Sanjay Singh
इन दिनों राजनीति में वंशवाद पर खूबे धमाचौकड़ी मचल रहता है. देश की एगो बड़की पार्टिया के नेताजी लोगन दूसरकी बड़की पार्टिया के दिग्गज नेता जी लोगन पर वंशवाद को बढ़ावा देवे का आरोप लगाईते हुए छींटाकशी कईले रहते हैं. छोटकी पार्टी, क्षेत्रीय पार्टी को भी मियां-बीबी, भाई-भौजाई की पार्टी बताईले कटाक्ष करे से तनिको परहेज न करते हैं. लेकिन अपन और सहयोगी पार्टिया में तेहतर गो छेदवा ई लोग के नजरे न आता है. बड़की पार्टिया की एगो सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी भी है. चुनाउवा के मौका पर थोक के भाव में डेली मार्केटवा से केरवा के घवद लेले मौहाल बनावइत रहती है. लेकिन ईहो पार्टिया में मिया-बीवी और भईया जी के साथे साथ मुउसा-भतीजा वाली तिकड़िया-चौकड़िया खूबे रंग जमाईले रहती है. जईसे ही चुनाव आता है, ई लोग गांवे-गांवे देर रात तक मौहाल बनावे ला छिछिआईल रहता है.
अब ई तिकड़िया में से एगो भईया जी हैं, केरवा प्रमुख जी के मउसा जी के नाम से फेमस हैं…हईयो हैं, लेकिन ऊ मलिकान जी किस्मतवा पता न काहें, केने जाके घुरमुरियाई के सुत गईल है, कहल नहीं जा सकता है. केरवा ब्रांडवाली पार्टिया के ई तीनों नेता-नेताईन मैडम सहिते इहे फेरा में रहते हैं कि पहिले अपना ढींढ़वा भर लीहल जाए, फिर दूसर नेता लोगन के बारे में सोचल जाएगा. साफे-साफे कहते हैं कि मोके ही चाही, दूसर मन से मौके मतलब नखे. वईसे भी ई नेताजी लोगन पीसा फेंको तमाशा दिखो गेम प्लान करके वोटवा के ठगी करे में ओस्ताद हैं. लेकतिन मउसा से लागतार फेले हो जा रहे हैं. पार्टिया के जे प्रमुख महोदय जी हैं, ऊ तो बड़िए मीठा बोलते बतियाते हैं. लेकिन मजाल न कि तिकड़िया के कुछ बोल सकें. आखिर ऊ में से तो एगो मउसा जी भी तो ही हैं. ई तीनों लोग के अपना टिकटवा कंफर्म चाही, बाकी और केकरा के देवे ला है, एकरा से ई लोग के कोई मतलबे न हैं. तीनों कहते हैं- टिकटाव मोके ही चाही, हमके दूसर मन से कोइयो मतलब नखे.
अब रउरे मन ही देखू न… ई मउसाजी मन एगो खूबे बड़कावाला गांव से तीन-तीन दफा चुनावी रण में कूद पड़िन. मिया-बीवी और केरवा प्रमुख ने ढेरे जोर लगाईस, लेकिन मउसा मने हिसन पटकालख कि पूछ मत. अब फिरो से चुनाव सामने आईए गेलक तो केरवा ब्रांड पार्टी मन से ढेरे नेताजी मन लोगन के टिकट चाही. लेकिन बड़की वाली पार्टिया के नेताजी लोगन को ई बात हजमे न रहल है कि तीन-तीन दफा पटकाएवाले सहयोगी पार्टी के नेताजी को आखिर किस आधार पर टिकट दिया और दिलाया जाए. ईहां तो जबरदस्ते पेंचवा फसल है. बड़की पार्टी के् बड़का-बड़का नेताजी लोगन ई बड़ाका वाला गांव के कोइयो कीमत पर मउसा जी के देवे के तैयार न है. बड़की पार्टिया वाला नेताजी लोग कह रहिस है कि भाई दूसर सीट देख लो, ईहां न सकोगे. तीन-तीन बेर सीटवा के लूज मोशन हो गईस है, अब तो बख्श दो. लेकिन मउसा जी के न जाने काहे ईहे सीटवा से ढेरे पियार हो गईस है.
ई सीटवा देने कोईला क्षेत्र भी है, शायद करिया-करिया कोइलवा में से चमकेवाला हीरवा ते तनिका ज्यादा मोह गईस है. इसलिए मउसा जी कहियो रहिन हैं कि ऊ तो हर हाल में ई सीटवा से लड़बे करेंगे. चाहे पार्टियावाले बड़का-बड़का नेताजी केतनो जोर लगा लें, ई सीटवा को केरवा ब्रांड का परंपरागत सीट बतावे में तनिको संकोच न कर रहिन हैं. मतलब साफे-साफ है मिया-बीवी और भईया ऊर्फ मउसा जी का. मउसा जी तीन-तीन बेर ई सीटवा से लड़ाई लड़ चुके हैं, तीनों बेर प्रतिद्वंद्वी से पिटा के मुंह-नाक फोरवावे के बाद भी ईहे से चुनाव लड़े ला लकलकाईल हैं. मउसा जी के पूरा भरोसा है कि बड़की पार्टिया के बइसाखी के सहारे अबकी बेड़ा पारे लगाईए लेंगे. बाकी तो गेटिंग-सेंटिग ला छोटकी बहू, भाई और भतीजवा तो हईए है.
ई केरवा ब्रांड में मिया-बीवी, भईया यानी मउसा जी तो ढेरे दिन से राजनीति चमकाईले हैं. एगो महोदय )मिया जी) सांसद तो बनिए गिये, लेकिन उनको ऊहां मन न लग रहिस है. चाहत तो राज्य के राजनीति में ही सक्रिय रूप से सक्रिय रहे के हैं, लेकिन बेचारे करें तो करें का. सत्ता सुख भोगेवाला बेमारिया इनको भी लगे है. ई लोग तो सत्ता सुख लगी अईसन-अईसन खेला कीहिस है कि पूछिए मत. मेन केरवा कारोबारी यानी प्रमुख महोदय जी तो खुद सत्ता से दूर रहे का नाटक कईले यूपीए फोल्डर में तो नहीं गिये थे, लेकिन सत्ता सुख भोगे लगी छोटका मउसा जी के भेज दीहिन थे. झुठकौली वाला शो-कॉज के खेला कईले थे. ई लोग सोच रहीस था कि जनता-जनार्दन के अंखिया में धूल झोंक लेंगे, लेकिन जनता तो जनता है. इनका तिकड़मवा से वाकिफ थी. तो बेचारे प्रमुख लजवन पचावे लगी शो-कॉज नाटकवा का मंचन कईले थे. अब देखिए ई लोग बड़की पार्टिया से केतना सीटवा फरियाता है, मने केतना लगी मेल ब्लैक करे में सक्सेसफुल हो पाता है, या फिर बिगाईए जाता है, जइसन पिछलका दफा हुईस था.
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