Dr. Kaushalendra ‘Batohi’
जब से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा हुई है, तब से देश में प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ-साथ मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा में प्रारंभिक एवं व्यवसायिक शिक्षा के महत्त्व, उपयोगिता पर बहस चल पड़ी है. शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या होना चाहिए? क्या शिक्षा मूलत: राष्ट्रीय अस्मिता को जागृत करने के उद्देश्य को पूरा करे या नई पीढ़ियों में राष्ट्र के भूत-भविष्य के साथ वर्तमान में उनके मन-मस्तिक को भावनात्मक रूप से जोड़े. राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था का एक उद्देश्य यह भी है कि मानव विकास के साथ-साथ उनके व्यावसायिक कौशल को विकसित करे और राष्ट्रीय अस्मिता भी साथ-साथ हो. वर्तमान दौर में नई शिक्षा नीति राष्ट्रीय अस्मिता को विकसित करने के साथ-साथ व्यावसायिक कौशल पर आधारित है. अनुभवात्मक अधिगम पर आधारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने स्कूल के समस्त पाठ्यपुस्तकों को पुनर्संयोजित किया है.
एनसीईआरटी, जिसकी स्थापना 1961 में भारत सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा में संपूर्ण देश में गुणात्मक सुधार के लिए नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों की सहायता एवं सलाह देने के उद्देश्य से की गई. इन्हीं उद्देश्यों के अंतर्गत अभी छठी कक्षा से कक्षा बारह तक की पाठ्यपुस्तकों को पुनर्संयोजित किया है. वर्तमान दौर की बहस को समझने के लिए थोडा पीछे चलना पड़ेगा. जब भी पाठ्यक्रमों में बदलाव होता है या बहस, राजनैतिक कोलाहल होता ही है. विशेषकर इतिहास एवं राजनीति विज्ञान विषय में होने वाले परिवर्तन ज्यादा ध्यान आकर्षित करते हैं. सबसे पहले 1960 के दशक में रोमिला थापर एवं विपिन चंद्र जैसे इतिहासकारों के नेतृत्व में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों की रचना हुई एवं उस दौर में भी मध्यकालीन एवं प्राचीन भारत के कुछ प्रस्तुत तथ्यों पर जबरदस्त बहस हुई थी. समय के साथ-साथ एनसीईआरटी द्वारा मामूली परिवर्तन के बाद ये पुस्तकें चलती रहीं. भारत में कमोवेश एक ही विचारधारा की सरकार रही, इसलिए ज्यादा चर्चा का विषय भी नहीं बना.
फिर एक बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2002 में पाठ्यक्रमों मे अमूलचूल परिवर्तन किया. लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत चुनी हुई, सरकारें अपने अनुसार नई पीढ़ी को क्या पढाया जाए क्या नहीं पढ़ाया जाए, कैसी और किस उद्देश्य के साथ शिक्षा व्यवस्था विकसित की जाए, ढांचा तय करती हैं. यह जरूरी है कि सरकारों की विचारधारा एवं शिक्षा के मूल उद्देश्यों के बीच सामन्जस्य बना रहे. फिर 2005 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने न्यू करिकुलम फेमवर्क के अंतर्गत पाठ्यक्रमों में परिवर्तन किया. पाठ्यक्रमों मे बदलाव एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए, परंतु यह भी तय होना चाहिए कि हम नई पीढि़यों को इतिहास, राजनैतिक विज्ञान, सामाजिक व्यवस्थाओं, राजनैतिक आंदोलनों को किस रूप में दिखाना चाहते हैं. जैसे वर्तमान दौर में जो सबसे ज्यादा कोहराम मचाने वाला मुद्ददा है वह इतिहास एवं राजनीति विज्ञान की कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तकें हैं. इससे मुगल दरबार (लगभग 16वीं एवं 17वीं सदी) पृष्ठ संख्या 224-254 को हटा दिया गया है, परंतु इसी पुस्तक में कृषि, समाज एवं मुगल साम्राज्य मे कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. मतलब साफ है कि मुगल साम्राज्य के योगदान को रखते हुए पाठ्यपुस्तक को छोटा किया गया है और नई पीढियों के लिए मुगलों के योगदान को किस परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जाए?
आजाद भारत में मुगलों की भूमिका हमेशा से विवाद एवं बहस का मुद्दा रही है. नई पीढ़ी को मुगलों के इतिहास के बारे में किस स्तर तक बताया जाए, यह एक विचारणीय मुद्दा है. कक्षा 12 में ही समकालीन विश्व राजनीति विषय से ‘शीतयुद्ध का दौर एवं अमेरिकी वर्चस्व अध्याय को हटा दिया गया है. यह एक अच्छा कदम है और वर्तमान संदर्भ में सराहनीय है. इसी कक्षा में एक बहुत ही सकारात्मक परिवर्तन “भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास” विषय के पाठ्यक्रम में किया गया है. वह है ‘भारतीय लोकतंत्र की कहानियां’ को बदलकर ‘संविधान एवं सामाजिक परिवर्तन’. यह संविधान की सार्वभौमिकता एवं उसका भारत में हुए सामाजिक परिवर्तन में योगदान को रेखांकित करता है. भारतीय लोकतंत्र की कहानियां अध्याय आत्म व्याख्यात्मक नहीं था और कहानियां तो काल्पनिकता का भी बोध कराती हैं. परिवर्तन तो सबसे ज्यादा गणित विषय के पाठ्यक्रम हुआ है, परन्तु बहस का मुद्दा नहीं है. कक्षा 10 से हटाए गये पाइथागोरस प्रमेय हो या अध्याय 6 से हटाया गया त्रिभुज हो. क्या पाइथागोरस प्रमेय को हटाना प्राचीन भारतीय वैदिक गणित की संपूर्ण स्वीकारोक्ति की तरफ उठाया गया एक कदम है? एक ओर बहुत ही तथ्यपरक परिवर्तन हुआ है, वह गांधी जी की हत्या से संबंधित है.
गांधी जी के हत्यारे की जाति को पाठ्पुस्तक मे देना कहां तक उचित था? क्या यह किसी जाति के प्रति घृणा पैदा करने का उदेश्य नहीं हो सकता है? यह दक्षिणपंथी विचारधारा को खलनायक की तरह प्रस्तुत करने की कोशिक थी, जो कि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में अक्षम्य है. यह इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करना ही है. तीसरा एक और शोर शराबे का मुद्दा अध्याय-2 भारतीय राजनीतिः नए बदलाव, गोधरा की दुर्घटना एवं उसके परिणाम को पाठ्यक्रम से हटाना है. केवल गोधरा के दंगों को ही बच्चों के सामने प्रस्तुत करना किन उद्देश्यों के तहत किया गया? भारत में अनगिनत दंगे हुए हैं, परन्तु केवल गोधरा के दंगों को प्रस्तुत करने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है? इस घटना को ऐतिहासिक रूप से प्रस्तुत करने से बच्चों की मानसिक दशा पर क्या प्रभाव पडता होगा?
स्वतंत्र भारत में राजनीति विषय से “एक दल के प्रभुत्व का दौर” अध्याय को हटाना भी वर्तमान दौर के राजनैतिक उद्देश्यों के अनुरूप है. कुछ उल्लेखनीय पुनर्संयोजित अध्याय जैसे जाति उद्भव, लोकतंत्र की चुनौतियाँ, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली इत्यादि को हटाना है. यह बच्चों में देश के प्रति सकारात्मकता का ज्यादा प्रवाह करेगा. एक और अध्याय सरकार की भविष्य की नीतियों के प्रति बच्चो में सोच को परिवर्तित करेगा, वह व्यवसाय अध्ययन के पुस्तक से “व्यवसाय एवं उद्योग पर सरकारी नीतियों का प्रभाव” के साथ एक अन्य अध्याय “अच्छे नेता के गुण” को हटाना है. यह भारतीय शिक्षा परिवर्तन व्यवस्था में वैचारिक रूप से दूरगामी परिणाम लेकर आएगा. यह परिवर्तन सारगर्भित, सार्वभौमिक के साथ-साथ ज्यादा स्वीकार्य एवं वैज्ञानिक भी है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के मिजी विचार हैं.