Anand Kumar
Ranchi: एक था नक्सली. जॉनसन नाम था उसका. आप कहेंगे एक नक्सली आखिर तो अराजक ही होता है. समाज की मुख्यधारा से कटा हुआ. व्यवस्था का विरोधी. हथियार उठा कर लड़नेवाला. सभी नक्सली कमोबेश ऐसे ही तो होते हैं. लेकिन नहीं, जॉनसन की कहानी थोड़ी अलग है. जॉनसन की कहानी में हिंसा और हत्या है, तो प्रेम और पैसा भी. पैसा! जीहां, हजार या लाख में नहीं, बल्कि करोड़ में. कारपोरेट कंपनियों से वसूला गया सैकड़ों करोड़ रुपया.
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बात वर्ष 2000 के आसपास की है. सारंडा के इलाके में अचानक पादरी की वेशभूषा में एक नाटे कद का आदमी आता है. लोगों से जान-पहचान बढ़ाता हुआ पूरे इलाके में घूमता है. लोगों से बात करता है. धीरे-धीरे लोग उसे जान जाते हैं. वह कथित पादरी भी पूरे इलाके को पहचाने में लग जाता है. पादरी, आम लोग और इलाका सब आपस में घुलमिल जाते हैं. इस बीच इलाके में नक्सली वारदातें बढ़ने लगती हैं. एक दिन अचानक वह पादरी गायब हो जाता. किसी को नहीं पता कि पादरी कहां गया. लोगों की याददाश्त छोटी होती है. लोगबाग उस पादरी को भूल जाते हैं. इधर इलाके में एक नया नाम उभरता है. यह नाम है जॉनसन! जॉनसन गंझू, उर्फ चंदन गंझू उर्फ दीपक गंझू.
तब किसे पता था सारंडा के जंगलों में साल के पेड़ों के बीच से सरसराती हवा अगले 15 साल तक इस नाम की सरगोशियां करेगी. बिटिकलसोय और बालिवा में सखुआ के सूखे पत्तों पर जम चुका जवानों का लहू इसके आतंक की दास्तां सुनायेगा. मगर दुर्भाग्य से ऐसा ही होनेवाला था.नकली पादरी ने अब सफेद चोला उतार कर हरी वर्दी पहन ली थी.
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90 के दशक में हजारीबाग का इलाका नक्सलियों की गिरफ्त में था. इसके पड़ोसी जिला चतरा को माओवादियों ने पहले ही लिबरेटेड जोन घोषित कर रखा था. इसी हजारीबाग जिले के केरेडारी थाना क्षेत्र में पड़नेवाले एक गांव बुंडु में पैदा हुआ था जॉनसन. थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने नक्सिलयों के हाथों में हथियार और लोगों में उनका आतंक देखा. किशोरवय जॉनसन में भी वैसा ही बनने की चाहत जगी. 1995 में वह माओवादी संगठन से जुड़ गया. शातिर दिमाग जॉनसन दिलेर और क्रूर था. देखते-देखते वह माओवादी नेतृत्व का चहेता बन गया. संगठन से जुड़ कर उसने कई घटनाओं को अंजाम दिया. एक बार रांची पुलिस ने उसे पकड़ा भी, लेकिन पेशी के दौरान वह कोर्ट हाजत से भाग निकला. दोबारा जब वह पुलिस के हत्थे चढ़ा, तो उसके नाम पर 27 मामले दर्ज थे.
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