Hazaribagh: विलुप्त प्राय आदिम जनजाति बिरहोरों के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है. उन्हें सरकार की ओर से आवास की सुविधाएं दी जा रही हैं. उनके भोजन और शिक्षा के भी प्रबंध किए गए हैं. उसके बाद भी हजारीबाग जिले में आदिम जनजाति बिरहोर परिवार के हालात नहीं बदल रहे हैं. वे सड़कों पर भीख मांग रहे हैं. आज भी बिरहोर और उनके बच्चे इचाक के भुसवा से खतरनाक सफर तय कर शहर में भीख मांगने आते हैं. ऑटो की छत पर बैठकर बिरहोर के बच्चे करीब 15 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं. फिर इतनी ही दूरी तय कर घर लौटते हैं. इस पर किसी का ध्यान नहीं है. कटकमसांडी प्रखंड के कंसार के बिरहोरों का भी ऐसा ही हाल है.
भुसवा बिरहोर कॉलोनी में है 20 परिवार
इचाक के बिरहोर कॉलोनी भुसवा में आदिम जनजाति के करीब 20 परिवार गुजर-बसर करते हैं. सरकार ने उनके लिए आवासीय सुविधा भी उपलब्ध कराई है. लेकिन आज भी बिरहोर अपने तरीके से उसमें रहते हैं. रोजी-रोजगार के नाम पर शहर में आकर भीख मांगते हैं. साथ ही जंगलों में जाकर खरगोश का शिकार करते हैं. बच्चों का नामांकन रहने के बावजूद बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. ग्रामीण जगन्नाथ यादव कहते हैं कि सरकारी योजनाओं से वंचित रहने की मुख्य वजह खुद बिरहोर भी हैं. वे लोग खानाबदोश की जिंदगी बिताने के आदि रहे हैं. एक जगह पर टिक कर रहना उनकी आदत में शुमार नहीं है.
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उन्होंने कहा कि बिरहोर भ्रमणशील प्रकृति के माने जाते हैं. भीख मांगकर और खरगोश का शिकार करना उनकी जीवनशैली में शामिल रहा है. रही बात खतरनाक सफर की, तो ऐसे ऑटोचालकों पर कार्रवाई करने की जरूरत है. साथ ही बिरहोरों को जागरूक करने की भी आवश्यकता है, ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें. इस संबंध में समाज कल्याण पदाधिकारी आलोक रंजन कहते हैं कि बिरहोरों के लिए पहले से समाज कल्याण की ओर से 33 बिरसा आवास की सुविधाएं दी गई हैं. आगे 73 आवास और बनाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकारी सुविधाएं देने के बाद भी उनकी आदत नहीं बदल रही है. इसके लिए उन्हें जागरूक करना होगा.