Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा के गांवों का विकास और बेरोजगारों को रोजगार कौन देगा? यह प्रश्न न सिर्फ ग्रामीणों के सामने, बल्कि जिला प्रशासन व सरकार के सामने भी खड़ा है. सारंडा स्थित सेल की चार, टाटा स्टील समेत अन्य निजी खदानों से डीएमएफटी फंड के रुप में मिली हजारों करोड़ रुपये के बावजूद सारंडा में विकास की किरण गांवों तक नहीं पहुंच पा रही है. यहां के बेरोजगारों को रोजगार तक नहीं उपलब्ध हो रहा है. सारंडा में डीएमएफटी फंड व अन्य योजनाओं से अब तक जो विकास योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं, वह आज तक पूर्ण नहीं हो पाई हैं. योजनाओं का मनमाना प्राक्लन बना ठेकेदारों व अधिकारियों को लाभ पहुंचाने का ही कार्य किया जा रहा है. सारंडा में संचालित सभी योजनाएं अधिकारियों व ठेकेदारों के लिये कुबेर का खजाना हो गया है. इसकी उच्च स्तरीय जांच हुई तो हजारों करोड़ रुपये का घोटाला सामने आयेगा.
इसे भी पढ़ें : भारत ने कनाडाई राजनयिक को निष्कासित किया, पांच दिनों में भारत छोड़ने को कहा
गौरतलब है कि सेल की किरीबुरु, मेघाहातुबुरु, गुवा, चिडि़या खदान प्रबंधन हर वर्ष लगभग 300 करोड़ रुपये डीएमएफटी फंड में देती आ रही हैं. इसके अलावे सारंडा की अन्य निजी कंपनियां भी अपना-अपना पैसा डीएमएफटी फंड में वर्ष 2011-12 से जमा कराते आ रही है. डीएमएफटी फंड में यह पैसा जमा कराने का मुख्य उद्देश्य इन पैसों से खदान से प्रभावित गांवों का सर्वांगीण विकास करना था, लेकिन सारंडा के दर्जनों गांवों के लोग आज भी पीने का शुद्ध पेयजल, सड़क, चिकित्सा, शिक्षा, बिजली, यातायात, संचार, रोजगार, शौचालय आदि सुविधाओं से वंचित हैं.
इसे भी पढ़ें : इंटर डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल प्रतियोगिता : रंका हाई स्कूल में गोड्डा व जमशेदपुर के बीच फाइनल मैच
पूरे सारंडा में पेयजल सुविधा के नाम पर डीएमएफटी फंड से बाईहातु और दोदारी में दो अलग-अलग जल मीनार बनाकर छोटानागरा और गंगदा पंचायत के सभी गांवों के घरों तक पानी पहुंचाने की योजना थी. लेकिन आज तक इस योजना से सभी गांवों के सभी टोला में पानी नहीं पहुंच पाया. जो चापाकल लगाये गये हैं उसमें से अधिकतर खराब हैं या उससे गंदा पानी निकलता है. सारंडा में सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु, गुवा एवं चिड़िया अस्पताल को छोड़ एक भी ऐसा अस्पताल नहीं है जहां 24 घंटे मरीजों को प्रारम्भिक इलाज उपलब्ध हो सके. छोटानागरा में 25 बेड का सरकारी अस्पताल बनकर पूर्ण हो गया है. लेकिन आज तक चालू नहीं हो पाया है. सारंडा में इलाज की बेहतर कोई सुविधा नहीं है.
इसे भी पढ़ें : गिरिडीह : करमा पूजा को लेकर तालाब में नहाने गयी पांच बच्चियां डूबीं, चार की हालत गंभीर
सारंडा में ऐसा कोई भी विद्यालय नहीं है, जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध होती है. कुछ स्कूलों को अपग्रेड कर प्लस-टू बनाया गया है, लेकिन पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं. प्रायः स्कूलों में शिक्षक नियमित पढा़ने नहीं आते. पढ़ाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है. जिससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय है. सारंडा के कई गांव आज भी सड़क व बिजली सुविधा से वंचित हैं. ग्रामीण कीचड़ में चलकर पैदल शहरों तक जाते हैं. आजतक तमाम सरकारें यहां यात्री वाहनें चलाने में असफल रही हैं. सारंडा के बेरोजगारों को वन आधारित या अन्य रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है. अगर विकास होता तो ग्रामीणों को कुछ न कुछ रोजगार मिलता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. सारंडा के गांवों में शौचालय निर्माण के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ है. वर्षा आधारित कृषि पर यहाँ के ग्रामीण निर्भर हैं.