शुभम संदेश से खास बातचीत
Ranchi : 100 साल की उम्र ऊपर वाला किस्मत वालों को ही नसीब फरमाता है. ऐसे नसीब वाले सख्श रांची के ही निवासी स्वतंत्रता सेनानी, झारखंड आंदोलनकारी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता, ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व विधान पार्षद अमानत अली अंसारी हैं. श्री अंसारी ने शुभम संदेश से खास बातचीत में कहा कि सबसे पहले देश की आजादी में भूमिका निभाई. आजादी मिलने के बाद सरकारी- गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़कर नवनिर्माण में अपनी भूमिका अदा की. पिछड़ों, दलितों, अभिवंचितों व मोमिनों के विकास एवं उद्धार के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया.
अमानत अली का 100वां जन्म शताब्दी समारोह मना
अभी हाल ही में अमानत अली का 100वां जन्म शताब्दी समारोह समिति की ओर से मनाई गई. झारखंड विधानसभा के पुराने भवन एवं कांग्रेस मुख्यालय में नेताओं ने केक काट कर अपने बुजुर्ग कांग्रेसी का जन्म शताब्दी मनाया. कांग्रेस के उत्थान के लिए उनका आशीर्वाद लिया.
गुरुजी, सीएम, कांग्रेस अध्यक्ष ने दी शुभकामनाएं
इस अवसर पर सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दिशोम गुरु शिबू सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर, मंत्री आलमगीर आलम, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय समेत अन्य कांग्रेसी नेताओं ने अमानत अली को 100वें जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएं दी.
जंगे आजादी में मोमिनों का गौरवपूर्ण इतिहास
अमानत अली ने कहा कि जंगे आजादी में मोमिनों का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. मोमिन कांफ्रेंस इस मुल्क की सबसे बड़ी दस्तकार बिरादरी की तंजीम है. मोमिन बिरादरी भारतीय सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ रह चुकी है. अंग्रेजों ने सबसे पहले भारतीय आर्थिक व्यवस्था को चोट पहुंचाने की शुरूआत की. उनकी पहली चोट मोमिनों ने खाई. हथकरघा उद्योग को चौपट कर दिया गया. बुनकर जो विश्व में सर्वश्रेष्ठ मलमल बनाने के लिये जाने जाते थे, तबाह कर दिये गये. 1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में पूरे देश के मोमिनों ने जान की बाजी लगा दी. झारखंड में मोमिनों की अगुवाई शेख भिखारी, अमानत अली, सलामत अली, शेख हारू आदि ने की. पहली बार 1911 में मोमिनों को राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ने की कोशिश हुई, जिसमें मौलाना आसिम बिहारी की अहम भूमिका रही. 1911 में माेमिन नौजवानों ने जमीयतुल मोमिनीन नामक संस्था का गठन किया और कपड़े के व्यापार के साथ-साथ इस संगठन के माध्यम से लोगों में जन जागरण कर अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की मुहिम जारी रखी.
जमीयतुल मोमिनीन के पहले अधिवेशन में शरीक हुए महात्मा गांधी
जमीयतुल मोमिनीन का पहला अधिवेशन राष्ट्रीय स्तर पर 10 मार्च 1920 को कोलकाता में संपन्न हुआ. मौलाना आसिम बिहारी ने अप्रैल 1921 में दिवारी अखबार अल मोमिनीन की परंपरा की शुरुआत की. जिसमें बड़े-बड़े कागज पर समाचार चिपकाया जाता था. 1927 से दिवारी अखबार एक पत्रिका अलमोमिन के रूप में प्रकाशित होने लगा. 10 दिसंबर 1921 को तांतीबााग, कोलकाता में अधिवेशन का आयोजन किया गया. जिसमें महात्मा गांधी ने भी भाग लिया था.
मौलाना आजाद के नेतृत्व में आजादी की मुहिम चलाते रहे
जब अंग्रेजी हुकूमत ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को नजरबंद कर 4 साल (1914-1917) के लिये रांची भेज दिया, तो जमीयतुल मोमिनों के सदस्य हाजी इमाम अली, शेख अली जान, इशहाक अंसारी, इस्माईल सरदार आदि मौलाना आजाद से मिलते रहे व उनकी प्रेरणा से आजादी की मुहिम पूरे जोश से चलाते रहे.
ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस बनी
प्रो हाफिज समसुद्दीन मनेरी (पटना) की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर मोमिनों की पहली कांफ्रेंस मार्च 1925 को कोलकाता के टाउन हॉल में हुई. जमीयतुल मोमिनीन नामक संस्था ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस में बदल गई. वर्ष 1926, 1928, 1929, 1931, 1934, 1937 तक लगातार राष्ट्रीय अधिवेशन होते रहे.
अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया
अमानत अली के नेतृत्व में 11 मई 1984 को छोटानागपुर प्रमंडल मोमिन कांफ्रेंस का सम्मेलन ईटकी में 21 जुलाई 1984 को हुआ. जिसमें बिहार के तत्कालीन वजीर आला चंद्रशेखर सिंह शामिल हुए. उन्होंने मोमिनों को एकजुट होकर अपने तहरीक को आगे बढ़ाने को आह्वान किया. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से जीवन की शुरूआत करने वाले अमानत अली ने झारखंड राज्य के गठन के आंदोलन को कुशल नेतृत्व प्रदान किया एवं राज्य के आदिवासी, दलित, अलंपसंख्यक, मजदूर, किसान, बुनकर समेत पूर क्षेत्र के लोगों को संगठित कर राज्य के निर्माण में अपना योगदान दिया.
इसे भी पढ़ें – 22 करोड़ गबन मामले में गुमला कोर्ट से 7 दोषियों को सजा, CID ने की थी जांच