Jamtara: जिले के करमाटांड़ प्रखंड क्षेत्र के मोहनपुर पंचायत में रहते हैं नंदलाल मोहली. रहने के लिए उनके पास घर नहीं है. गांव में ही पेड़ के नीचे उन्होंने पत्नी खैनी देवी संग आशियाना बना रखा है. साल के हर मौसम और माहौल में ये दंपति यहीं रहते हैं. 12 साल से पेड़ ही इनका सहारा है. जहां ये रहते हैं.
नंदलाल का मूल गांव मोहनपुर पंचायत भवन के समीप मोहनपुर गांव के मौहली टोला है. इनकी 8 बेटियां और एक बेटा है. जिनमें से 4 बेटियों की शादी कर चुके हैं. नंदलाल के पास कहने को एक कमरे का कच्चा मकान है. जिसमें उनकी 4 बेटियां, एक बेटा, बहू और उनके बच्चे बहुत मुश्किल से रहते हैं. सरकारी आवास नंदलाल को मिला नहीं इसलिए 12 सालों से पेड़ के नीचे ही दिन काट रहे हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि 20 मीटर की दूरी पर ही कजरा जंगल है. और सर्दी के मौसस में खुले में रहना दंपति के लिए बड़ी चुनौती है.
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राशन कार्ड भी नहीं है दंपति के पास
नंदलाल के पास राशन कार्ड नहीं है. जिससे उन्हें अनाज भी नहीं मिलता है. वहीं जुलाई महीने में डीसी फैज अक अहमद मुमताज के निर्देश के बाद राहत मिली थी. डीसी के आदेश के बाद नंदलाल को राशन कार्ड मिला था. जिसके तहत प्रत्येक महीने 9 किलो चावल उन्हें मुहैया कराया जाता है. जिसमें से कुछ हिस्सा वे परिवार को देते हैं. और बाकी से अपनी गुजारा करते हैं. लेकिन वो भी उनके लिए पूरा नहीं पड़ता.
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सूप,डलिया बुनकर दो जून की रोटी की करते हैं जुगाड़
12 सालों से पेड़ के नीचे रह रहे नंदलाल और उनकी पत्नी बांस के सूप, टोपा व डलिया बनाते हैं. जिससे वह किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं.पेड़ के नीचे ही एक चूल्हा दंपति ने बना रखा है. जंगल से लकड़ी चुनकर लाते हैं और जैसे-तैसे बनाकर खाते हैं.
जब भी उस सड़क से जिला प्रशासन और प्रखंड के पदाधिकारी गुजरते हैं. तो उनकी नजर वहां जरूर पड़ती है. लेकिन उनका भी दिल कभी इस गरीब दंपत्ति पर नहीं पसीजा.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह वास्तविक गरीब सरकारी लाभ से वंचित हैं. तो प्रखंड क्षेत्र के हजारों पेंशन धारी, 20,000 से अधिक शौचालय, 5000 से अधिक आवास किन्हें मिल रही है.
तारणहार का है इंतजार
सड़क किनारे दिन काट रहे इस दंपति वहीं से गुजरने वाली गाड़ियों को उम्मीद से देखते हैं. और कहते हैं कि शायद उनपर भी किसी नजर जायेगी. उन्हें भी आवास और भोजन की सुविधा मिलेगी.
लेकिन नंदलाल ये भी कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में अब किसी से कोई उम्मीद भी नहीं रही. साथ ही कहा कि उन्हें सरकार की पेंशन सुविधा भी नहीं मिल पा रही है. अब तो टोकरी बुनकर ही जो खर्च निकलता है, उसी का सहारा है.
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