Pravin Kumar
Ranchi: आदिवासी सीटों पर सभी दलों का फोकस है. क्योंकि राज्य में सरकार बनाने की चाबी आदिवासी सीटों से होकर गुजरती है. पिछले तीन दशकों के ज्यादातर चुनावों में 80 से 90 प्रतिशत सीटों पर भाजपा का ही कब्जा रहा है. लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव झारखंड के लिए कई मायनों में खास होने वाला है. लोकसभा चुनाव के परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने के रूप में सभी राजनीतिक दल देख रहे हैं.
2019 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति आरक्षित 28 सीटों में से इंडिया गठबंधन ने 26 पर जीत हासिल की थी. महज दो सीटों पर भाजपा जीत सकी थी,उनमें खूंटी और तोरपा विधानसभा सीटें हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में सत्तारूढ़ इडिया गठबंधन ने भाजपा का मिल कर मुकाबला करने की रणनीति बनाई. इस पर काम करना भी शुरू कर दिया है. इंडिया गठबंधन की नजर आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित पांच लोकसभा सीटों पर हैं. इनमें खूंटी और लोहरदगा में पिछली बार जीत-हार का अंतर काफी कम था. खूंटी से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा (केंद्रीय मंत्री) ने सिर्फ 1445 वोट से जीत हासिल की थी, जबकि लोहरदगा में यह आंकड़ा 10,363 था. खूंटी और लोहरदगा के अलावा तीन अन्य अनुसूचित जनजाति सीटें राजमहल, सिंहभूम और दुमका हैं. दुमका पर झामुमो का परंपरागत कब्जा रहा है, लेकिन पिछली बार झामुमो के शिबू सोरेन को 47,590 मतों के अंतर से भाजपा से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं राजमहल और सिंहभूम में भाजपा हार गई थी. सिंहभूम में गीता कोड़ा के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चले जाने के बाद यब सीट झामुमो के पास चली गयी है.
भाजपा ने एसटी आरक्षित सीटों पर तीन आयतित कैंडिडेट को मैदान में उतरा
पांच आदिवासी सीटों पर भाजपा ने जीतने के लिए तीन आयातित कैंडिडेट को आपना उम्मीदवार बनाया है. सिंहभूम और दुमका में चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस और झामुमो से आयातित कैंडिडेट गीता कोड़ा को सिंहभूम से और सीता सोरेन को दुमका से चुनाव में उतारा है, वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी से चुनाव लड़ चुके ताला मरांडी की भाजपा में वापसी करीब दो साल पहले हुई थी, और उन्हें राजमहल सीट से उतारा गया है. वहीं सीटिंग कैंडिडेट सुदर्शन भगत का टिकट काट के समीर उरांव को उतारा है. खूंटी लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को चुनाव में उतार कर आदिवासी सीटों को जीतने की रणनीति पर भाजपा काम कर रही है. नये उम्मीदवार को सामने ला कर एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता-विरोधी लहर से भाजपा बचने का प्रयास कर रही है.
एसटी सीटों पर भाजपा की पकड़ हुई कमजोर
वर्ष 2000 से 2019 के विधानसभा के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर भाजपा की पकड़ कमजोर होती चली गई है. वर्ष 2000 में भाजपा ने 12 एसटी सीटों पर जीत दर्ज कर थी. तब सूबे के मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी थे. वर्ष 2014 में भाजपा ने 11 अजा सीटों पर जीत हासिल की थी और वर्ष 2019 में यह संख्या सिमट कर दो पर आ गई है. जबकि वर्तमान में 19 एसटी सीटों पर झामुमो का कब्जा है, जबकि इंडिया गठबंधन को मिला दें, तो कुछ सीटें 26 हैं.
एसटी आरक्षित पांच लोस सीटों पर 2000 के बाद कब किसका रहा कब्जा
लोकसभा 2004 2009 2014 2019
दुमका झामुमो झामुमो झामुमो भाजपा
राजमहल झामुमो भाजपा झामुमो झामुमो
खूंटी भाजपा भाजपा भाजपा भाजपा
लोहरदगा कांग्रेस भाजपा भाजपा भाजपा
सिंहभूम कांग्रेस निर्दलीय भाजपा कांग्रेस
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