Chandil (Dilip Kumar) : बारिश थमने और 12 रेडियल गेटों के खुला रहने के बाद चांडिल डैम का जलस्तर तेजी से घट रहा है. गुरुवार की शाम तक डैम का जलस्तर 181.70 मीटर तक पहुंच गया था. जलस्तर घटने के कारण डैम के डूब क्षेत्र में स्थित गांवों से भी पानी निकलने लगा है. गांवों से पानी निकलने के बाद चारों ओर तबाही का मंजर दिखाई दे रहा है. इस बीच विस्थापित अपने घरों की ओर लौटकर अपना सामान समेटने की कोशिश में लग गए हैं. कई विस्थापितों के मकान ध्वस्त हो गए. वे अपने ध्वस्त मकानों के पास पुरानी यादों में खोते दिखाई दिए. बारिश के दौरान चांडिल डैम में अधिक जल भंडारण करने के कारण ईचागढ़ प्रखंड के बाबूचामदा, उदल, कुरुकतोपा, पातकुम, ईचागढ़, कालीचामदा, लोपसोडीह, दीयाडीह, कुकड़ू प्रखंड के दयापुर, कुम्हारी, झापागोड़ा, उदाटांड़, बांदावीर, केंदाआंदा, नीमडीह प्रखंड के लावा, बहड़ाडीह, सीमा, डीटांड़, चांडिल प्रखंड के डीमूडीह, पियालडीह, हाथीनादा समेत कई गांव जलमग्न हो गये थे. इस वर्ष डैम में अब तक का सर्वाधिक 183.80 मीटर तक जल भंडारण किया गया था. आधी रात के दौरान अचानक घरों में डैम का पानी घुसने के बाद चांडिल डैम विस्थापितों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा.
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100 से अधिक मकान हुए जमींदोज
चांडिल डैम का जलस्तर लगातार बढ़ने के कारण लोगों के घर में पानी घुसने लगा और देखते ही देखते मकान जलमग्न हो गए. इसके बाद शुरू हुआ तबाही का मंजर. जलमग्न होने के कारण वर्षों पुराने विस्थापितों के पुश्तैनी मकान धंसना शुरू हो गया. जानकारी के अनुसार ईचागढ़ प्रखंड के बाबूचामदा गांव के 30, कालीचामदा के 70, लोपसोडीह के 7, कुकङू प्रखंड के दयापुर गांव के 27, कुम्हारी के 40, झापागोड़ा से 7, उदाटांड के 4, केंदाआंदा के 4, नीमडीह प्रखंड के लावा से 17, झापागोड़ा के 11 मकान जमींदोज हो गए. मकान धंसने के बाद कोई विस्थापित परिवार प्लास्टिक के टेंट के नीचे, कोई पेड़ों के नीचे, तो कोई स्कूल, पंचायत भवन में शरण लेकर अपनी जान बचायी. विस्थापितों ने कहा कि हर वर्ष उन्हें इस प्रकार के दंश से गुजरना पड़ता है, लेकिन इस बार विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी है. विकास के लिए पुरखों की जमीन-जायदाद देने के बाद सरकार उन्हें बगैर मुआवजा और संपूर्ण पुनर्वास सुविधा के इस प्रकार बेघर करेगी इसकी परिकल्पना नहीं की थी.
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नुकसान का कौन करेगा भरपाई : मंच
विस्थापित अधिकार मंच के अध्यक्ष राकेश महतो ने कहा कि जब कभी भी कहीं पर प्राकृतिक आपदा होने की संभावना रहता है तो सरकार व प्रशासन अलर्ट जारी करते हैं. जन चेतना, डुगडुगी या सायरन के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है, जान-माल की क्षति ना हो, इसके लिए पूर्व से ही आपदा के नुकसान से निपटने के लिए योजना तैयार किया जाता है. लेकिन चांडिल डैम के विस्थापितों के लिए ऐसा नहीं किया गया. यहां की सरकार, प्रशासन, विधायक व संसद को विस्थापितों की जान-माल का कोई परवाह नहीं है. आधी रात को पानी घुसने के बाद विस्थापितों के बीच चारों ओर चित्कार ही सुनाई दे रहा था. लोग अपनी और गाय, बकरी, मुर्गी, बत्तख आदि के साथ घर-परिवार के सारी सामग्री को बचाने में जुटे रहे. जितना सके बचा लिए बाकि पानी में स्वाहा हो गया. अब विस्थापित पूछ रहे हैं कि आखिर उन्हें हुए नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है, आखिर उनके नुकसान का भरपाई कौन करेगा.
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