Topchachi : साहुबहियार में श्रीमद् भागवत कथा सह लक्ष्मी नारायण यज्ञ के तीसरे दिन सोमवार 22 मई को वृंदावन से पधारे आचार्य ब्रजेश जी महराज ने कहा कि मन से किया गया पश्चाताप ही सबसे बड़ा प्रायश्चित है. मानव जीवन दिनचर्या में पाप-पुण्य के मामूली अंतर को समझ नहीं पाता है. सच्चे मन से किया गया पश्चाताप पाप को नष्ट कर देता है.
उन्होंने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान के भक्तों का किसी से द्वेष नहीं होता है. लोग हर समय द्वेष की अग्नि में जलते रहते हैं. इससे मन बुद्धि दोनों ही विचलित रहते हैं. इसलिए राग द्वेष छोड़ो, आशक्ति से मुंह मोड़ो. उन्होंने कहा कि भगवान भक्त की जाति, धर्म, वाणी उसकी अमीरी गरीबी आदि कुछ भी नहीं देखते हैं. उन्होंने भक्त प्रह्लाद की कथा कहते हुए बताया कि भगवान ने प्रह्लाद की भक्ति की परीक्षा ली. यह नहीं देखा कि वह असुर हरिण्यकश्यप का पुत्र है.
ब्रजेश जी महराज ने बताया कि बुद्धि परिवर्तनशील है. उन्होंने कहा कि भगवान की शरण में जाने से बुद्धि परिपक्व व दृढ़ निश्चयी हो जाती है. इसलिए मनुष्य को उत्तम कर्म के बीज बोने चाहिए, ताकि अच्छे चरित्र की फसल काटी जा सके. यज्ञ में 25 बटुकों का सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न हुआ. यज्ञोपवीत संस्कार के तहत जनेऊ धारण कराया गया. भारी संख्या में श्रद्धालुओं के बीच आरती के बाद अमृत स्वरूप प्रसाद का वितरण किया गया.