Patna: राजनीति में न कोई दोस्त होता है और न ही शत्रु. यही वजह है कि यहां विरोध के बावजूद किसी दल का दरवाजा बंद नहीं होता है. लोग आते हैं. नेता पार्टी बदलते हैं और गठबंधन की राजनीति चलती रहती है. दरवाजे वाली बात बिहार की राजनीति उठती रहती है. इस बार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की ओर से उठाया गया है. तेजस्वी ने यह कह कर राजनीतिक जगत में खलबली मचा दी कि नीतीश कुमार का तीन बार कल्याण कर दिया. अब उनके लिए सभी दरवाजे बंद हैं. ये वे लोग हैं जिन्हें महागठबंधन में वापस आने की तड़प उठती है तो गिड़गिड़ाकर हमारे पैर पकड़ लेते हैं कि हमको ले लीजिए, लेकिन अब कोई मतलब नहीं है, उनलोगों को वापस लेने का. फल देने वाले वो तो हैं नहीं, फल देने वाली जनता होती है. उनसे और क्या अपेक्षा कर सकते हैं. ठीक है, दो-तीन बार हमलोगों ने कल्याण कर दिया है. बचा दिया है उनलोगों को. अब कोई मतलब नहीं है उनलोगों को वापस लेने का.
बता दें कि इस बार लोकसभा चुनाव के कुछ माह पहले महागठबंधन का जब नीतीश कुमार हाथ धाम थामे हुए थे तो भाजपा के कद्दावर नेता लगातार नीतीश कुमार पर प्रहार कर रहे थे. तब पलटू राम जैसे संबोधन इस्तेमाल किए जाते थे. लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आते गया भाजपा के प्रहार में काफी तीखापन आ गया. तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नवादा में एक रैली में नीतीश सरकार पर हमला बोलते कहा कि नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में शामिल होने का कोई प्रश्न ही नहीं है. नीतीश सरकार बुरी नीयत और बुरी नीति की वाली सरकार है.
शाह ने कहा था कि जदयू के आधे सांसद भाजपा के दरवाजे खटखटा रहे हैं. पर स्पष्ट तौर पर कह देना चाहता हूं कि अगर किसी को संशय हो कि चुनाव के परिणामों के बाद नीतीश बाबू को भाजपा फिर से एनडीए में लेगी, तो मैं बिहार की जनता को स्पष्ट कह देना चाहता हूं और ललन सिंह को भी स्पष्ट कह देना चाहता हूं कि आपके लिए एनडीए के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. हालांकि बाद में ऐसी बात नहीं रही और नीतीश फिर से एनडीए का हिस्सा बन गए.
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