लगल हैं कमल ब्रांड आयातित नेताजी के ताकत देखावे में
Sanjay Singh
ई नेताजी यंग-इनर्जेटिक कहलाते हैं. गांव-देहात से निकले हैं. झारखंड आंदोलनकारी रहे हैं. आंदोलन के दौरान छात्रों का भी एक संगठन थी, जो एग्रेसिव था. इ संगठन के लोग धीरे-धीरे साइड धरते गए और बंगाल बॉर्डर वाले नेताजी धीरे से ढेरे एक्टिव हो गए. छात्र संगठन के पूरी तरह कब्जिया लिहिन. पार्टी बना दीहिन…केला मिला, चुनावी चकल्लस में भी बाजी मार लीहिन. मालदार विभाग के मंत्री बन गईल थे. अपन मौसा जी के भी जितवा दीहिन. धीरे-धीरे चांर-पांच गो लोगन के जितवाए, तो धाक बढ़ा. मंत्री थे तो खूबे मजा मारे. यों कहिए कि खूबे चलती थी साहिब की. राज्यभर में घूम-घूम के अपना केला छाप पार्टिया को फैलावे में भी लगल रहे. गठबंधन सरकार में कमल के साथ केला का कांबिनेशन ठीके चल रहिस था. तनिका मनबढ़ू भी हो गईल थे. लड़कवन सबके तो खूबे पटाइले रहते थे. चुनाव में तो खूबे हवाई सफर करे लगते थे. जेने-तेने उधियाइले रहते थे. लेकिन धीरे-धीरे ग्राफ भी गिरे लगा. एक बार चुनाव में छितराए, तो ढेरे हांफे लगे. गंठबंधन में भी भाव कम हो गया. लोग कहे लगा कि जब अपने सीटवा न बचा पाए, तो भला का कहल जाए. बेचारू लजाइल फिर रहे थे. हालांकि बाद में कम बैंक हुआ, तो फिरो तनि-तनि तरनाए लगे.
भाजपा के बड़कन नेताजी लोगन से मिलना जुलना जारी रखले थे. जब बुझाया कि तनिका ग्राफ डाउन हुआ है, तो गुलदस्ता लेले दिल्ली पहुंच जाते थे. फोटो खिचवा कर पार्टी के लग्गू-भग्गू से वायरल कराइले रहते थे, ताकि वैल्यू बनल रहे. भंजाइते रहें, न तो राजनीति में पिछवाए तो अफसरो लोग घास न डालेगा.
एक बार कमल फूल वाले पार्टी में जनता के दास बाबू कहावेवाला नेताजी पूरा पावर में का आए, इ केला छाप वाले बाबू हांफे लगे. दास बाबू तो इनको तनिको भाव नहीं देते थे, तो बेचारे नाक धुनले फिर रहे थे. जबले दास बाबू रहे, केला छाप मुखिया हांफले ही रहे. कोई पैरवी करावे लगी पहुंच भी जाता था, तो चेहरा पर मुस्कान लेले ही डील करते थे. अगिला को बुझाए न देते थे कि अंदर से जख्मी हैं. कभी कभार अपने करीबी लोगों से दिल का दर्द बयां कर दिया करते थे. साफे-साफ कह दिया करते कि भाई अभी समय ठीक न है. पैरवी-पतरी नहींए कराओ तो ठीक है. वइसे भी दास बाबू इनको ठेकेही नहीं देते थे. बेचारे ई दर्दवा छुपाइले, लजवन पचाइले रहते थे. जानते थे कि ई राज आम लोग जान जाएगा, तो ढेरे फझीहत होगा. पिछिलका चुनाव में दास बाबू इनका ठेके ही न दिए. साइडे धराइल रहे. नुकसान दुनों तरफ हुआ, लेकिन दास बाबू इनका हंफाइले रहे. दुनों लोग सत्ता से बेदखल हुए, तो बिलबिलाए भी, लेकिन जब चिड़िया चूग गई खेत, तो भला क्या कहा जा सकता है.
दास बाबू के दीहल दर्द झेल के भी केला प्रमुख नेता हार न माने. कमलवाला बड़का नेताजी के आगे-पीछे कईले रहे. फिर से चुनाव आ गया है. दु महीना बाद चुनाव होवेवाला है. केला प्रमुख जोर लगाइले हैं. गंठबंधन करे लगी हांफले हैं. भाग-भाग कर दिल्ली भी जा रहे हैं. लेकिन सीट के डिमांडवा एतना हेवी कर दीहिन हैं कि अगला सोच में पड़ गेल है. वइसा केला प्रमुख के हंफावेवाले श्रीराम जयराम, जय-जय राम वाला खेमा भी इन्हें चुनौती देले है. ललकारले हैं.
कमल फूल वाले दिग्गज नेताजी लोगन भी श्रीराम जयराम जय-जय राम कइले हैं. कमल फूलवाले नेताजी केला प्रमुख को संदेश दे चुके हैं, मान जाओ नहीं तो हमलोग श्रीराम जयराम जय-जय राम करे लगेंगे. अब बेचारे केला प्रमुख दुविधा में हैं. इनके लिए आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति हो गई. ऐसे में केला प्रमुख अपना केला पार्टिया का ताकत देखावे में जुटल हैं, ताकि कमल फूल ब्रांड नेताजी पर तनी प्रेशर डालल जा सके. वइसे भी कमल ब्रांड केला के केतना सटाएगा, केतना धकियाएगा, ई तो आये वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन सच कहा जाए तो केला प्रमुख भी तो हांफिए रहे हैं. देखिए आगे-आगे होता क्या है.
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