Chandil (Dilip Kumar) : शारदीय नवरात्र के बाद आने वाले शरद पूर्णिमा के दिन मां कोजागरी लक्खी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा के पर्व को कोजागरी पूर्णिमा, कमला पूर्णिमा, कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा आदि नाम से भी जाना जाता है. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में बंगाली परंपरा चलने के कारण क्षेत्र के लोग शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी लक्खी की पूजा करते हैं. इस दिन दुर्गा पूजा किए गए सभी मंदिर व पूजा पंडालों में मां लक्खी की पूजा की जाती है. चांडिल, चौका, रघुनाथपुर, ईचागढ, तिरूलडीह समेत अन्य क्षेत्रों में लक्खी पूजा को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. सभी स्थानों में लक्खी पूजा को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. सभी पूजा पंडालों व मंदिरों में मां लक्खी की प्रतिमा स्थापित की गई है. इसके अलावा श्रद्धालु अपने-अपने घरों में भी मां लक्खी की पूजा करते हैं. शरद पूर्णिमा पर रविवार को मातेश्वरी महालक्ष्मी की पूजा के लिए संध्या 6.48 से रात 9.59 बजे तक शुभ मुहूर्त और सर्वोत्तम मुहूर्त रात 11.19 से मध्यरात के बाद 12.07 बजे तक है.
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शरद पूर्णिमा में होती है अनोखी चमत्कारी शक्ति
पूर्णिमा रविवार को होने के कारण इसी दिन स्नान दान व्रत की पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, महालक्ष्मी पूजा एवं कौमुदीमहोत्सव (कोजागरा) मनाया जाएगा. शरद पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा भी है. इस दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार के असाध्य रोगों का निवारण होता है. मान्यता है कि आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि पर आसमान से जमीन पर अमृत की वर्षा होती है. आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं. 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकली रोशनी समस्त रूपों वाली बताई गई है. इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित मानी जाती है. कोजागरी पूर्णिमा की रात को दीपावली से भी अधिक खास माना जाता है, क्योंकि इस रात स्वयं मां लक्ष्मी अपने भक्तों को संपत्ति देने के लिए आती हैं. कहा जाता है कि अगर इस रात आपको धन का खजाना पाना है तो देवी लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए.
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शरद पूर्णिमा पर खीर खाना है बेहद खास
रात में खुले आसमान के नीचे खीर रखने का विधान है. चांद की रोशनी स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी मानी गई हैं, इसलिए शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान के नीचे चावल और दूध से बनी खीर रखी जाती हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें खीर पर पड़ती है और इसका सेवन करने से औषधीय गुण प्राप्त होते हैं. शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन में खीर रखकर फिर उसका सेवन करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता दोगुनी हो जाती हैं और समस्त रोगों का नाश होता है. चांदी के बर्तन में सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है. रिसर्च के अनुसार चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, जिससे विषाणु दूर रहते हैं.
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