Gumla : आदिवासियों के धार्मिक सृष्टि स्थल गुमला स्थित सिरासिता नाले में झारखंड के अलावा अन्य राज्यों से पहुंचे आदिवासियों का जुटान हुआ. राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के राष्ट्रीय धर्म गुरू डॉ. प्रो. प्रवीण उरांव की अगुवाई में हजारों आदिवासी वहां पहुंचे थे. इसमें झारखंड सहित ओडिशा, चाईबासा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के आदिवासी पहुंचे. सभी ने वहां पहले पूजा-अर्चना की. फिर पवित्र स्नान कर सरना प्रार्थना की. स्थानीय पाहन और प्रदेश सरना धर्मगुरू राजेश लिंडा के नेतृत्व में ककड़ो लाता के पास सरना प्रार्थना की शुरुआत के बाद पूजा की गयी. इसके बाद धर्म कंडो के लिए यात्रा शुरू हुई.
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आदिवासियों की देवी मां चाला व देवता धर्मेश का उदगम स्थल है : प्रवीण उरांव
प्रवीण उरांव ने सिरासिता नाले के धार्मिक महत्व के बारे में समझाया. उन्होंने बताया कि सिरासिता नाले हम आदिवासियों का सृष्टि स्थल है. ककड़ो लाता सृष्टि स्थल, गंगला खाइड़ में सरना मां और धर्मेस बाबा के रहने का स्थल है. धर्म कंडो सरना मां और धर्मेस बाबा का दो पीड़हा हैं. उन्होंने बताया कि वहां धर्मेस जोता खेत और चाला रोपा दोन है. पुटरुंगी पहाड़ के बीच में है. चाला एड़पा में सरना मां का घर है. इसी पहाड़ की चोटी में डुबनी चुंआ है, जिसमें चाला धर्मेस इस चुंआ का पानी पीते थे. इस पानी को पीने से असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाती है. इसी सिरासिता नाले सृष्टि स्थल के ककड़ो लाता से भाई बहन अर्थात सरना मां और धर्मेस बाबा का जन्म धरती मां से सूर्य और प्रकृति के प्रतिक्रिया से सर्वप्रथम पृथ्वी के गर्भ से एक बच्चा और एक बच्ची पैदा लिया. वही लोग आगे चलकर हमारे चाला और धर्मेस हुए. इनके सात बेटा और बेटी थे, उस समय पृथ्वी लोक में कोई नहीं थे. यही जोड़ी जुटकर अलग-अलग जंगलों में चले गए. वहां गंगला खाइड़ घास का एक अलग किस्म का घास है. जो गंगला खाइड़ में है. गंगला खाइड़ का सिरसी गांव में एक दोन सृष्टि दोन है. इसमें रहकर वे पले बढ़े. हम आदिवासियों को गंगला खाइड़ का घास अपने आंगन में लगाना चाहिए, जिससे हम अपने पुरखा को याद कर सकते हैं.
अपने जीवन काल में हर आदिवासी को एक बार इस स्थल में आना चाहिए : नीरज मुंडा
राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज मुंडा ने कहा कि हम लोग जब से इस पवित्र स्थल पर आ रहे हैं. जो भी इच्छा और मनोकामनाएं हैं. पूजा करके जो भी मांगते हैं, वो पूरा हुआ है. बहुत लोग लाभान्वित हुए हैं. हम आदिवासी प्रत्येक साल माघ महीने के बढ़ती चांद वाले दिन में यहां आते है. बढ़ती चांद को आदिवासियों में शुभ दिन माना जाता है.
राष्ट्रीय महासचिव जलेश्वर उरांव ने कहा कि हम सभी लोगों को जीवन में अपने रीति रिवाज़, परंपरा और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिरासिता नाले के तीर्थ दर्शन यात्रा पर आना चाहिए.
प्रार्थना कर पानी ग्रहण करने से असाध्य रोग हो जाते हैं दूर : राजेश लिंडा
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सोमे उरांव ने कहा कि आज की तारीख में सरना प्रार्थना सभा के माध्यम से आदिवासी इतने जागृत हो गए हैं कि यहां सालों भर दर्शन करने आते हैं. विशेषकर वृस्पतिवार को साप्ताहिक पूजा का दिन है. उस दिन प्रत्येक सालभार आते हैं, विशेष प्रार्थना करके जाते हैं.
झारखंड प्रदेश सरना धर्मगुरु राजेश लिंडा ने कहा कि सिरासिता नाले ककड़ो लाता का पानी पवित्र माना जाता है. सरना धर्मियों की ऐसी मान्यता है कि यहां पर प्रार्थना कर पानी ग्रहण करने मात्र से ही सभी प्रकार की असाध्य बीमारी के अलावा समस्याओं का समाधान हो जाता है.
ये हुए शामिल
इस यात्रा में सुभानी तिग्गा, बिरसा उरांव, सुष्मिता कच्छप, सीता खलखो, राजकुमारी उरांव, सुलोचना खलखो,सरना धर्मगुरु रामदेव उरांव, रवि लिंडा, सरना धर्म गुरु बबन तिग्गा, विनीता तिग्गा,संदीप टोप्पो, नागेश्वर मुंडा, थिलेश्वर उरांव, शंकर उरांव ,रामप्यारी उरांव, प्रेमचंद उरांव , सोमरा मुंडा, जयमंगल मुंडा, दीवा तिर्की, करमा गाड़ी, हरिचंद उरांव, सुनीता कुजुर, गुमला, लोहरदगा, धनबाद, बोकारो, उड़ीसा, चाईबासा, उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश के सरना धर्मावलंबी शामिल हुए.
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