पुलिस ने इस मुठभेड़ के बदले इनाम भी बांटे. लेकिन कुछ ही दिनों में यह मुठभेड़ सवालों के घेरे में आ गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और डीजीपी डीके पांडेय पर फर्जी एनकाउंटर कराने का आरोप लगने लगा. काफी हो-हंगामे के बाद मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गयी. लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी मुठभेड़ में मारे गये लोगों के परिजनों को इंसाफ नहीं मिल पाया है. पुलिसिया जांच में यह बात सामने आयी थी कि मारे गये 12 लोगों में से सिर्फ डॉ आरके उर्फ अनुराग के अलावा किसी का कोई नक्सल रिकॉर्ड नहीं था.
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तत्कालीन डीजीपी ने बिना जांच की बांटी थी इनाम की राशि
बकोरिया में हुए कथित मुठभेड़ में 12 लोगों के मारे जाने की घटना के बाद अगले दिन नौ जून 2015 की सुबह तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय, तत्कालीन एडीजी अभियान एसएन प्रधान, स्पेशल ब्रांच के एडीजी अनुराग गुप्ता समेत अन्य सीनियर पुलिस अफसर हेलीकॉप्टर से बकोरिया पहुंचे थे. वहां मरे हुए लोगों को नक्सली घोषित कर अफसरों ने फोटो खिंचवाई थी. वहीं डीजीपी ने वहां मौजूद जवानों के बीच लाखों रुपये नकद इनाम के तौर पर बांटे थे.
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झारखंड हाइकोर्ट के आदेश के बाद CBI ने दर्ज की थी प्राथमिकी
पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र बकोरिया में आठ जून 2015 को हुई कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के मामले में CBI दिल्ली ने प्राथमिकी दर्ज की थी. यह प्राथमिकी झारखंड हाइकोर्ट के 22 अक्टूबर 2018 को दिए आदेश पर दर्ज की गयी थी. इस घटना में पुलिस ने 12 लोगों को मुठभेड़ में मारने का दावा किया था. मृतकों के परिजनों ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताते हुए हाइकोर्ट में CID की जांच पर सवाल उठाते हुए CBI जांच की मांग की थी. CBI ने पलामू के सदर थाना कांड संख्या 349/2015, दिनांक 09 जून 2015 के केस को टेकओवर करते हुए प्राथमिकी दर्ज की थी.
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बकोरिया कांड ने ADG तक का कराया था तबादला
बकोरिया कांड को सही बताने में मदद नहीं करनेवाले अफसरों को उनके पद से सीधे चलता कर दिया गया. ऐसे अफसरों में थानेदार से लेकर एडीजी रैंक के अफसर शामिल हैं. इससे पहले भी आठ जून 2015 की रात पलामू के सतबरवा में हुए कथित मुठभेड़ के बाद कई अफसरों के तबादले कर दिये गये थे. तब एडीजी रेजी डुंगडुंग सीआइडी (रिटायर्ड) के एडीजी थे. सरकार ने उनका तबादला कर दिया था. इसके बाद रांची जोन की आइजी सुमन गुप्ता का भी तबादला कर दिया गया था. क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर तब के पलामू सदर थाना के प्रभारी हरीश पाठक से मोबाइल पर बात की थी. बाद में हरीश पाठक को एक पुराने मामले में निलंबित कर दिया गया. पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो का भी तबादला कर दिया गया था. उनके बाद सीआइडी एडीजी पद पर पदस्थापित अजय भटनागर व अजय कुमार सिंह के कार्यकाल में मामले की जांच सुस्त तरीके से हुई. 13 नवंबर 2017 को सीआइडी के एडीजी के रूप में एमवी राव को पदस्थापित किया गया था. हाइकोर्ट के निर्देश पर उन्होंने घटना की जांच तेज कर दी थी. इसके कारण पुलिस विभाग के सीनियर अफसरों में हड़कंप मच गया था. इसके बाद एमवी राव का तबादला करा दिया गया था.
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