Lagatar Desk : हमारे समाज में अनेक कुरीतियां फैली हुई हैं. इन कुरीतियों का अक्सर विरोध होता है. महिलाओं की मनोदशा पर विवाद भी छिड़ते हैं, उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई तरह के वायदे भी होते हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर कागजों पर ही सिमटकर रह जाते हैं. समाज में पिछड़ों के उत्थान की बातें भी आये दिन होती हैं, लेकिन वो भी महज बातों तक ही सिमट कर रह जाती है. अंजुमन इस्लामिया के सदर इबरार अहमद से lagatar.in की न्यूज एडिटर की श्वेता कुमारी ने शिक्षा, महिला समेत कई मुद्दों पर बातचीत की.पढ़िए उसके संपादित अंश…
सवाल: अंजुमन इस्लामिया पुराना संगठन है. इसकी ओर से शिक्षा और स्वास्थ्य पर कई काम हो रहे हैं. मुस्लिम समाज के लिए आधुनिक शिक्षा को लेकर आपकी क्या सोच है?
जवाब : जैसा कि आपने बताया कि अंजुमन इस्लामिया पुरानी संस्था है, तो जब मौलाना आजाद नजरबंद होकर 1917 में रांची आए थे, उन्होंने अंजुमन इस्लामिया का गठन किया था. मौलाना आजाद की जंगे आजादी को लेकर जो सोच थी, वो हिंदु-मुस्लिम एकता को लेकर थी. देश के शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद जब बने तो उन्होंने ही देश में मॉर्डन एजुकेशन को डिजाइन किया. जैसे यूजीसी का फॉर्मेशन हुआ, संगीत नाटक एकेडमी हुआ या आईआईटी है, इन सभी के पीछे उनकी ही मेहनत थी. इस तरह की तमाम चीजें उनकी ही सोच का नतीजा थी. हिंदुस्तान में मॉर्डन एडुकेशन कैसे लाया जाए, ये उनकी ही सोच का नतीजा था. अंजुमन इस्लामिया भी जब फॉर्म हुआ तो उन्होंने एक मदरसा कायम किया था. उसका नाम मदरसा इस्लामिया है. आज भी वहां लिखा हुआ है कि इन बाथ मॉर्डन एंड रेलिजियस एजुकेशन. तो मॉर्डन एजुकेशन असली तालीम है, जिस पर ध्यान देने की बात कही गयी थी. इसके अलावा मौलाना आजाद की जो सोच थी, वो समाज को जोड़ने की थी. जब वे जुमे की नमाज में खुदबा दिया करते थे तो उसमें हिंदु-मुस्लिम दोनों शामिल रहते थे.
जब पाकिस्तान बनाने की बात हुई और लोगों ने कहा था कि मुस्लिम हैं तो मुस्लिम लीग में आएं और रिलीजन की बुनियाद पर मुल्क बनाने की बात की गयी थी. उस समय मौलाना ने नसाके मदीना का हवाला दिया था. मदीना में एक एग्रीमेंट था कि जो भी मदीना के रहने वाले हैं, वो तमाम लोग एक नेशन के तहत रहेंगे. धर्म की बुनियाद पर नहीं बल्कि जोगराफिकल बॉउन्ड्री की बुनियाद पर मुल्क बनता है. ऐसी ही बात आजाद ने भी कही थी. ऐसी ही कई और बातें उन्होंने कही थीं, जिसे उन्होंने एजुकेशन में लागू करने को कहा था. जैसे अंजुमन इसिलामिया की एक लाइब्रेरी है. जहां लाइब्रेरी है, उसके आसपास का इलाका स्लम एरिया का है. घरों में पढ़ने की सुविधा नहीं है. इसलिए इस तरह का इंतजाम किया गया है. इसमें दो-ढाई सौ बच्चे हर धर्म के रहते हैं. यहां आते हैं और स्टडी करते हैं. बच्चे जेपीएससी से लेकर कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में कम्पलीट कर रहे हैं. मौलाना आजाद कॉलेज भी उन्हीं के नाम पर चल रहा है. कुछ दिक्कतें बी हैं. मौलाना आजाद कॉलेज का इलाका कॉमर्शियल है लेकिन कॉलेज की जमीन मौलाना आजाद की है. इस समय कॉलेज जर्जर हो गया है. अब एक नई जगह पर कॉलेज बनाने के लिए जमीन ली गयी है.
सवाल : आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए सरकार को क्या पहल करनी चाहिए?
जवाब : सरकार की ओर से तो प्रयास होने ही चाहिए. इसमें मुसलमान हो या कोई और, तालीम सबसे बुनियादी चीज है. वर्तमान में तालीम की ओर रूझान बढ़ा है. खासतौर पर हमारी बच्चियां, जिन्होंने मैट्रिक का रिजल्ट काफी अच्छा किया है. सबसे बुनियादी दिक्क्त एडमिशन को लेकर है. हमारे अंजुमन इस्लामिया के बच्चों का एडमिशन कैसे करवाया जाए, इसमें समस्या आती है. एक बच्चे ने सेंट जॉन्स से टॉप किया था और उसका एडमिशन अगर सेंट जॉन्स में ही होना है तो उसमें खर्च 10-12 हजार तक का है. लेकिन बच्चे के फादर फुटपाथ दुकानदार हैं और उनकी कुल पूंजी ही 5 हजार की है. अब वह 12 हजार रुपये खर्च करके कहां से पढ़ाएंगे. ऐसे ही कई उदाहरण हैं. एक बच्ची पिछली बार 95 फीसदी अंक लायी और उसकी मां घरेलू नौकरानी है. उसके एडमिशन में दिक्कत हो रही थी. एडमिशन लेना बहुत महंगा हो गया है. मारवाड़ी कॉलेज ही एक ऐसा कॉलेज हैं, जहां आज भी कम खर्च में भी एडमिशन हो जाता है. ऐसे में हमारी कोशिश होती है कि जो गरीब बच्चियां हैं वो पढ़ सकें तो उन्हें मदद पहुंचाते हैं. आगे जाकर अगर उन्हें स्कॉलरशिप की सुविधा मिलती है तो ये और भी बेहतर होता है.
जहां तक मसलमानों के आर्थिक पिछड़ेपन की बात है तो ये बेसिकली कारीगर होते हैं, खेतिहर नहीं हैं. ये लोग बुनकरी का काम करते थे. बुनकरी अब खत्म हो चली है. अगर सरकार चाहे तो बुनकरी को बढ़ावा देकर मदद कर सकती है. हथकरघा को भी बढ़ावा देकर ग्रामीण महिलाओ को रोजगार देकर सरकार मदद कर सकती है. जिससे आर्थिक हालात सुधर सकते हैं.
सवाल : मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए क्या-क्या बदलाव होने चाहिए?
जवाब : महिलाएं खुद आगे बढ़ रही हैं. इन्हें रोका नहीं जा सकता. हमारी लड़कियां पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़ रही हैं. रोजगार में भी कई जगहों पर आगे आ रही हैं. हालात अब बदल रहे हैं. इनकी थोड़ी और मदद की जाए तो ये और आगे जाएंगी. देखा जाए तो मोहल्ला स्तर पर जो महिलाओं का समूह हैं, छोटे-छोटे पॉपरेटिव्स को डेवलप किया जा रहा है. महिला मंडल जो भी है, उनके काम करने का तरीका बहुत ही अलग तरह का है. वो जो लोन देते हैं और वसूलते हैं, उसका तरीका बहुत अच्छा नहीं है. अगर इसके लिए एक बेहतर मैकनिज्म डेवलप किया जाए और इनको प्रोत्साहित किया जाए, ट्रेनिंग दी जाए तो बेहतर होगा. मुझे लगता है कि दो-तीन चीजें डेवलप की जा सकती हैं. जैसे महिलाओं का एक अनाथ आश्रम हो. झारखंड में महिलाओं के लिए कोई यतीमखाना नहीं है. बहुत सी बेसहारा औरतें खासकर डायवर्सी और विधवा औरतों को रोजगार से जोड़ा जाए तो ये अच्छा काम कर सकती हैं. सरकार इसमें अगर मदद कर दे तो हालात बदले जा सकते हैं. महिलाएं खुद भी आगे आ रही हैं. जरूरत है बस थोड़ी सरकारी मदद की.
सवाल : समुदाय विशेष का नेतृत्व अब एक लुम्पेन वर्ग के हाथों में आता जा रहा है. ऐसे में सभी समुदाय को कैसे सचेत रहना चाहिए?
जवाब : जो लुम्पेन एलिमेंट हर जगह पर हावी हो रहा है, वो पूरे समाज को बंधक बनाने की कोशिश कर रहा है. ये सिर्फ मुस्लिम समाज की ही बात नहीं है. सभी समाजों में ऐसा ही है. जमीन के लुटेरे और दलाल हैं. ये हमारे बीच बड़ी तादाद में हैं. इनका कनेक्शन भी बड़े लोगों के साथ है. ऐसे में अपने समाज के वो लीडर हो गए हैं. इसके अलावा जितने ठेकेदार और इस तरह के लोग हैं, वो सब समाज में हावी हो रहे हैं. इससे पूरे समाज का कैरेक्टर भी बदल रहा है. इस तरह के लोग धार्मिक उन्माद फैलाकर, धार्मिक नफरत फैलाकर एक तनाव की स्थिति बना देते हैं. अब समाज के पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना होगा. नहीं तो जिस तरह से समाज में लुम्पेन वर्ग के साथ ड्रग माफिया हावी हो रहे हैं, उसे अगर रोका नहीं गया तो परेशानी हो जाएगी. नशाबंदी पर निकलने वाले जुलूस में लोग खुलेआम गुटखा खाते रहते हैं. कई लोग तो जो नशे के शिकार होते हैं. वे भी ऐसी जुलूस को लीड करते हैं. ऐसी स्थिती में समाज के जिम्मेवार लोगों को आगे आना होगा.
इसे भी पढ़ें – टोक्यो: शिंजो आबे को गोली मारने वाला गिरफ्तार, शिंजो आबे से था ‘असंतुष्ट’
Leave a Reply