Satyendra PS
अगर सरकार की भक्ति का मुलम्मा दिमाग पर छाया हो तो समझना थोड़ा मुश्किल होता है. फिर भी आइए आपको समझाने की कोशिश करता हूं कि देश और देशभक्ति के नाम पर सरकार मध्य वर्ग को कैसे लूट रही है.
वर्ष 2012-13 में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब पेट्रोलियम पर साल भर में 51,690 करोड़ रुपये कर (टैक्स) लिया गया था. वर्ष 2020-21 में मोदी सरकार ने आपसे 2,86,557 करोड़ रुपये कर (टैक्स) लिया है.
इसमें सबसे दिलचस्प यह है कि वर्ष 2019-20 में सरकार ने आपसे 1,65,882 करोड़ रुपये कर लिया था.
पिछली साल जब आप कोरोना महामारी से जूझ रहे थे, तब सरकार ने आपसे कमाई 73% बढ़ा दिया. एक लाख पैंसठ हजार करोड़ रुपये से सरकार का कर बढ़कर दो लाख छियासी हजार करोड़ रुपये कर ऐसे समय में हुआ है, जब बंदी के कारण पेट्रोलियम की बिक्री काफी घट गई थी. यानी कम बिक्री पर ज्यादा टैक्स वसूला गया.
पहले बजट के समय एक बार साल में 4 रुपये लीटर डीजल बढ़ जाता था, तो अखबारों और चैनलों में तूफान मच जाता था. वजह यह कि उससे रेल किराया से लेकर ट्रक भाड़ा, कच्चे माल की धुलाई, खाने पीने की चीजों की ढुलाई सहित हर चीज के दाम बढ़ते थे. इसे इकोनॉमी में कैसकेडिंग इफेक्ट कहा जाता था.
लेकिन जब आप कोरोना की वजह से भगवान या जिससे भी जान की भीख मांग रहे थे, इस राष्ट्रवादी सरकार ने 73% टैक्स बढ़ा दिया. कहीं किसी चैनल, अखबार से लेकर सड़क तक कोई चर्चा नहीं है कि पेट्रोल डीजल का दाम बढ़ने से आलू गोभी से लेकर साइकिल, टेलीविजन, मोबाइल तक के दाम कितना ज्यादा बढ़ चुके हैं. अब कैसकेडिंग इफेक्ट नाम का शब्द ही प्रचलन से बाहर है.
केवल पेट्रोल डीजल की वजह से गरीबों के हाथ से बड़ी मात्रा में धन अमीरों के हाथ जा रहा है. आप 100 रुपये का पेट्रोल खरीदकर 65 रुपये सरकार को देते हैं. लोटा थाली बनाने वाली कंपनी को लोहा और स्टील की ढुलाई करने और फिर उसका लोटा थाली बनाकर आप तक पहुंचाने में ढुलाई की लागत आती है, वह भी दाम बढ़ाकर आपसे वसूलता है. आलू ढोकर मंडी में लाने की लागत बढ़ती है, वह भी आपसे ही वसूल लिया जाता है.
कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की बैंड बजी हुई है. 4 सरकारी तेल कंपनियों और उनके माध्यम से मध्य वर्ग को लूटकर प्रधानमंत्री का आवास बनाया जा रहा है. यह है राष्ट्रवाद! यह है देश की अर्थव्यवस्था! जब तक बवासीर न हो जाए, जब तक जिंदा हैं, राष्ट्रवाद की सजा भुगतते रहिए.
ध्यान रहे कि पेट्रोल पर टैक्स का असर अमीर वर्ग पर नहीं पड़ता. उनकी कमाई में खाने पीने और पेट्रोल का खर्च बहुत मामूली होता है. उदाहरण के लिए, दिल्ली में महीने भर का खाने पीने और पेट्रोल का खर्च 30,000 रुपये महीने आता है. इससे ऊपर आपकी बचत होती है. लेकिन अगर आपकी सेलरी ही 30,000 रुपये महीना हो और उसमें 5000 रुपये महंगाई जुड़ जाए तो आपके लिए यह जानलेवा हो जाता है, लेकिन एक लाख रुपये सेलरी वाले के ऊपर यह खर्च नगण्य है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.