Ranchi : खनन पट्टा मामले में चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजा है. भेजे गए नोटिस में आयोग ने पूछा है कि क्यों नहीं उनके नाम से जारी खनन पट्टे के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. आयोग के मुताबिक, यह मामला आरपी अधिनियम की धारा 9ए का उल्लंघन करती है. धारा 9ए सरकारी अनुबंधों के लिए किसी सदन से अयोग्यता से संबंधित है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री को चुनाव आयोग ने नोटिस भेज कर 10 मई तक जवाब देने का निर्देश दिया है.
बता दें कि पिछले दिनों बीजेपी नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने नाम से राजधानी के अनगड़ा इलाके में एक खनन पट्टा ले रखा है. सीएम ही खनन विभाग के मंत्री भी हैं. आरोप के बाद भाजपा के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मिलकर इसकी शिकायत की थी. राज्यपाल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग को अपनी रिपोर्ट भेजी थी.
चुनाव आयोग ने भी इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी. मुख्य सचिव अपनी रिपाेर्ट आयोग को भेज चुके हैं. वहीं अब भारत निर्वाचन आयोग इस मामले में अंतिम निर्णय लेगा. कोई निर्णय लेने से पहले आयोग ने नोटिस जारी कर सीएम हेमंत सोरेन को पक्ष रखने को कहा है.
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पिछले दिनों इस मामले में रिटायर्ड जस्टिस की भी प्रतिक्रिया आयी थी. रिटायर्ड जस्टिस ने कहा है कि सीवीके राव V/S दत्तू भसकरा -1964 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 (A) के तहत माइनिंग लीज का मामला सप्लाई ऑफ गुड्स बिजनेस के तहत नहीं आता. 2001 में करतार सिंह भदाना V/S हरि सिंह नालवा और अन्य और 2006 में श्रीकांत V/S बसंत राव और अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह का निर्णय दिया था.
माइंस लीज का मामला इसमें नहीं आता
उन्होंने कहा कि सामान्य बातों में समझें तो धारा 9 A के तहत सभी तरह के मामलों में किसी भी व्यक्ति को उसके पद से बर्खास्त नहीं किया जा सकता. केवल सप्लाई ऑफ गुड्स और सरकारी कामों का उपयोग करने में ही ऐसा किया जा सकता है. माइंस लीज का मामला इसमें नहीं आता. पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि मुख्यमंत्री ने पहले ही अपने चुनावी हलाफनामा में इस बात का जिक्र किया है कि उनके नाम से एक माइंस लीज पर है, जिसे उन्होंने रिन्यूअल के लिए भेजी हुई है. ऐसे में तो कोई आपराधिक मामला बनता ही नहीं. रिटायर्ड जस्टिस ने कहा, किसी तरह के कोई निर्णय लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी देखा जाना जरूरी है.
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