Girish Malviya
पेट्रोल डीजल की कीमतों में मची भयंकर लूट को ध्यान से समझ लीजिए. अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम एक बार फिर पानी से भी कम हो गये हैं. लेकिन कीमतें गिरने का फायदा भारत में ग्राहकों को मिलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. खबर आ रही है कि मोदी सरकार 6 रुपए तक एक्साइज ड्यूटी और बढ़ा सकती है. जबकि कोरोना काल में पहले ही मई 2020 में पेट्रोल पर 10 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपए प्रति लीटर ड्यूटी बढ़ायी जा चुकी है.
आपके होश उड़ जायेंगे यदि आप UPA के कार्यकाल की एक्साइज ड्यूटी की तुलना आज की एक्साइज ड्यूटी से करेंगे! वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने से पहले मनमोहन सरकार में 1 अप्रैल 2014 को सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर प्रति लीटर मात्र 9.48 रूपये और डीजल पर मात्र 3.56 रूपये थी. जबकि आज पेट्रोल पर टैक्स बढ़कर 32.98 प्रति लीटर और डीजल पर टैक्स 31.83 रुपए प्रति लीटर है. यानी मात्र छह सालों में पेट्रोल पर एक्साइज में 23.5 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 28.27 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है.
सिर्फ 6 सालों में पेट्रोल पर साढ़े तीन गुना से अधिक और डीजल पर लगभग 10 गुना बढ़ोत्तरी हुई है. अब बताइये देश की जनता को कौन लूट रहा है.
बेशक कुछ राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाया है. लेकिन उनके पास अपना खर्च चलाने का और कोई रास्ता नहीं है. क्योंकि वर्ष 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद वह अन्य मद में टैक्स लगाने के अधिकार को खो चुके हैं.
पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी को मोदी सरकार दुधारू गाय समझ कर एक बार फिर दुहराने जा रही है. वर्ष 2014 से पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 12 बार बढ़ चुकी है और घटी है सिर्फ दो बार. जबकि कच्चे तेल की कीमतें लगातार घटती ही गयी.
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की ताजपोशी से एक साल से भी कम समय में कच्चे तेल की कीमत 114 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गयी थी. जबकि आज कच्चे तेल के दाम 37 डॉलर प्रति बैरल है.
एक बार आप खुद सोचिये कि वर्ष 2014 में तब इतनी अधिक एक्साइज ड्यूटी लगायी जाती तो पेट्रोल के दाम लगभग 200 रु प्रति लीटर पर पहुंच जाते. लेकिन UPA ने उसपर कंट्रोल किया. लेकिन मोदी सरकार ने इसे ही लूट का जरिया बना लिया.
कल एक बार फिर यूरोप में लॉकडाउन की संभावना से कच्चे तेल के दाम गिरे हैं. मौजूदा समय में कच्चे तेल के दाम 37 डॉलर प्रति बैरल है. एक बैरल में 159 लीटर होते हैं. इस तरह से देखें तो एक डॉलर की कीमत 74 रुपये है. इस लिहाज से एक बैरल की कीमत 2733 रुपये बैठती है. वहीं अब एक लीटर में बदलें तो इसकी कीमत 17.18 रुपये के करीब आती है, जबकि देश में बोतलबंद पानी की कीमत 20 रुपये के करीब है. इसका फायदा जनता को देने के बजाय 6 रु एक्साइज ड्यूटी बढ़ायी जा रही है.
कुछ लोग कहेंगे कि मोदी जी ने इस रकम से देश के विदेशी कर्जे चुकाये हैं. लेकिन उन्हें यह बात जान लेना चाहिए कि जून, 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 54,90,763 करोड़ रुपये था, जो आज वर्ष 2020 में बढ़कर 100 लाख करोड़ रुपये के पार हो गया है. यानी लगभग इन 6 सालों में पिछले 65 सालों में इकठ्ठे कर्ज से दोगुना कर्ज ले लिया गया है.
अब कोई यह एक्सप्लेन करे कि कच्चे तेल का आयात बिल जो देश के सबसे बड़े खर्चो में शुमार किया जाता हैं, उसके अंतर्गत तो नसीब वाली मोदी सरकार को बेतहाशा फायदा पहुंचा है तो फिर कर्ज दोगुना कैसे हो गया?
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.