NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट द्वारा सशस्त्र बलों के लिए अडल्टरी (व्याभिचार) को अपराध मानने के लिए केंद्र सरकार की याचिका की जांच करने के लिए बुधवार को सहमति जताये जाने की खबर है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुरोध किया है कि वे केंद्र की याचिका पर स्पष्टीकरण जारी करने के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित करें.
सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था
बता दें कि सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था, जिसके तहत भारत में व्यभिचार अपराध करार दिया गया था. उस कानून में आईपीसी की धारा 497 के तहत एक पुरुष को एक व्याभिचार के लिए सजा देने का प्रावधान था. हालांकि महिलाओं के लिए सजा नहीं थी.
कानून के तहत उन्हें पुरूष की संपत्ति माना जाता था. अब व्यभिचार को लेकर IPC की धारा 497 को रद्द करने का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सशस्त्र सैन्य बलों में व्यभिचार को अपराध ही रहने दिया जाये.
इसे भी पढ़ें : जेएनयू के युवाओं को एनएसए अजीत डोभाल ने स्वामी विवेकानंद का संदेश देकर प्रेरित किया
CJI दीपक मिश्रा ने कहा था,यह अपराध नहीं होना चाहिए
केंद्र ने कहा है कि दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार पर दिये गये फैसले को सशस्त्र बलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए, जहां एक कर्मचारी को सहकर्मी की पत्नी के साथ व्यभिचार करने के लिए असहनीय आचरण के आधार पर सेवा से निकाला जा सकता है.
जान लें कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर 2018 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया था. फैसला सुनाते हुए देश के तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा ने कहा था,यह अपराध नहीं होना चाहिए. 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द करते हुए तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यभिचार अपराध नहीं है.
इसे भी पढ़ें : LAGATAR IMPACT: जमीन रजिस्ट्री मामले में अवर निबंधक अविनाश कुमार के खिलाफ होगी जांच, 20 जनवरी तक कार्रवाई का आदेश
यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है
हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि इसे तलाक का आधार माना जा सकता है लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कोई भी पति महिला का मालिक नहीं है और जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है. कहा था कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है. कोर्ट के अनुसार यह कानून महिला की चाहत और सेक्सुअल च्वॉयस का असम्मान करता है, इसलिए उसे अपराध नहीं माना जा सकता.