Kiriburu (Shailesh Singh) : नक्सल प्रभावित सारंडा जंगल के छोटानागरा स्थित राजकीय अनुसूचित जन जाती आवासीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक अज्जु कुमार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व पौष्टिक आहार आदि उपलब्ध कराने में पूरी तरह असफल हैं. अर्थात सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि अज्जु कुमार विभागीय पदाधिकारियों से सांठ-गांठ कर बच्चों का पौष्टिक आहार व तमाम प्रकार की सुविधाओं को हजम कर जा रहे हैं. सारंडा के अत्यंत गरीब व पिछड़े आदिवासी बच्चों के लिये झारखंड सरकार के कल्याण विभाग द्वारा संचालित इस विद्यालय में शिक्षा के नाम पर बच्चों का भविष्य बर्बाद करने का पूरा कार्य यहां के प्रधानाध्यापक द्वारा किया जा रहा है.
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बच्चों से करवाई जाती है स्कूल की साफ-सफाई
वहीं, छह जुलाई को लगातार न्यूज से बातचीत के दौरान इस आवासीय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों ने सवाल उठाया कि हमारे लिये सरकार द्वारा आवंटित पौष्टिक अहार व अन्य सुविधाओं को कौन खा रहा है? सारी सुविधाओं को हजम करने के बाद भी यहां गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा क्यों उपलब्ध नहीं कराई जा रही है? इस दौरान बच्चों ने बताया कि वे यहां पढ़ने आये हैं, लेकिन उन्हें सफाईकर्मी बना दिया गया है. प्रतिदिन उनसे स्कूल प्रांगण से लेकर शौचालय, बाथरूम, नाली आदि की साफ-सफाई कराई जाती है. अनेक बच्चे स्कूल के बाहर नदी में नहाने व बाहर शौच करने जाते हैं. इससे विषैले सांपों के काटने व डूबने का खतरा बना रहता है. एक बच्चे ने बताया कि हेड सर से एक दिन पूड़ी खाने कि बात की तो उन्होंने दो थप्पड़ जड़ दिये.
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मेन्यू के अनुसार बच्चों को नहीं दिया जाता भोजन
जब बच्चों से खाने की मेन्यू के बारे में पूछा गया तो बच्चों ने बताया कि प्रतिदिन सुबह सात बजे व शाम चार बजे नाश्ते में थोड़ा-थोड़ा सूजी का हल्वा व चुड़ा-चीनी, दोपहर व रात के खाने में मात्र चावल, दाल व आलू की सब्जी मिलती है. इसके अलावा मांस, मछली, अंडा, फल, दूध-हॉर्लिक्स, हरि सब्जियां, समौसा, पकौड़ा, इडली, ब्रेड, बटर, पुरी, छोला आदि कल्याण विभाग द्वारा जारी खाने की मेन्यू के अनुसार हमें कुछ भी नहीं मिलता. यहां शौचालय व बाथरूम की बेहतर सुविधा भी नहीं है. स्कूल में सोने के लिए बेड, कंबल आदि भी नहीं है. हम सब अपने घर से चादर व कंबल लेकर आए हैं. स्कूल भवन जर्जर है, खेल सामग्री भी नहीं मिलता. अगर हम गरीब न होते तो ऐसे विद्यालय में किसी भी कीमत पर नहीं पढ़ते.
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प्रधानाध्यापक जो राशन देते हैं, वही बनाया जाता है : रसोईया
वहीं, इस विषय में लगातार न्यूज से फोन पर बातचीत करने के दौरान विद्यालय के प्रधानाध्यापक अज्जु कुमार ने कहा कि इस विद्यालय में वर्ग एक से आठ तक की पढ़ाई होती है. इसमें नामांकित बच्चों की संख्या 88 है. लेकिन स्कूल में बच्चों की उपस्थिति 59 है. इन बच्चों को पढ़ाने के लिये छह शिक्षक-शिक्षिकायें हैं, जिसमें मेरे अलावा मंगला कुर्ली, अस्थायी शिक्षित आकाश बोदरा, रघुनाथ महतो, गीता कुमारी व वंदिनी महतो है. स्कूल में दो रसोईया कैलाश दास व सत्या मुंडा हैं, जबकि सफाईकर्मी के रूप में भारती हेम्ब्रम नियुक्त है. उन्होंने बताया कि छह जुलाई को वह विभागीय कार्य से चाईबासा गये थे और रसोईया सत्या मुंडा पारिवारिक समस्या की वजह से छुट्टी पर है. वहीं, रसोईया कैलाश दास ने बताया कि यहां खाना मेन्यू अनुसार नहीं बनता है. प्रधानाध्यापक जो राशन हमें देते हैं, वही बच्चों के लिये बनाया जाता है.
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वर्ष 2016 के बाद से विद्यालय में नहीं भेजा जा रहा सामान : अज्जु कुमार
प्रधानाध्यापक ने बताया कि विद्यालय में बच्चों के सोने के लिये लगभग 40-45 बेड है. एक बेड पर छोटे-छोटे दो-दो बच्चों को सुलाया जाता है. लेकिन वर्ष 2016 के बाद से यहां कंबल, चादर, बेड आदि नहीं मिला है. रांची से यह सामान नहीं भेजा जा रहा है, जबकि जूता और स्कूल ड्रेस बच्चों को दिया गया है. उन्होंने कहा कि बच्चों को मेन्यू अनुसार खाना और मांस, मछली, अंडा आदि पोषाहार दिया जाता है. कभी-कभी कुछ कमियां रहती हैं. साथ ही एक बच्चे की पिटाई करने की बात स्वीकारते हुये उन्होंने कहा कि क्या हमें इतना भी अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि कभी कुछ बच्चे बाहर नदी में नहाने चले जाते हैं, जिन्हें अब जाने नहीं दिया जायेगा. जो भी कमियां होगी उसे दूर किया जायेगा.
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विद्यालय के शिक्षकों की शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों से सांठ-गांठ होने की चर्चा
इस विद्यालय में सारंडा के आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं और इनके बेहतर भविष्य के लिये सरकार प्रतिमाह लाखों रुपये खर्च करती है. लेकिन यहां बच्चों को पोषक भोजन व गुणवता पूर्ण शिक्षा तक नहीं मिल पा रही है. क्षेत्र में इस बात की भी चर्चा है कि विद्यालय के शिक्षकों का सांठ-गांठ शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों से है, जिन्हें वे मैनेज कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और निरंतर विद्यालय से अनुपस्थित रहते हैं. वह एक फर्जी छुट्टी का आवेदन विशेष जगह छोड़ जाते हैं, ताकि किसी अधिकारी काे औचक निरीक्षण के दौरान उक्त छुट्टी के आवेदन पर तिथि डालकर उनकी छुट्टी को प्रमाणित किया जा सके. अन्यथा उनकी उपस्थिति निरंतर दिखाई जा सके.
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