Anand Kumar
Ranchi: बुलेट के दम पर व्यवस्था परिवर्तन का दंभ भरने वाले नक्सलियों के प्यार की कहानियां लाल गलियारे में यदाकदा सुनाई देती रहती हैं. कुछ का प्रेम परवान चढ़ता है, तो कुछ की मोहब्बत अंजाम तक पहुंचने के पहले ही दम तोड़ देती है. जॉनसन जिस माओवादी संगठन में था, उसके शीर्ष नेताओं में एक कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी को अपने आखिरी दिनों में सुचित्रा महतो से प्यार हो गया था. सुचित्रा पुलिस विरोधी जनसंत्रास कमेटी के नेता शशधर महतो की पत्नी थी. पुलिस इन्काउंटर में शशधर की मौत के बाद सुचित्रा की किशनजी से नजदीकी बढ़ी. कहा जाता है कि साल 2011 में डेढ़ करोड़ के इस इनामी नक्सली कमांडर की मौत का कारण भी सुचित्रा ही बनी थी. तो क्या जॉनसन का प्रारब्ध उसे किशनजी की नियति की ओर ले जायेगा?
मनोहरपुर थाना क्षेत्र के रोंगो गांव में रहती थी हेलेन. पूरा नाम हेलेन चेरवा. हेलेन भी नक्सली संगठन से जुड़ी थी. नक्सलियों का उसके घर आना-जाना आम बात थी. एक दिन जॉनसन की मुलाकात हेलेन से हुई. पत्थरदिल बागी के सीने में मोहब्बत का अंकुर फूटा. दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे. संगीनों के साये में मोहब्बत परवान चढ़ने लगी. जंगलों और पहाड़ों की खाक छानता, पुलिस से बचता जॉनसन हेलेन के घर पर अक्सर आने लगा. यहां उसे प्यार और पनाह दोनों मिलते थे.
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इधर सारंडा में पुलिस बूटों की धमक बढ़ रही थी. उनके खबरी हर जगह सक्रिय थे. खतरा बढ़ रहा था. जॉनसन एक बार धोखा खा चुका था, जब उसकी डायरी पुलिस के हाथ लग गयी थी. इसलिए वह अब हथियार, वसूली का पैसा और डायरी हेलेन के पास रखता था. हेलेन प उसे पूरा यकीन था. वह उसकी चाहत थी और उसका घर एक महफूज ठिकाना. मगर कहते हैं, इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते. जॉनसन के रोंगो आने की चर्चा फैली, तो आखिर एक दिन हेलेन के दरवाजे पर वर्दीवालों ने दस्तक दे ही दी.
पुलिस किसी खुफिया सूचना पर हेलेन के घर पहुंची थी. तलाशी में पुलिस को हेलेन के घर से हथियार, चार लाख रुपये और एक डायरी मिली. इस डायरी में भी नक्सलियों को पैसा देनेवाली देश की तमाम बड़ी कारपोरेट कंपनियों के नाम और वसूली जानेवाली रकम का ब्योरा था. इस डायरी ने झारखंड में सालों से चल रही नक्सल वसूली का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया. पुलिस को जॉनसन नहीं मिला. मिलता भी कैसे! वह तो किसी और का होने चला गया था. अब हेलेन और जॉनसन के प्रेम में एक नया कोण आनेवाला था. वह थी अनीता !
पुलिस के मुताबिक नक्सली संगठन बड़े ही सधे हुए तरीके से लेवी वसूलने का काम करते हैं. छोटे कार्यकर्ता जिले और जोन स्तर पर वसूली करते हैं. बड़े जोनल कमांडर बड़ी कंपनियों से पैसा उगाहते हैं. संगठन का मुखिया इस रकम को अलग-अलग इलाके में बांट देता है. इसी पैसे से खरीदे जाते हैं देसी-विदेशी असलहे. झारखंड में लंबे समय से नक्सली उगाही से जुड़े मामलों में कुछ बड़ी कारपोरेट कंपनियों के नाम सामने आते रहे हैं. खास तौर पर माइनिंग वाले इलाकों में. जॉनसन की डायरी से लेकर तमाम नक्सलियों से पूछताछ में कई दफा इन कंपनियों के नाम आये. लेकिन सब मैनेज हो गया.
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जॉनसन की डायरी से हुए खुलासे के बाद झारखंड पुलिस ने केंद्रीय जांच एजेंसियों को एक रिपोर्ट दी थी. लंबे समय तक रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो पुलिस ने यह डायरी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के हवाले कर दी. आयकर विभाग भी सिर्फ दो कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुप बैठ गया. वह भी तब, जब सिर्फ एक कंपनी के खिलाफ कार्रवाई में ही 1400 करोड़ की काली कमाई और बेनामी संपत्ति का खुलासा हुआ था. अगर आइटी वालों ने सभी कंपनियों को खंगाला होता, तो अंदाज लगाया जा सकता है कि काले धन का कितना बड़ा खुलासा हो सकता था.
कॉरपोरेट से मिलनेवाली टेरर फंडिंग के बाद मजबूत हुए नक्सलियों के खौफ को दूसरे संगठनों ने भी भुनाना शुरू किया. भगोड़े नक्सलियों, अपराधी गिरोहों और चाय बागानों से लौटे युवकों ने स्थानीय बदमाशों के साथ मिलकर अपने संगठन बना लिये. उनका मकसद है नक्सलियों को होनेवाली फंडिंग में अपनी हिस्सेदारी मांगना. इस मकसद का पूरा करने के लिए कत्ल का नया दौर शुरू हो गया जो आज तक जारी है और जंगलों, गांवों से निकलकर झारखंड की राजधानी रांची तक पहुंच गया है. सूत्रों की मानें तो नक्सलियों की आड़ में काम कर रहे संगठन अब कहीं ज्यादा रकम वसूलने लगे हैं. नतीजा ये कि नक्सलियों के नाम पर होनेवाले हमलों में गैर-माओवादियों की हिस्सेदारी अब आधे से कहीं ज्यादा है. जारी…