Ranchi : संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ वकीलों की हड़ताल तीसरे दिन भी जारी रही. वकील कोर्ट पहुंचे, लकिन न्यायिक कार्य में हिस्सा नहीं लिये. बार काउंसिल के साथ एकजुटता के साथ खड़े रहे. हालांकि इस दौरान वकीलों में मतभेद भी उभरे. सीएम हेमंत सोरेन की घोषणा के बाद कुछ वकीलों ने इस हड़ताल को जायज नहीं माना. सीएम की घोषणा पर भरोसा करने की बात कही. वहीं कुछ वकीलों ने इसका भी विरोध किया. उनका कहना है कि यह घोषणा मौखिक है, जबकि लिखित होना चाहिए. उनका कहना है कि इस मामले पर काउंसिल के पदाधिकारियों से सीधी वार्ता करनी चाहिए. इस मामले में उनकी राय जरूरी है. इसके बाद ही कोई घोषणा करनी चाहिए.
रांची : वकीलों की मांगों पर सरकार ठोस निर्णय ले
झारखंड में कोर्ट फीस वृद्धि का निर्णय वापस लेने और एड्वोकेट प्रोटेक्शन एक्ट समेत अन्य मांगों को लेकर वकीलों ने कार्य बहिष्कार सोमवार को भी जारी रखा. स्टेट बार काउंसिल के निर्देश पर राज्यभर के वकीलों का कार्य बहिष्कार मंगलवार को भी जारी रहेगा. झारखंड स्टेट बार काउंसिल के निर्देश पर अधिवक्ताओं ने कोर्ट फीस बढ़ोतरी को वापस लेने के लिए खुद को न्यायिक कार्यों से दूर रखा है. रांची में झारखंड हाईकोर्ट और रांची सिविल कोर्ट के वकीलों ने काउंसिल के निर्देश का पालन करते हुए खुद को न्यायिक कार्यों से दूर रखा. इसका असर न्यायिक कार्यों के निष्पादन पर साफ देखने को मिला. झारखंड हाईकोर्ट में कई मामले सुनवाई के लिए लंबित थे. जिनकी सुनवाई टल गई. वहीं रांची सिविल कोर्ट में कई फरियादी अपने मामलों की सुनवाई के लिए कोर्ट की दहलीज तक पहुंचे, लेकिन उन्हें मायूस होकर वापस लौटना पड़ा.

वकीलों ने कोर्ट फीस मुद्दे पर एकजुटता का परिचय दिया : राजेंद्र कृष्ण
झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण ने कार्य बहिष्कार को सफल बनाने के लिए वकीलों को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि वकीलों ने कोर्ट फीस और एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट जैसे गंभीर मुद्दे पर एकजुटता का परिचय दिया है. इसके साथ ही उन्होंने सरकार से यह मांग की है कि वकीलों की मांगों को ध्यान में रखते हुए सरकार जल्द से जल्द कोई ठोस निर्णय ले और उसकी जानकारी काउंसिल को दे.

बार काउंसिल का निर्णय वकीलों के हित में नहीं है: राम सुभग सिंह
काउंसिल के निर्वाचित सदस्य राम सुभग सिंह ने कार्य बहिष्कार के निर्णय को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि कार्य बहिष्कार का निर्णय क्यों लिया गया यह समझ से परे है. काउंसिल ने बहुमत के आधार पर निर्णय लिया है, लेकिन यह निर्णय वकीलों के हित में नहीं है. इस पर काउंसिल को विचार करना चाहिए.

कार्य बहिष्कार से वकीलों को आर्थिक नुकसान हो रहा है : मनोज कुमार
वहीं झारखंड स्टेट बार काउंसिल के सदस्य मनोज कुमार ने अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए काउंसिल के निर्णय को अनुचित करार दिया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बार-बार के कार्य बहिष्कार से वकीलों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
कार्य बहिष्कार का फैसला काउंसिल के कुछ सदस्यों की जिद : रिंकू भगत
झारखंड स्टेट बार काउंसिल की एकमात्र महिला सदस्य रिंकू भगत ने कार्य बहिष्कार के फैसले को काउंसिल के कुछ सदस्यों की जिद बताया. उन्होंने कहा कि कार्य बहिष्कार करने से वकीलों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
धनबाद :कोर्ट में कामकाज ठप, जमानत के 48 आवेदनों पर नहीं हो सकी बहस
झारखंड स्टेट बार काउंसिल के आह्वान पर धनबाद बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं ने लगातार तीसरे दिन सोमवार को भी खुद को न्यायिक कार्यों से अलग रखा. कोर्ट परिसर में सन्नाटा पसरा रहा. जमानत के 48 आवेदनों पर बहस करने कोई अधिवक्ता नहीं पहुंचा. वहीं 16 मामलों में गवाहों का प्रति परीक्षण भी नहीं किया जा सका. मीडिएशन सेंटर में भी सुलह समझौते का काम बंद रहा. स्टेट बार काउंसिल स्टीयरिंग कमेटी के चेयरमैन राधेश्याम गोस्वामी और बार काउंसिल के मेंबर प्रयाग महतो ने कहा कि अधिवक्ताओं की एकता को सरकार नहीं तोड़ सकती. 7 जनवरी को मुख्यमंत्री ने जो वायदे किए हैं उससे लिखित रूप में काउंसिल को अवगत कराएं. धनबाद बार एसोसिएशन के महासचिव जीतेंद्र कुमार ने कहा कि हम काउंसिल के निर्णय के साथ हैं. धनबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेंद्र सहाय ने कहा कि सीएम के लिखित आश्वासन के बाद ही आंदोलन समाप्त होगा. सरकार हमारी मांगों पर पुनर्विचार करे.
हम बार काउंसिल के निर्णय के साथ हैं : धर्म कुमार वर्णवाल
अधिवक्ता धर्म कुमार वर्णवाल ने कहा कि सरकार जल्द से जल्द अधिवक्ताओं की मांग को पूरा करे, नहीं तो आंदोलन और तेज किया जाएगा. अधिवक्ता अपनी ही नहीं समाज के गरीब तबके के लोगों के हित की लड़ाई भी लड़ते हैं. सरकार को हमारी मांगों पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए.
मांगों की पूर्ति की लिखित सूचना दे : सुबोध कुमार सरकार
अधिवक्ता सुबोध कुमार सरकार ने कहा कि सरकार अधिवक्ताओं की मांग पर जल्द निर्णय लेकर बार काउंसिल को इसकी लिखित सूचना दे. सभी अधिवक्ता बार काउंसिल के निर्णय के साथ हैं. आगे काउंसिल का जैसा निर्देश होगा उसका पालन करेंगे.
जमशेदपुर : बिना सलाह-मशविरा किए ही कोर्ट फीस बढ़ा दी गई : आरसी कर
संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ जमशेदपुर में अधिवक्ताओं की हड़ताल जारी रही. अधिवक्ताओं ने इस पर खुलकर अपने विचार रखे. वरिष्ठ अधिवक्ता आरसी कर ने कहा कि झारखंड स्टेट बार काउंसिल का प्रयास सराहनीय है. इसे पहले ही उठाया जाना चाहिएथा. कोर्ट फीस संशोधन विधेयक बिना जनता की सलाह-मशविरा के ही विधानसभा में पास कर दिया गया. कोर्ट फीस में 5 से 6 गुणा बढ़ोतरी कर दी गयी है. ग्रुप बीमा और एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांगें जायज हैं. इसे सरकार को पूरा करना चाहिये. कोरोना काल में जमशेदपुर में 60 से 65 अधिवक्ता आर्थिक तंगी के कारण काल के गाल में समा गये, इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
जब वकील आंदोलन करते हैं, तो सरकार सिर्फ आश्वासन ही देती है : संजय मिश्रा
सीनियर अधिवक्ता संजय कुमार मिश्रा ने कहा कि जब अधिवक्ताओं द्वारा आंदोलन किया जाता है, तब सरकार की ओर से सिर्फ आश्वासन ही दिया जाता है. एक दशक से अधिवक्ता ग्रुप बीमा और एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार चुप्पी साधे हुए है. कोर्ट फीस को भी 5 रुपये से बढ़ाकर 20 रुपये कर दिया गया है. इसका सीधा असर आमलोगों पर पड़ रहा है. फीस बढ़ने से गरीब लोगों को केस लड़ने में परेशानी होगी. सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, ताकि गरीबों को भी सस्ता व सुलभ न्याय मिल सके.
वकीलों को इंश्योरेंस का भी लाभ नहीं मिलता, कोर्ट फीस बढ़ाना ठीक नहीं है : रीना सिंह
कोर्ट फीस बढ़ोतरी मामले पर अधिवक्ता रीना सिंह ने कहा कि वकील अपनी मांगों को बराबर सरकार तक पहुंचाते हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. तीन दिनों से राज्यभर के वकील हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह की पहल नहीं की जा रही है. मेडिक्लेम का भी लाभ नहीं मिलता है. एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट और ग्रुप इंश्योरेंस की मांग बिल्कुल जायज है. कोरोना काल में वकीलों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. अगर मेडिक्लेम का लाभ मिलता, तो कई वकीलों को फायदा होता. सरकार को कोर्ट फीस बढ़ाने के पहले विचार-विमर्श करना चाहिए था.
महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग से कॉमन रूम नहीं है : रीना सिंह
वहीं दूसरी वकील रीना सिंह का कहना है कि महिला अधिवक्ताओं की कुछ अलह ही समस्या है. अलग से कॉमन रूम तक की सुविधा नहीं दी गयी है. बाथरूम है भी तो उसकी साफ-सफाई रोजाना नहीं होती है. ऐसी कई समस्याएं हैं, जिसका समाधान होना चाहिए. वहीं कोर्ट फीस विधेयक पर कहा कि कोर्ट फीस 6 माह पहले 4 गुना बढ़ा दिया गया है. इससे आमलोगों को परेशानी हो रही है. अधिवक्ता सरकार से ग्रुप बीमा की सुविधा देने, एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने और बढ़ा हुआ कोर्ट फीस वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इस पर सरकार को गंभीर होना चाहिए.
कोर्ट फीस बढ़ा कर आम लोगों को परेशानी में डाल दिया : पी प्रधान
वरिष्ठ अधिवक्ता पी प्रधान ने कहा कि राज्य सरकार ने कोर्ट फीस विधेयक-2022 लागू कर आम लोगों को परेशानियों में डाल दिया है. कोर्ट फीस की वृद्धि से आम लोगों को न्याय नहीं मिलेगा. टाइटिल सूट दायर करने, सक्शेसन केस दायर करने या प्राइवेट केस दायर करने के लिए संबंधित संपत्ति के मूल्य के आधार पर दाख़िल सूट में कोर्ट फीस दाखिल करना पड़ता है. पहले तो यह 50 हजार हजार रुपये था. अब यह तीन लाख रुपये हो गया है. इससे आमलोगों को परेशानी होगी. इसे देखते हुए सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.
गिरिडीह: हड़ताल की वजह से नहीं हुआ काम लोग होते रहे परेशान
संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ वकीलों की हड़ताल तीसरे दिन सोमवार को भी जारी रही. गिरिडीह व्यवहार न्यायालय में वकील कोर्ट पहुंचे, लकिन न्यायिक कार्य में हिस्सा नहीं लिये. वे न्यायिक कार्यों से दूर रहे. स्टेट बार काउंसिल के आह्वान पर संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ वकील एकजुट रहे. इस वजह से न्यायालय में कामकाज ठप रहा. हड़ताल के कारण जिन मुवक्किलों की सुनवाई होनी थी, उन्हें परेशानी उठानी पड़ी. कई फरियादी दूरदराज के इलाकों से केस की सुनवाई के लिए कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो सकी. इस वजह से उन्हें घर वापस लौटना पड़ा. हालांकि इस बीच एक खबर यह भी है कि हड़ताल के बावजूद निबंधन कार्यालय में एक अधिवक्ता ने काम किया. इस संबंध में गिरिडीह अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष प्रकाश सहाय ने कहा कि इस मामले की जानकारी झारखंड स्टेट बार काउंसिल को दी जाएगी. कार्रवाई का अधिकार काउंसिल को ही है. कार्य बहिष्कार के दौरान सिविल कोर्ट का नजारा कुछ अलग ही था. अधिवक्ता अपने टेबल पर बैठे तो दिखे, लेकिन न्यायिक कार्यों से खुद को अलग रखा. इस तरह से उन्होंने बार काउंसिल के साथ खड़े होकर अपना विरोध जताया.
सीएम की घोषणा के बाद वकीलों की हड़ताल जायज नहीं : प्रकाश सहाय
संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ वकीलों की हड़ताल तीसरे दिन भी जारी रही. गिरिडीह सिविल कोर्ट में काम ठप रहा. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि सारे वकील कोर्ट फीस विधेयक के समर्थन में हैं. संशोधित कोर्ट फीस विधेयक को लेकर गिरिडीह व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं में मतभेद भी है. अधिवक्ताओं में कोई समर्थक है तो कोई हड़ताल विरोधी है. वहीं जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष प्रकाश सहाय हड़ताल में शरीक रहने के बाद भी सरकार समर्थक बयान दे रहे हैं. जबकि गिरिडीह जिला अधिवक्ता संघ के महासचिव सरकार विरोधी बयान दे रहे हैं. दोनों के बयान से हड़ताल लंबा चलने पर अधिवक्ताओं के दो खेमे में बंटने के पूरे आसार हैं. बता दें कि स्टेट बार काउंसिल के आह्वान पर अधिवक्ता विधेयक के खिलाफ हड़ताल पर हैं. हड़ताल को लेकर प्रकाश सहाय का कहना है सीएम हेमंत सोरेन की घोषणा के बाद 8 और 9 जनवरी की हड़ताल जायज नहीं है. सीएम कोर्ट फीस कम करने समेत अधिवक्ताओं को 5-5 लाख रुपए की हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस कराने की घोषणा कर चुके हैं. इसके अलावा सीएम ने अधिवक्ताओं को रिटायरमेंट पर 7 हजार रुपए की जगह 14 हजार रुपए देने और राज्य के सभी बार भवन को हाईटेक करने की घोषणा की है. घोषणा के बाद इसे धरातल पर कब तक उतारा जाएगा इसकी निश्चित तिथि घोषित किए जाने की मांग काउंसिल कर रहा है. सीएम की घोषणा के बाद प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाएगा. फिर प्रस्ताव को अनुशंसा के लिए भेजा जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया में एक-दो माह लगेंगे. सीएम को इसके लिए समय दिया जाना चाहिए. सीएम की घोषणा लागू नहीं होने पर पुनः आंदोलन किया जाएगा.
मंशा साफ नहीं है, घोषणा मौखिक की गयी है: चुन्नूकांत
गिरिडीह अधिवक्ता संघ के महासचिव चुन्नूकांत की राय अलग है. उनका कहना है कि सीएम की मंशा साफ नहीं है. राज्य के एडवोकेट जनरल को बुलाकर सीएम ने वायदे किए. स्टेट बार काउंसिल एक संवैधानिक संस्था है. काउंसिल से बातचीत किए बिना घोषणा कर देने का क्या मतलब? वार्ता के लिए काउंसिल को बुलाना चाहिए था. घोषणा लिखित नहीं करके मौखिक की गई है. सीएम की मंशा साफ रहती तो काउंसिल के पदाधिकारियों से सीधी वार्ता करते. वैसे सीएम की घोषणा स्वागत योग्य है, लेकिन घोषणा किए जाने का तरीका गलत है. घोषणाओं पर अमल कब किया जाएगा इसकी निश्चित तिथि सीएम घोषित करें? इसके बाद ही समझा जाएगा कि सीएम की मंशा साफ है.
सीएम पर भरोसा करना चाहिए : अजय कुमार सिन्हा
गिरिडीह अधिवक्ता संघ के सदस्य अजय कुमार सिन्हा का कहना है कि हड़ताल को लेकर आपसी मतभेद ठीक नहीं है. सीएम की घोषणा सही है. जब सीएम ने घोषणा की है तो समय पर पूरा होगा. काउंसिल को सीएम पर भरोसा करना चाहिए और कोर्य करना चाहिए. इसी में सबका भला है.
लातेहार : एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग लंबे समय से है: पंकज कुमार
संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ लातेहार के वकील हड़ताल पर रहे. वे कोर्ट पहुंचे, लकिन न्यायिक कार्य में हिस्सा नहीं लिये. वे न्यायिक कार्यों से दूर रहे. स्टेट बार काउंसिल के आह्वान पर संशोधित कोर्ट फीस विधेयक के खिलाफ एकजुट रहते हुए वकीलों ने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया. अधिवक्ताओं की राज्यव्यापी हड़ताल का समर्थन लातेहार जिला अधिवक्ता संघ से जुड़े सदस्यों ने किया. अधिवक्ता पंकज कुमार ने कहा कि एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग लंबे समय से की जा रही है. आए दिन अधिवक्ताओं के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट, गाली गलौज, यहां तक की उनकी हत्या की खबर अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं. इसके बावजूद एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट नहीं लागू करना खेद का विषय. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने गरीबों के लिए कोर्ट का रास्ता बंद कर दिया है. इसलिए कोर्ट फीस बढ़ोतरी को राज्य सरकार को वापस लेना चाहिए.
अब गरीबों के लिए न्याय पाना महंगा हो गया : नवीन कुमार गुप्ता
अधिवक्ता नवीन कुमार गुप्ता ने कहा कि अब गरीबों के लिए न्याय पाना महंगा हो गया है. क्योंकि सिविल केसों में जिस प्रकार फीस की वृद्धि की गई है, उससे सबसे ज्यादा परेशानी गरीब और आम लोगों को ही होगा. इस पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए. यह आम लोगों से जुड़ा मामला है.
कोर्ट फीस बढ़ोतरी का असर गरीबों पर भी पड़ेगा : संतोष रंजन
अधिवक्ता संतोष रंजन ने कहा कि कोर्ट का महंगा फीस गरीब कहां से वहन कर पाएगा. कोर्ट फीस बढ़ोतरी का असर गरीबों पर पड़ेगा. यदि वे केस नहीं लड़ेंगे तो उन्हें न्याय कहां से मिल पाएगा. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार तो सुलभ न्याय का वादा करती है, लेकिन इसे निभाती नहीं है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.