Ayodhyanath Mishra
हरियाणाचुनाव परिणाम को अप्रत्याशित, आश्चर्यजनक और सनसनीखेज बताने वाले विशेषज्ञों एवं टिप्पणीकारों की राजनीतिक एवं चुनावी सोच पर आश्चर्य कम, चिंता अधिक होती है. ऐसा लगता है, अधिकतर बुद्धिजीवी घर बैठे सूचना- संवाद एवं विविध माध्यमों से छनकर आ रही आधी- अधूरी खबरों को, सूचनाओं को जमीनी हकीकत और भौतिक समीक्षा के बिना ही जीत- हार का फार्मूला सेट कर लेते हैं. कुछ तो चुनावी नॉरेटिव से उमड़ी भीड़ को ही वोट समझ लेते हैं. चाहे जो हो, हरियाणा चुनाव ने सिद्ध कर दिया की आम लोग सियासत को समझने में खास लोगों से बहुत आगे हैं!
मई- जून में संपन्न लोकसभा चुनाव में भी यही बात मुखर होकर आई थी कि चाहे जितना ढोल बजा लो ,गीत गालो हम तो अपनी सोच के हिसाब से तुम्हारे मानक को तोड़कर वोट देंगे और दिया भी. मतदाता के लिए मतदान के कई मानक होते हैं. कभी-कभी इसमें क्षेत्रीयता होती है जो मुखर होती है, तो कभी राज्य और देश के मुद्दे प्रमुखता से प्रभावी प्राथमिकता पाते हैं. विचारों, चिंतनो एवं वैचारिक समर्थन -विरोध के बियाबां में जनता की भावनात्मक प्राथमिकताओं को तिरोहित होते देखने की मानसिकता ही है कि सभी चैनलों एवं चुनाव विश्लेषकों ने हरियाणा में बढ़ चढ़कर परिणाम की भविष्यवाणी कर दी. मैं इस मूल्यांकन प्रविधि की आलोचना नहीं करता और न सिरे से इस तकनीक को खारिज करता हूं, पर इतना तो सत्य है कि यह तकनीक आमजन की बात समझने में महारत हासिल नहीं कर पाई है .
इस प्रकार हरियाणा चुनाव परिणाम भविष्य की राजनीति का और संवाद प्रवाह को सचेत भी करता है और नया संदेश संकेत भी देता है. साफ सुनाई पड़ता है कि सारे चुनाव अब जनहित के चारों ओर घूमते दिखाई देंगे तुम हमारे प्रतिनिधि हो यह भाव चुनाव परिणाम से उभर कर जोरदार दस्तक देता है.
जनता का अपना समीकरण भी स्पष्ट है. उसे देश की चिंता तो है ही शिक्षा, स्वास्थ्य कृषि, रोजगार आदि सब की परवाह है. इन अपेक्षित चिताओं के इर्द-गिर्द उसके टोले, गांव, नगर, मोहल्ले की राजनीति भी घूमती है. हर मतदाता वह नागरिक है, जिसके अपने कर्तव्य अधिकार और प्रतिबद्धताएं हैं. वह कथनी और करनी के अंतर को ही नहीं समझता अपितु वादे आश्वासनों और घोषणाओं से निकलने वाले संदेश भाव भी पहचानता है. हरियाणा इसका उदाहरण है.
पता नहीं बीजेपी की क्या सोच थी ,वह भी सतही मूल्यांकन के शोर में भ्रमित था पर उसके अलावा सभी राजनीतिक पार्टियां, मीडिया और बुद्धिवादी जमात इस चुनाव परिणाम को चुनाव पूर्व से ही उंगलियों पर गिन रहे थे. इस प्रकरण में विद्वान मंडली ने संघ की भूमिका, समन्वय एवं संपर्क क्षमता पर भी अधिकृत चर्चा शुरू कर दी. ‘यह जीत तो संघ, उसके आनुषंगिक संगठनों , स्वयंसेवकों की जमीनी व्यूह रचना और त्याग तपस्या की है. अर्थात भाजपा की जीत के बाद समीक्षाएं सकारात्मक दिखने लगीं. यूं कहें संवाद का केंद्र ही पलट गया. जो लोग सिरे से 10 वर्षों की एंटी इनकंबेंसी, मुख्यमंत्री को चुनाव पूर्व हटा दिये जाने, किसान, जवान, पहलवान तक अपनी चर्चा को केंद्रित रखते थे वही परिणाम के उपरांत प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व, जोगी की जुझारू राजनीतिक पहल और कार्यशैली, पार्टी की कल्याणकारी नीतियों, कार्यक्रमों और राष्ट्रवाद का स्पष्ट वादिता तथा आम जन में भाजपा की अहम स्वीकार्यता छलकने लगी. एक बड़े समीक्षक को संघ की कार्य प्रणाली और उसके स्वयंसेवकों की प्रतिबद्धता का भी देर से ही सही आभास हो गया.
भारतीय राजनीति और विशेष कर चुनावी राजनीति आज जिन ध्रुवों में विभक्त है वह बहुत हद तक विचार का नया विषय बन गया है. राष्ट्रीय हित, समग्र समाज हित, व्यष्टि हित, कुनबा और जाति हित के समक्ष बौने हैं, सोच की सामाजिक परिधि सिमट रही है. पर इसके बीच भी समग्र चिंतन राष्ट्र भाव और नफा नुकसान से ऊपर के चिंतन को स्वरूप देने वाले लोग हैं. हरियाणा चुनाव ने इस विधा को मजबूत किया है. इसी के साथ सामंती दादागिरी की राजनीति को भी इस चुनाव ने गंभीर धक्का दिया है. जीत- हार चुनावी रण कर दो पहलू होते हैं पर इस चुनाव ने क्षेत्रवाद के मित्र को तोड़ा हीं तो जातीय खेमे बाजी को भी सीमित किया है. इसी के साथ-साथ अपने-आप ने जमात के सरमायेदार बनने का मिथक भी टूटा है. भाजपा और कांग्रेस को छोड़ किसी दल या मोर्चा को उल्लेख योग्य मत नहीं मिले हैं . चुनाव को बहुत दूर तक प्रभावित करने का दंभ भरने वाले ‘आप’ को 1.79% तो बहुजन समाज पार्टी को 1.82% वोट मिले. जेजेपी को तो एक प्रतिशत से भी कम मिले. वहीं हरियाणा में बेहतर पहचान रखने वाली आई एन एल डी को 4.14% मतों से संतोष करना पड़ा. बहुमत प्राप्त भाजपा को मतदाताओं ने सत्ता में भेजा है, सीट में बढ़ोत्तरी दी है पर उसका मत प्रतिशत लगभग 40% ही है. वहीं निकटतम प्रतिस्पर्धी कांग्रेस पार्टी को 39.09 प्रतिशत मत देकर जनता ने मजबूत विपक्ष की राह दिखाई है.
आज लोग भारत के सर्वतोमुखी मुखी विकास में अपना समग्र विकास निहारते हैं. तेज आर्थिक वृद्धि की इस विकास यात्रा में आर्थिकता केवल सरकारी नहीं है, देश के 140 करोड़ आम जनकी है. लोग अपने हिस्से का भविष्य घर से देखना चाहते हैं. वे चाहते हैं सबके विकास में अपना विकास. यह सत्य है कि समाज जीवन के समक्ष अनेक समस्याएं हैं, उनकी अलग-अलग अनुभूति है, किसान नौजवान माताएं बहने उद्यमी छात्र शिक्षक डॉक्टर सबकी अपनी अपनी समस्याएं हैं. पर उन सब का समाधान भारतीय समृद्धि में निहित है. हरियाणा चुनाव ने चिंतन के कई झरोखों को अनावृत किया है. खुली हवा आवे तो राजनीतिक प्रजातंत्र को निदेशित नहीं करें अपितु जनाकांक्षा के अनुकूल राजनीति का ध्रुवीकरण हो. समग्र विकास की अवधारणा के लिए समग्र सहभागी कार्य संस्कृति और सहभावअपरिहार्य है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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