Surjit Singh
– हालात भयावह
तथ्य
बुधवार को घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 50 रुपये बढ़ा दी गयी. अब सिलेंडर की कीमत 1053 रुपये हो गया है. एक सामान्य परिवार में एक माह में एक सिलेंडर की खपत होती है. मतलब खाना पकाने में अब हर दिन 35 रूपये खर्च करने होंगे.
पिछले एक साल में सिलेंडर की कीमत में 240 रूपये की बढ़ोतरी हुई है. इस तरह एक परिवार पर हर दिन 6 रूपये का खर्च बढ़ा है.
इंवेस्टमेंट बैंकिंग फॉर्म नेमुरा ने चेताया है कि एक सितंबर से आर्थिक तबाही शुरु होगी. भारत के लिये यह ज्यादा परेशान करने वाला आंकलन है.
हमारे लिए तीन बड़ी चुनौती
मंगलवार को सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने बेरोजगारी का आंकड़ा जारी किया है. जिसके मुताबिक, जून में 1.3 करोड़ बेरोजगार बढ़ गये. जून में बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.80 प्रतिशत हो गया है. मई में यह आंकड़ा 7.12 प्रतिशत था. स्थिति भयावह है.
डॉलर के मुकाबले, रूपया लगातार गिर रहा है. मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रूपया 79.04 पर पहुंच गया. इसके 82-85 रूपये तक पहुंचने का अनुमान है.
इन हालातों के बीच आयात की तुलना में निर्यात में कमी, बंद होते कारखाने, बेरोजगार होते युवक और ऊपर से खून निचोड़ लेने वाली महंगाई.
एक तथ्य यह भी
दो दिन पहले अखबारों में खबर आयी कि श्रीलंका में लोग अपने बच्चों को दोपहर 12 बजे तक सुला रहे हैं ताकि नाश्ता न देना पड़े.
श्रीलंका की स्थिति डराने वाली है. हम कह सकते हैं, हम बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. हमारी स्थिति श्रीलंका जैसी कभी नहीं हो सकती है. यह एक सच भी है. लेकिन क्या यह पूरा सच है. क्या सरकार दावे के साथ ऐसा कह सकती है. शायद नहीं. क्योंकि सरकार का महंगाई पर कंट्रोल नहीं. नोटबंदी और जीएसटी की गड़बड़ियों की वजह से फैक्टरी-कारखाने बंद हो रहे हैं. रही-सही कसर कोरोना की वजह से लॉकडाउन ने पूरी कर दी. बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. सरकार भी मानती है कि लोगों के पास खाने तक के इंतजाम नहीं हैं. तभी तो 85 करोड़ लोगों को सरकार राशन दे रही है. ये हालात हैं. इससे निपटने के लिये क्या हो रहा है, कोई बताने की स्थिति में नहीं है. हर चीज महंगी होती जा रही है. राशन खरीदने से लेकर उसके पकाने तक में लोगों के पसीने छूट रहे हैं. स्थिति सुधारने के बजाय देश में धार्मिक नफरत का महौल बनाया जा रहा है. ऐसा लगता है सरकारें आम लोगों की तकलीफ की चिंता छोड़ सिर्फ वोट बैंक बढ़ाने में लगी है. अब हमें संभलना होगा. माहौल ठीक करके आर्थिक मोर्चे पर काम करने होंगे. तभी बेहतर स्थिति की तरफ बढ़ सकते हैं. अन्यथा हमारे लिये आने वाला वक्त बेहद खौफनाक व डरावना हो सकता है. संकट दरवाजे तक पहुंच चुका है.