Chandil (Dilip Kumar) : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, रागी और कोदो) की खेती करने का आह्वान किया था. इसका सरायकेला-खरसावां जिला में इस वर्ष कोई असर नहीं दिख रहा है. पिछले वर्ष 2023 में 87 हेक्टेयर भूमि पर मोटे अनाज की खेती की गई थी, लेकिन वर्ष 2024 में इसकी खेती नहीं नहीं की गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में इसकी खेती करने के लिए जन आंदोलन चलाने की बात कही थी. उन्होंने मोटे अनाज को श्री अन्न का नाम देते हुए सांसदों को भी मोटा अनाज खाने की सलाह दी थी. उन्होंने मोटे अनाज को सुपर फूड के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए बढ़ावा देने का आह्वान किया था. प्रधानमंत्री के इस आह्वान का सरायकेला-खरसावां जिला में कोई असर नहीं देखा जा रहा है. इस वर्ष जिले में मोटे अनाज की खेती अब तक नहीं की गई है. जिले में 990 हेक्टेयर भू-भाग में मोटे अनाज की खेती का लक्ष्य निर्धारित है, लेकिन इस वर्ष इसकी खेती नहीं की गई है. मोटे अनाज में पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक पाये जाते हैं. मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो समेत अन्य अनाज शामिल हैं. नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था. वहीं भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष यानि अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था.
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वर्ष 2023 में 87 हेक्टेयर में हुई थी खेती
सरायकेला-खरसावां जिले के ग्रामांचलों में पहले मोटे अनाज की पैदावार बड़े पैमाने पर की जाती थी. यहां ज्वार, बाजरा, कोदो, रागी आदि की खेती की जाती थी. लोग मोटे अनाज का सेवन भी करते थे. धीरे-धीरे अधिक उपज और खान-पान में बदलाव के कारण इसकी खेती घटती गई और अब इस वर्ष जिले में मोटे अनाज की खेती अब तक नहीं की गई है. कृषि विभाग के मुताबिक बीते वर्ष सरायकेला-खरसावां जिले में ज्वार की खेती 11 हेक्टेयर में, बाजरा की खेती पांच हेक्टेयर में और रागी की खेती 71 हेक्टेयर में की गई थी. देश के प्रधानमंत्री स्वयं मोटा अनाज के मुरीद हैं. उनका कहना है कि मोटे अनाज में स्वास्थ्य में होने वाले लाभ, कुपोषण से लड़ने की शक्ति है. इसकी खेती कम मेहनत और कम पानी में होती है. एक प्रकार से मोटा अनाज इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. प्रधानमंत्री ने देश में मोटे अनाजों को भोजन का मुख्य अंग बनाने पर बल दिया है.
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दलहन की खेती 60 प्रतिशत से अधिक
सरायकेला-खरसावां जिले में दलहन की खेती ने जोर पकड़ा है. 17 अगस्त तक जिले में दलहन की खेती 60.48 प्रतिशत तक की जा चुकी थी. जिले में कुल 34600 हेक्टेयर भू-भाग पर दलहन की खेती की जाती है. 17 अगस्त तक 20925 हेक्टेयर भू-भाग पर दलहन की खेती की जा चुकी थी. वहीं तेलहन की खेती में जिले का प्रदर्शन थोड़ा कम है. जिले में कुल 1390 हेक्टेयर भू-भाग पर तेलहन की खेती की जाती है, जिनमें अब तक 118 हेक्टेयर भू-भाग पर ही तेलहन की खेती की गई है. वहीं सरायकेला-खरसावां जिले में मकई की खेती 4540 हेक्टेयर भू-भाग पर की गई है. यहां कुल 6900 हेक्टेयर भू-भाग पर मकई की खेती की जाती है. इस वर्ष अब तक 65.80 प्रतिशत भू-भाग पर मकई की खेती हुई है. जिले के किसान धान की खेती नहीं होने की स्थिति में विकल्प के रूप में मोटे अनाज के अलावा मकई, दलहन और तेलहन की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं.
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