सप्ताह में 1 दिन आते हैं डॉक्टर, मरीजों की लग जाती है लंबी कतार
Akshay Kumar
Topchachi : तोपचांची प्रखंड के ढांगी पंचायत में सात वर्ष पहले 2015 में करीब 2 करोड़ की लागत से स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्र रोआम अस्पताल का नव निर्माण कराया गया. इसके पहले 1967 में संयुक्त बिहार के समय अस्पताल का निर्माण हुआ. समय के साथ सरकार व राज बदल गया, मगर इस अस्पताल का भाग्य नहीं बदला. केन्द्र व राज्य सरकार स्वास्थ्य के मद में करोड़ों रुपये की योजनाएं ले कर आती हैं. आम जनों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च भी कर दिये जाते हैं. मगर धरातल पर न तो स्वास्थ्य दिखता है और न दिखती है सेवा. तोपचांची प्रखंड के ढांगी पंचायत में स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्र रोआम के नाम से 20 बेड का अस्पताल भी उसी दुर्दशा का शिकार हो कर रह गया है. सप्ताह में एक डॉक्टर आते हैं, जो लोगों के इलाज की खानापूरी कर चले जाते हैं.
हजारों की आबादी वाला है यह क्षेत्र
रोआम अस्पताल करीब सैकड़ों गांवों की हजारों की आबादी से घिरा हुआ है. यह इलाका सुदूर ग्रामीण क्षेत्र का बड़ा नमूना भी है. अगर ग्रामीण बीमार होते हैं तो उसे बुधवार का इंतजार करना होता है. बुधवार को डॉक्टर उषा सोरेन आती हैं, तो मरीजों की लंबी कतार लग जाती है.
अस्पताल में टेलिमेडिसिन सुविधा बंद
अस्पताल में वर्षों पूर्व टेलीमेडिसिन भी चालू किया गया था. लेकिन अभी वह भी बंद है. टेलिमेडिसिन रहने से अस्पताल पहुंचने वाले बीमार मरीजको काफी सहूलियत होती थी. लेकिन किस्मत में यह भी नहीं था, तो वह भी बंद हो गया.
डॉक्टर व चिकित्सा कर्मियों के रहने की है व्यवस्था
अस्पताल में डॉक्टर व चिकित्सा कर्मियों के रहने के लिए आवास बनाए गए हैं. लेकिन आवास में सिर्फ एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी ही रहता है. उसे भी तोपचांची के साहोबहियार स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सेवा देनी होती है.
अस्पताल में चारों ओर जंगल-झाड़
अस्पताल में चिकित्सक व व्यवस्था की कमी के कारण अस्पताल धीरे धीरे खंडहर बनता जा रहा है. अस्पताल के परिसर में जंगल झाड़ उग आए हैं, जिसकी सफाई करने वाला कोई नहीं है. अगर समय रहते नहीं सरकार नहीं चेती तो आने वाले में दिनों में करोड़ों की लागत से निर्मित भवन पूरी करह खंडहर में तब्दील हो जाएगा.
कई बार हुए आंदोलन, डॉक्टर की कमी नहीं हुई दूर
समाजसेवी रविन्द्र तिवारी कहते हैं कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1967 में अस्पताल का निर्माण कराया गया. सन् 2015 में अस्पताल का नव निर्माण हुआ. परंतु चिकित्सकों की कमी दूर नहीं हो सकी. सप्ताह में एक दिन बुधवार को एक चिकित्सका डॉ उषा सोरेन आती हैं और 2 बजे के बाद चली जाती हैं. डॉक्टर के लिए कई बार आंदोलन किया गया. लेकिन कोई परिणाम नहीं. सरकार बिल्डिंग बना रही है. परन्तु डॉक्टर की कमी दूर नहीं होने से कोई फायदा नहीं मिल रहा है. प्रभारी डॉक्टर आशुतोष कुमार सिंह से टेलिफोन के जरिये संपर्क करने का प्रयास किया गया, परंतु विफल रहा.
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