Sanjay Singh
ई जल के ईश्वर हैं. माई-बाबू ने इहे नाम रख दीहिन था. वईसे ई नेताजी को मामा का नाम से भी लोग जानते हैं. मामा जी धन से आबाद कोइला नगरी में राजनीति चमकाइले रहे हैं. कोइला नगरिया में एगो इलाका है, जहां सुने हैं लोग-बाग ने बाघवे को मार डाला था, तो ओकरे पर नाम पड़ गया -माराबाघ. ई विधानसभा क्षेत्र भी है. यहां काला-काला कोईलवा का करिया-करिया धंधवा खूबे फलता -फूलता रहा है. यहां नेतई कोइला के काला करोबार करेला या काला कारोबारी के संरक्षण देवे ला होता है. कोइलवा में ढेरे माल है, सो नेताजी लोगन के बहार है. यहीं पर मामा पहिले तीर चलाइले थे. तीर में निशाना साधे तो लाल बत्तिया वाला जमाना में लाल बत्तियो का मजा मार लिहिन. लोगन को पानी पिलावे वाला विभाग मिलल था, तो नेताजी अईसन पानी पिलाए कि पूछिए मत. पानियो पिलाए में पूरा खेल करवा दीहिन. ढेरे गड़बड़झाला हुआ था, खूबे हंगामा बरपा था.
लेकिन खैर…बीती ताहि बिसार दें. एकरा बाद तो दु-दु दफा तीर लेकर घूमते रहे, लेकिन निशाना लगबे न किया. बेचारे हबकुनिए फेंका गए. बुरी तरह से चोटिल हुए. अईसन चोटिल हुए कि बेचारे के मुंह से बकारे न निकल रहा था. जो वोटबैंकवा पर भरोसा था, ऊ लोग तो अइनसन गच्चा दीहिस कि पूछिए मत.जब अपनी जातिवाला लोग ही मुंह फेर लिया, तो बेचारे के मुंहवे लटक गया. वोटबैंकवा झटकेवाला मालदार नेताजी के आगे तीरवा निशाना पर लगिए न रहा था. तो मामा जी हांफे लगे. और सबसे मजेदार तो ई है कि जो मालदार भगिना इनको मामा-मामा कह कर पुकारता था, उसी ने दु-दु पटकनिया दे दी. अब तो मामा जेने-तेने मौका तलाशे लगे. कहे लगे कि भाई अब ई पार्टिया के तीर निशाना पर न लगे वाला है. एकर तो गुलिश्ते बरबाद है. जब गुलिश्ते बरबाद है, को दूसर घर तो खोजे ही पड़ेगा न.
जल के ईश्वर मामा जी दु-दु बेर हबकुनिए फेंकाए, तो पूरा हांफले थे. ढेरे माल भी हथवा से निकल गया, तो सांस उखड़े लगा. लगा कि दमा हो गिया है. मामा जी घर खोजे लगे. आखिर मामा जी के पंजा धरे के चांस मिलिए गया. दिल्लीए दरबार के सेट कर लीहिन मामा जी और पंजा थामले लौट गए. मामाजी पंजा लेले पूरे मारा बाघ इलाके में भागे-दउड़े लगे. लोग के बतावे लगे… कहे लगे- भाई आपसब लोग तो अपने जाति के हैं, अबकी पंजा लड़ावेला लाए हैं. साल भर मामा जी खूब पसीना बहाए. लेकिन भगीनवा हंफाइल रखा. वइसे ई नेताजी धरती से भी जुड़ल रहे हैं. लोगबाग को कबी सिनेमो देखाया करते थे.
हॉल वे काम करते थे. लेकिन केतनो जमीन से जुड़ल रहे, भगीना ई ईश्वर जी को जल यानी पानी पिलाइले रहा. बेचारे तिसरका दफा पंजा लेकर घूमले थे, लेकिन फिर से फेंका गए. पंजा लेले-देले औंधे मुंह छितराइल रहे. इनको भी अपना जातिवाला भाई लोग पर भरोसा था, लेकिन बेचारे पइसवा में कमजोर पड़ गए, तो सभी लोग मिल कर अईसन गच्चा दिया कि पूछिए मत. वईसे मामा को इलाके के लोग घमंडिया भी बताते हैं. स्वजातीय लोग कहते हैं कि मामा ढेरे टेढ़ियाते भी हैं, तो हमलोग भी समय आने पर इनको धकिया देते हैं. का करें, जइसन को तइसा जवाब तो देवेही पड़ेगा ना.
मामा के बारे में बताया जाता है कि ई 70 पारवाले आयुष्मान लाभार्थी की श्रेणी में आ गए. भगीना महोदय विधानसभा चुनाव में इनको पटकते-पटकते दिल्ली दरबार पहुंच गए हैं. धन से आबाद सीट फतह कर दिल्ली पहुंचे हैं. अब ऊ श्रीमान अपना पत्नी-बेटा के अपन राजनीति विरासत सौंपे ला तइयार बइठल हैं. इधर मामा जी भी कम बेचैन न हैं. मामा जी तीन-तीन दफा चुनाव हारे के बाद भी खुद ही टिकट ला लार चुवाइले हैं. मामा को भरोसा है कि भगीनवा दिल्ली चल गया है, तो उनका जातियावाला लोग अबकी उनको मौका दे सकता है. मामा को पूरा भरोसा है कि बाघ मारेवाला लोग वंशवाद को रिजेक्ट कर देगा. अब देखिए मामा को पंजा लड़ावे का मौका मिलता है कि न मिलता, काहे कि ईहा उनको एगो पुरनका पंजावाले नेताजी के बेटाजी भी रह-कह कर चिढ़ा रहिन हैं. ई लाला जी कम चतुर-चालाक न हैं. अभिए से घूम-घूम कर कहले हैं, मामा तो गियो. तीन-तीन बार चुनाव में ठोका-पिटा गए हैं, अब तो मामा गियो. अब तो युवा को ही मौका मिलेगा. बेचारे मामा जी के अपनी ही पार्टियावाला भी हंफाईले है…आगे-आगे देखिए होता है क्या. पंजा लपके में मामा जी की जय-जय होती है या लाला साहिब की चलती है…
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