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को जब भाजपा कार्यकर्ता ही नेता नहीं मानते, तो सत्ता पक्ष क्यों मानेगा
चार्टड प्लेन से दिल्ली जाना और झारखंड भवन में नहीं रूकना पैसे की बर्बादी
रघुवर दास ने कहा कि विकास कार्यों के लिए धन के अभाव का रोना इस सरकार की आदत बन गयी है. मुख्यमंत्री के वर्तमान दिल्ली दौरे को लेकर उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कह रहे हैं, कि वह कांग्रेस नेताओं से शिष्टाचार भेंट करने के लिए गये थे. लेकिन शिष्टाचार भेंट के लिए चार्टर्ड प्लेन से जाने की क्या जरूरत थी. इसे भी देखें- उन्होंने कहा कि हमेशा खजाना खाली होने की बात कहने वाले हेमंत सोरेन जी यह बताने का कष्ट करेंगे कि नयी दिल्ली में एन.आर.आई इनवेस्टमेंट सेल के नाम पर छह लाख रूपये प्रति माह में एक बंगला 5/1, आनंद निकेतन, नयी दिल्ली क्यों बुक किया गया है. झारखंड भवन में सारी सुविधाएं होने के बावजूद हेमंत सोरेन जब भी नयी दिल्ली की यात्रा पर रहते हैं, अपनी सुविधा के लिए यहां क्यों ठहरते हैं. जनता की गाढ़ी कमाई इस पर उड़ायी जा रही है.सरकार हर मोर्चे पर विफल
रघुवर दास ने कहा कि सवाल यह है कि इन 13 महीनों में विकास की गाड़ी ठिठक क्यों गई. राज्य में अराजकता एवं अर्थव्यवस्था के कारण पैदा हुए सोचनीय हालात एड़ी से चोटी तक व्यवस्था में फलता-फूलता भ्रष्टाचार, महिलाओं-बच्चियों के साथ दरिंदगी, नित हो रही हत्याएं और पेशेवर अपराधियों तथा उग्रवादियों के आतंक के लिए यदि मुख्यमंत्री नहीं, तो कौन जिम्मेदार है. हेमंत सोरेन से जो आशा-अपेक्षा थी,वह टूट रही है. जनता स्वयं को ठगा-छला महसूस कर रही है.मुख्यमंत्री बताएं कौन अपना कौन पराया
रघुवर दास ने कहा कि 13 महीनों की इस सरकार की कारस्तानियों का आलम यह है कि इस सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में पत्थलगड़ी कांड के आरोपियों पर से बिना जांच-पड़ताल केस वापस ले लिया. इससे राष्ट्रविरोधी शक्तियों, उग्रवादियों, अपराधियों का मनोबल बढ़ गया और वे पूरे राज्य में तांडव मचाने लगे. यहां तक कि सांवैधानिक प्रमुख राज्यपाल के आवास की दीवारों पर दहशतगर्दी के पोस्टर चिपकाने लगे. ऐसा पिछले बीस साल में कभी नहीं हुआ. अपराधियों, उग्रवादियों व राष्ट्र विरोधी ताकतों का मनोबल बढ़ाने का ही परिणाम था कि चाईबासा में सात लोगों की नृशंस हत्या कर दी गयी थी. उस पर तुर्रा यह कि बकौल मुख्यमंत्री जो मारे गए थे वह भी तो उनके ही थे. जिन्होंने मारा था, वे भी उन्हीं के थे. इसलिए कोई कार्यवाही तो होनी नहीं थी, हुई भी नहीं. दिखावे के लिए कमेटी बना दी गई. कमेटी की जांच का क्या हुआ, क्या कार्रवाई हुई, किसी को पता नहीं. आखिर जब मुख्यमंत्री के लोग मुख्यमंत्री के लोगों की हत्या करेंगे तो करवाई नहीं होगी. क्या मुख्यमंत्री बताएंगे कि इस राज्य के कौन से नागरिक उनके हैं और कौन पराये. क्या किसी राज्य का मुखिया इस आधार पर निर्णय लेता है?इसे भी पढ़ें - पुरुलिया">https://lagatar.in/mamta-banerjee-termed-bjp-more-dangerous-than-naxalites-in-purulia-rally/19214/">पुरुलिया
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दंगा और हिंसा सरकार की उपलब्धि
रघुवर दास ने कहा कि एक साल में सरकार की उपलब्धि दंगा और हिंसा ही है, जरा लोहरदगा दंगे पर गौर कीजिए. आम लोग नागरिकता कानून के समर्थन में जुलूस निकाल रहे थे. उन पर अचानक हमला कर दिया गया. दुकानें जला दी गई. मकानों में तोड़फोड़ की गई. बम चले, गोलियां चली. मकानों की छतों से पत्थर-ईंटे बरसायी गयीं. एक युवक की मौत हो गई. कई घायल हो गए. कर्फ्यू लगा. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. शायद उपद्रवी, मुख्यमंत्री और उनके एक मंत्री के लोग थे. जिस राज्य के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को भी दंगाई रौंद डाले, प्रदर्शनकारियों को लहूलुहान कर डाले तथा सरकार बगले झांकने लगे. तब भी क्या सरकार पर अक्षम और पक्षपाती होने का आरोप चस्पा नहीं होता है? आगे उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना थी रेडी टू ईट. इस योजना का मकसद गांव-देहात के गरीब बच्चों को पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना था. इस योजना का कार्यान्वयन सखी मंडलों (सेल्फ हेल्प ग्रुप) के माध्यम से होना था. इस पर 500 करोड़ रुपए खर्च होने थे. लेकिन सरकार ने यह कहते हुए इसे बंद कर दिया था कि इसका कार्यान्वयन फिलहाल असंभव है. सरकार अपने कैबिनेट संलेख में मानती है कि यह योजना बहुत अच्छी है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. कुपोषण भी दूर होगा, लेकिन सरकार अपने बूते इसका कार्यान्वयन नहीं कर पाएगी.

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