Anshuman Tiwari
शिकवा ए दुश्मनी करें किससे! … ‘बॉयकॉट चाइना’ और ‘बैन चाइना’ करते-करते भारत-चीन रिश्तों में फिर एक करवट! क्या चीन सुधर गया या हम बदल गये? या फिर हजार कोशिशों के बावजूद चीन पहले से भी बड़ी मजबूरी बन गया? बेवफा कहिए या बावफा कहिए!
आत्मनिर्भरता की तमाम कोशिशों और चीन से आयात कम करने के प्रयासों के बीच ताजा हाल यह है कि 2023 में भारत के निर्यात में चीन से आये कच्चे माल, पुर्जों आदि का हिस्सा 68% पर पहुंच गया है. 2015 में यह 59% था. यानी, हर 100 रुपये के निर्यात में 68 रुपये का सामान चीन से मंगाकर लगाया जाता है. इसका अर्थ यह है कि यदि भारत से निर्यात बढ़ता है, तो उसका लाभ भी चीन को जाता है.
चीन से आयात के अंदरुनी हालात बताते हैं कि भारतीय उद्योग मशीनरी (कैपिटल गुड्स) के आयात में चीन के प्रति निर्भर होते जा रहे हैं. इलारा सिक्योरिटीज की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच कैपिटल गुड्स का आयात सालाना 19.23% की गति से बढ़ा है. इसी दौरान, शेष विश्व को चीन के कैपिटल गुड्स निर्यात में केवल 8.4% की बढ़त देखी गयी. विश्व के कैपिटल गुड्स निर्यातों में चीन का हिस्सा करीब 20% है.
चीन से आयात का HSN कोड आधारित विश्लेषण बताता है कि भारत के करीब 48 प्रतिशत मोबाइल फोन पुर्जे चीन से आयात होते हैं, जिसमें सिम सॉकेट, बैटरी पैक, बैटरी चार्जर और कनेक्टर शामिल हैं. चीन के साथ कारोबारी मामलों में व्यापार घाटे के आंकड़े स्पष्ट हैं. 2017 में 47.1% के मुकाबले 2024 में घाटे में कमी (35.4%) दिखती है, लेकिन 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू होने के बाद यह घाटा 5.6% बढ़ गया है.
चीन की चतुराई है या भारत की विदेशी निवेश नीति का असमंजस, लेकिन सच यह है कि चीन भारत को माल तो बेच रहा है, लेकिन निवेश नहीं कर रहा. भारत के आयात में चीन का हिस्सा 15% है, पर विदेशी निवेश में केवल 0.1% है. आर्थिक समीक्षा 2024 ने भी कहा था कि यदि चीन से इस कदर आयात हो रहा है, तो विदेशी निवेश (FDI) भी होना चाहिए. चीन को बाजार दे दिया है, तो उसकी पूंजी से चिढ़ क्यों?
रिश्तों में नई करवट तो ठीक है, लेकिन बाजार को डर है कि अमेरिका में चीन के आयात पर सख्ती और ऊंची आयात शुल्क (ईवी, सोलर सेल, स्टील) के बाद चीन अपने निर्यात यानी एक्सपोर्ट को भारत की तरफ मोड़ सकता है. ताजा आंकड़ों में चीन से स्टील और कॉटन का आयात बढ़ता हुआ नजर भी आने लगा है.
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी, हम तेरी दोस्ती से डरते हैं – हबीब जालिब
डिस्क्लेमर : लेखक आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह टिप्पणी उनके सोशल मीडिया एकाउंट एक्स से लिया गया है.