Dumka: विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बाबा बासुकीनाथ मंदिर के गुंबद से मंगलवार को पवित्र पंचशूल एवं त्रिशूल उतारा गया, इसके साथ ही तीन दिवसीय महाशिवरात्रि का शुभारंभ हो गया. महाशिवरात्रि को लेकर महादेव-पार्वती के ध्वज के साथ मंदिर परिसर में स्थित अन्य गुंबदों से ध्वज उतारा गया. इन ध्वजों को महाशिवरात्रि के दिन पुनः गुंबद में स्थापित किया जायेगा.
पंचशूल उतारने के समय मंदिर प्रांगण में शिव भक्तों की भीड़ भोले के जयकारे लगा रही थी. वहीं मंदिरों से उतारे गये सभी धर्म ध्वजाओं को प्रसाद रूप में पाने की लालसा लिए सभी भक्त अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए.
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दुमका डीसी की अध्यक्षता में हुई बैठक
बताते चलें कि महाशिवरात्रि की तैयारी को लेकर दुमका डीसी राजेश्वरी की अध्यक्षता में मंदिर के प्रशासनिक सभागार में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई. इस बैठक में जिला प्रशासन से संबद्ध विभिन्न विभागों के पदाधिकारियों एवं पंडा समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. बैठक में वैश्विक महामारी कोरोना को मद्देनजर रखते हुए पारंपरिक तरीके से महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाने का फैसला लिया गया. श्रद्धालुओं की उमड़ने वाली भीड़ पर नियंत्रण रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की जायेगी.
इस बार नहीं लगेगा महाशिवरात्री का मेला
इसके अलावा बैठक में स्वास्थ्य विभाग को सक्रिय रखने की बात कही गई. हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर लगने वाला मेला इस बार कोरोना के कारण नहीं लगेगा. दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा कि महाशिवरात्रि की तैयारी जोरों पर हैं. बहुत दिन के बाद मंदिर में इस तरह का आयोजन हो रहा है इस लिए भीड़ भी अधिक होगी. इसको देखते हुए तैयारी की जा रही है. साथ ही महाशिवरात्रि के सफल आयोजन के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. हर छोटी बड़ी चीज पर बारीकी से नजर रखी जा रही है.
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बाबा बासुकीनाथ का इतिहास
दुमका के बासुकिनाथ में स्थित भगवान नागेशनाथ का फौजदारी दरबार शिवभक्तों से गुलजार बना हुआ है. यह देश के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक कामना लिंग है. फौजदारी बाबा के रुप में विख्यात बासुकिनाथ में नागेश ज्योर्तिलिंग का यह दरबार भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करता है.
आइये जानते हैं बाबा बासुकीनाथ का इतिहास
दुमका जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर बाबा बासुकिनाथ का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि यहां आनेवाले श्रद्धालुओं को बाबा की विशेष कृपा प्राप्त होती है. सावन में श्रद्धालु देवघर में जल चढ़ाने के बाद बाबा बासुकीनाथ जरूर आते हैं. कहते है कि एक हजार साल पहले जब हिंदुस्तान में अकाल पड़ा था उस समय लोग कंद मूल खाकर जीवन यापन कर रहे थे. संताल परगना के इसी दारुक वन में बाबा बासु नाम का एक आदमी कंद मूल की खोज में मिट्टी खोद रहा था. मिट्टी खोदने के क्रम में उसका औजार जमीन में किसी वस्तु से टकराया और उस वस्तु से खून निकलने लगा. यह देख बासु भागने लगा तभी आकाशवाणी हुई और स्वयं नागेशनाथ ने बासु को सेवा करने के लिए कहा.
वहां से स्नान करने के बाद बासु को एक शिवलिंग प्राप्त हुआ. भगवान भोलेनाथ ने बासु को स्वपन में उसी के नाम से पूजा करने का आशीर्वाद दिया. और उसके बाद से ही यह स्थान बासुकिनाथ के नाम से जाने जाना लगा.