आंदोलनकारियों को अमित महतो का नेतृत्व मंजूर नहीं
आइडेंटी क्राइसिस से गुजर रहे महत्वाकांक्षी नेता असल मुद्दे से भटके
अमित महतो ने बैठक के नाम पर बुलाकर छल से बनायी पार्टी- गीताश्री
Ranchi: आइडेंटी क्राइसिस से गुजर रहे महत्वाकांक्षी नेताओं का बनाया गया खतियानी झारखंडी पार्टी बनने के साथ ही दरकने लगा है. जल्दबाजी में तैयार हुए इस पार्टी की नींव कमजोर रह गई और पार्टी बनने के साथ ही एक-एक कर इसके पीलर गिरने लगे. अब पार्टी के अंदर से ही आवाज उठने लगी है कि उन्हें छला गया है. पार्टी की महासचिव गीताश्री उरांव ने पद छोड़ने के बाद आरोप लगाया है कि पूर्व विधायक अमित महतो ने उन्हें और अन्य आंदोलनकारियों को धोखे में रखकर पार्टी का गठन किया है. गीताश्री ने कहा है कि उन्हें और झारखंड आंदोलन के दूसरे प्रतिनिधियों को बैठक के नाम पर बुलाया गया था. इसी बीच अमित महतो ने पार्टी की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि उस वक्त मौके पर सीन क्रिएट नहीं करना चाहती थी, इसलिए वो चुप रह गईं, लेकिन मेरे बॉडी लैंग्वेज देखकर वहां मौजूद लोग समझ चुके थे कि मैं नाराज हूं. उन्होंने कहा कि यह आंदोलन को तोड़ने और खुद को सुप्रीम बनाने की कोशिश है.
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जल्दबाजी में पार्टी बनाने पर कई नेताओं ने जताई थी आपत्ति
जल्दबाजी में संगठन बनाने पर आंदोलन से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं ने आपत्ति जताई थी और वैकल्पिक पार्टी बनाने का दावा किया था. 1932 के खतियान पर अमित महतो, सूर्य सिंह बेसरा, लोबिन हेम्ब्रम, जयराम महतो, गीताश्री उरांव, विकास महतो, तीर्थ नाथ आकाश समेत कई आंदोलनकारियों के एक सुर एक थे. ऐसे में सभी आंदोलनकारी नेताओं को एक मंच पर लाकर पार्टी बनाने की तैयारी चल रही थी. 15 अप्रैल को घाटशिला में आंदोलन से जुड़े प्रतिनिधियों का जुटान निर्धारित किया गया था. इसके बाद 18 और 19 अप्रैल को रांची के नामकुम बगीचा में कार्यशाला का आयोजन प्रस्तावित है. आंदोलन को धार देने के लिए हर जिले से 10-10 युवाओं को आगे लाने की योजना भी योजना भी बनी, लेकिन उससे पहले जल्दबाजी में अमित महतो ने पार्टी बना दिया. पार्टी एकजुट हुई भी तो अब टूटनी शुरू हो गयी है. सूर्य सिंह बेसरा और दूसरे आंदोलनकारी भी अमित महतो के नेतृत्व से खुश नहीं हैं.
जयराम महतो को कमान देने की चर्चा
चर्चा ये भी है कि अमित महतो के पार्टी से अलग बनने वाले प्रेशर ग्रुप की कमान बोकारो और धनबाद क्षेत्र में तेजी से उभरे आंदोलनकारी जयराम महतो को दी जा सकती है. जयराम महतो आंदोलन के क्रम में चर्चित हुए हैं, जिससे उन इलाकों में सालों से पैठ जमाए हुए नेताओं की नींद उड़ी हुई है. उनके साथ युवाओं की बड़ी टीम भी है.
लोबिन के तेवर देख खुली आइडेंटी क्राइसिस से गुजर रहे नेताओं की नींद
गौरतलब है कि 1932 का खतियान सिर्फ झारखंड का पॉलिटिकल और सोशल मुद्दा ही नहीं है. यह एजेंडा है राजनीतिक पार्टियों का. यह उन राजनेताओं और पार्टियों के लिए भी एक उम्मीद है, जिन्हें जनता ने नकार दिया है, या जो राजनेता अपने राजनीतिक जीवन में आइडेंटिटी क्राइसिस से गुजर रहे हैं. 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति बनाने के मुद्दे ने ऐसे राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं को फिर से हवा दे दी है. झारखंड विधानसभा के बजट सत्र और उसके बाद से लगातार जेएमएम के विधायक लोबिन हेंब्रम जिस तरह 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाने की मांग को लेकर अपनी ही सरकार को घेरते रहे. उनके आंदोलन, प्रदर्शन से सत्ता पक्ष भी सहम गया. लोबिन के तेवर और उन्हें मिल रहा मीडिया कवरेज देखकर आइडेंटी क्राइसिस से गुजर रहे उन नेताओं की भी नींद खुल गई जो बीच-बीच में 1932 का राग अलाप कर चुप हो जाते थे, लेकिन फिर से उनकी अति महत्वाकांक्षा की वजह से पार्टी आकार लेने से पहले ही टूटने लगा है.
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