RANCHI : बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तरप्रदेश जिसे हम पूर्वांचल के नाम से जानते हैं, का सबसे बड़ा पर्व है छठ. इन इलाकों में इस पर्व के प्रति लोगों की आस्था के कारण इसे लोक आस्था का महापर्व भी कहा जाता है. इसके प्रति लोगों की आस्था का अंदाजा इन बात से भी लगाया जाता है कि अब छठ का पर्व देश की राजधानी दिल्ली के साथ मुंबई, दक्षिणी राज्यों और यहां तक कि विदेशों में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है. छठ का पर्व साल में दो बार चैत और कार्तिक में मनाया जाता है.
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छठ पर्व को लेकर कई कथाएं हैं प्रचलित
छठ पर्व को हठयोग भी कहा जाता है. इस कठिन पर्व की शुरुआत को लेकर कई कहानियों में से एक सबसे प्रचलित कहानी यह भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने इस व्रत रखा था. इस व्रत से द्रौपदी की मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को अपना सारा राजपाट वापस मिल गया था. लोक परंपरा के मुताबिक सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है, इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की उपासना करना काफी फलदाई माना जाता है.
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छठ पूजा मनाने की विधि
छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है और इसे काफी कठिन पर्वों में से एक माना जाता है. छठ की शुरुआत नहाय खाय से होती है. इसमें व्रती महिलाएं स्नान के बाद में वस्त्र आदि धारण कर चावल, चने की दान और लौकी की सब्जी का भोग लगाकर प्रसाद स्वरूप उसे ग्रहण करती हैं. परिवार के सभी सदस्य भी वही भोजन ग्रहण करते हैं.
नहाय खाय के अगले दिन “खरना” होता है. कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रत रखनेवाली महिलाएं पूरे दिन भर व्रत रखती हैं. शाम को पूजन के बाद चावल और गुड़ से बनाई गई खीर का भोग लगाकर उसे ग्रहण करती हैं. खरना के प्रसाद में यही खाई जाती है.
छठ का तीसरा दिन “षष्ठी” होता है. इस दिन छठ पर्व के लिए प्रसाद बनाया जाता है. इस दिन छठ पर्व का प्रसाद बनाया जाता है. ठेकुआ इस पर्व का मुख्य प्रसाद है. कहीं-कहीं चावल के लड्डू बनाए जाते हैं. प्रसाद से टोकरी को सजाकर टोकरी की पूजा की जाती है. पूजा के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाती हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अर्घ्य यानि जल और दूध अर्पण करती हैं. चौथे दिन: सूर्योदय के समय भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. पूजा के बाद प्रसाद बांट कर छठ पूजा का सामापन होता है.
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