- 15 अक्टूबर को कलश स्थापना
- पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरुप शैलपुत्री की होगी पूजा
Dharmendra Kumar
Jamshedpur : महालया के साथ दूर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है. इस वर्ष महालया और पितृपक्ष अमावस्या दोनों एक ही दिन 14 अक्टूबर को है. इसी दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप देना शुरू करते हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित कमलेश तिवारी ने बताया कि सनातन धर्म में महालया का बहुत ही विशेष महत्व होता है. काशी पंचाग के अनुसार, महालया के दिन को नवरात्रि और पितृपक्ष की संधिकाल भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा कर माता को घर में आगमन के लिए निवेदन किया जाता है. साथ ही इस दिन पितृ देवों को जल तिल अर्पित कर नमन किया जाता है. वहीं 15 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ नौ दिनों तक चलने वाली शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जायेगी. प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरुप शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जायेगी. (पढ़ें, हजारीबाग : अमृत कलश की रंगोली बना जगाई देश प्रेम की भावना)
महालय के दिन ऐसे करें पितरों का तर्पण
पंडित कमलेश मिश्रा के अनुसार, महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है. पितरों को दूध, तिल, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल से तृप्त किया जाता है. इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाकर और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. साथ ही भोजन का पहला हिस्सा गाय, दूसरा देवताओं, तीसरा कौवा, चौथा कुत्ता और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है. ऐसा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है. पृित के आशीर्वाद से सुख और समृद्धि मिलती है.
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