Anil Pandey
Dhanbad : देश की कोयला राजधानी धनबाद (Dhanbad) काले हीरे के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध तो है ही, काले कोयले पर वर्चस्व को लेकर खूनी संघर्ष के लिए भी जाना जाता है. फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में इसकी झलक देखने को मिल चुकी है. खूनी संघर्ष का इतिहास रोंगटे खड़े करने वाला है. जिनका वर्चस्व बढ़ा, उन्हें गोलियों से भून दिया गया. वर्ष 1971 में कोयला कंपनियों के राष्ट्रीयकारण के बाद धनबाद में शुरू हुई हत्या की संस्कृति अब भी जारी है. पिछले 5 दशकों में 50 से अधिक वैसे लोगों की हत्या कर दी गई, जिनकी पूरे कोयलांचल में अच्छी पकड़ थी. इनमें बीपी सिन्हा, सकलदेव सिंह, सुरेश सिंह, गुरुदास चटर्जी, शुभेंदु सेनगुप्ता से लेकर नीरज सिंह तक का नाम शामिल है. उस समय के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बीपी सिन्हा की हत्या 1978 में कर दी गई थी. इसमें चर्चित मजदूर नेता सूर्यदेव सिंह का नाम आया था. तब सूर्यदेव सिंह बीपी सिन्हा के अधीन काम करते थे. इस दौरान आउटसोर्स कोलियरियों में छोटी-बड़ी घटनाओं में 300 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया.
बीपी सिन्हा, सकलदेव सिंह, सुरेश सिंह, नीरज बने निशाना
कोयला कंपनियों के राष्ट्रीयकरण से पहले मजदूरों के हक की लड़ाई बीपी सिन्हा जैसे 4 से 5 प्रभावशाली लोग अपनी यूनियन के माध्यम से लड़ते थे. उस समय यूनियनों में टकराव भी होता था, जो लाठी-डंडे तक ही सीमित था. राष्ट्रीयकरण के बाद कोयले की काली कमाई पर वर्चस्व को लेकर टकराव बढ़ने लगा. 29 मार्च 1978 को मजदूर नेता बीपी सिन्हा की हत्या उनके गांधीनगर स्थित आवासीय कार्यालय में उस समय कर दी गई जव वे अपने पोते के साथ गाना सुन रहे थे. 8 से 10 की संख्या में आए बदमाशों ने उन्हें निशाना बनाकर ताबड़तोड़ 100 से अधिक गोलियां झोंक दीं. बीपी सिन्हा की मौके पर ही मौत हो गई थी. इसके बाद प्रभावशाली गुप्तेश्वर पांडे, फिर मुखराम सिंह की हत्या उसी अंदाज में हुई. वर्ष 1983 में शशि खान, 1984 में असगर और 1986 में शमीम खान भी मार दिए गए. करीब 12 साल बाद 15 जुलाई 1998 को विनोद सिंह की हत्या हुई. इसके बाद कोलियरियों में सकलदेव सिंह का वर्चस्व बढ़ने लगा. 25 जनवरी 1999 को उनकी भी हत्या कर दी गई. कोयला माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले निरसा के तत्कालीन मासस विधायक गुरुदास चटर्जी की हत्या 14 अप्रैल 2000 कर दी गई. इसके करीब डेढ़ साल बाद बड़े कारोबारी और कांग्रेस नेता सुरेश सिंह को 7 दिसंबर 2001 को मौत के घाट उतार दिया गया. कभी गुरुदास चटर्जी के करीबी रहे सुशांतो सेन की वर्ष 2003 में हत्या कर दी गई. खूनी संघर्ष की भेंट चढ़े लोगों में एक और चर्चित नाम है नीरज सिंह. सिंह मेंशन से जुड़े धनबाद के डिप्टी मेयर नीरज सिंह की 22 मार्च 2017 को स्टील गेट में ताबड़तोड़ गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. तब नीरज सिंह का कद कोयलांचल में तेजी से बढ़ रहा था.
निजी स्वार्थ में बढ़ा टकराव : बृजेंद्र सिंह
कांग्रेस के धनबाद जिला अध्यक्ष और पेशे से अधिवक्ता बृजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण के बाद मजदूरों के मसीहा कहे जाने वाले लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए बाहुबल के सहारे वर्चस्व कायम करने लगे. इसके चलता टकराव होता रहा. पांच दशकों में 50 से अधिक चर्चित लोगों की हत्या इसका प्रमाण है. लोगों की हत्या हुई. ये वैसे लोग थे, जिनका कोयलांचल में अच्छी पकड़ थी. इनमें बीपी सिन्हा से लेकर नीरज सिंह तक शामिल थे. आउटसोर्स कंपनियों में भी सैकड़ों लोग मौत के धाट उतार दिए गए.
बीपी सिन्हा की हत्या के 29 साल बाद आया फैसला : वैभव
दिवंगत बीपी सिन्हा के पोते कांग्रेस नेता वैभव सिन्हा कहते हैं कि उनके दादाजी ने दिन-रात मजदूरों की सेवा की. पूरा जीवन मजदूरों को हक दिलाने में बिता दिया. अपने लिए कुछ नहीं किया था. खुद का कद बढ़ाने के लिए उनकी हत्या कर दी गई. उस घटना से परिवार काफी कमजोर हो गया. जब तक केस चला सभी सदस्य दहशत में रहे. वैभव सिन्हा ने कहा कि दादाजी की मौत के बाद उन्हें न्याय दिलाने के लिए मेरे पिता 20 वर्ष तक केस लड़ते रह गए. पिता की मौत के 9 साल बाद यानी दादाजी की मौत के 29 साल बाद कोर्ट का फैसला आया. तब तक सभी आरोपियों की मौत हो चुकी थी.
यह भी पढ़ें : धनबाद : महिला थाना बना दलालों का अड्डा, फरियादियों से ऐंठते हैं पैसे
Leave a Reply