Faisal Anurag
कोविड के दूसरे लहर की आशंका के बीच संसदीय समिति की एक रिपार्ट में कोविड-19 महामारी से निपटने के सरकारी उपायों पर कडी टिप्पणी की गयी है. महामारी को रोकने के लिए उठाये गये कदमों और टेस्टिंग को लेकर उठाये गये अनेक सवालों की पुष्टि इस रिपोर्ट में की गयी है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की स्थाई समिति ने उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को शनिवार को यह रिपोर्ट सुपुर्द की गयी. इस रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में कम टेस्टिंग और खराब कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की वजह से कोविड मामलों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिली.
आमतौर पर केंद्र सरकार का दावा रहा है कि उसने कोविड रोकथाम के लिए शुरूआत से ही ठोस कदम उठाये हैं और उसके प्रभाव को कम करने में वह कामयाब रही है. संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, महामारी विशेष कैडर का भी, जिन पर ऐसे प्रकोप से निपटने का ज़िम्मा होता है, पूरी तरह उपयोग नहीं किया गया.
123वीं रिपोर्ट में स्थाई समिति ने कहा ‘समिति का मानना है कि देश में कोविड मामलों में हुए बेतहाशा बढोत्तरी की वजह खराब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और कम टेस्टिंग है. समिति कम भरोसेमंद डायग्नोस्टिक टेस्टों के इस्तेमाल को लेकर भी चिंतित है, जिनसे ग़लत निगेटिव रिपोर्ट्स की संभावना बढ़ती है. हालांकि रैपिड एंटिजेन टेस्ट के जल्दी मिल सकते हैं, लेकिन ये गोल्ड स्टैंडर्ड आरटी-पीसीआर जितने भरोसेमंद नहीं हैं. ऐसे टेस्टों के बड़े पैमानों पर इस्तेमाल से, जिनकी संवेदनशीलता कम होती है, गलत निगेटिव नतीजे सामने आ सकते हैं, जिससे आगे चलकर कोविड-19 को रोकने की रणनीति, पटरी से उतर सकती है’. संसदीय समिति की रिपोर्ट उन आलोचकों के तथ्यों को पुष्टी कर रही है जो मार्च से ही सरकार के उपायों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. समिति ने कहा है, रैपिड एंटिजेन की सत्यता का मूल्यांकन किया जाये, ताकि देश में टेस्टिंग क्षमता की सही तस्वीर सामने लायी जा सके.
कम-विश्वसनीय एंटिजेन टेस्टों पर ज़रूरत से अधिक निर्भरता को लेकर भी समिति ने आशंका जतायी है और कहा कि इससे सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ लड़ाई, पटरी से उतर सकती है.
कोरोना वायरस के दूसरे लहर की आशंका के बीच इस रिपोर्ट की अहमितय बढ़ जाती है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि कोविड का सेकेंड वेब घातक साबित हो सकता है. यूरोप और अमेरिका में इस लहर का कहर महसूस किया जा रहा है. स्पेन,फ्रांस,ब्रिटेन और जर्मनी सहित अनेक देशों में या तो लॉकडाउन या इमरजेंसी की घोषणा की जा चुकी है. भारत के भी कई राज्यों में संक्रमित मरीजों की संख्या में छलांग आ गयी है. दिल्ली में इसके असर को देखते हुए सतर्कता बरती जा रही है.
अब तक उत्तर प्रदेश, पंजाब,हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के लिए उच्चस्तरीय केंद्रीय दलों को भेजा गया है. इसके अलावे देश के आधे दर्जन शहरों में रात का कफ्यू लागू किया गया है. त्योहारों के दौरान बरती गयी लापरवाही को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने भी चिंता प्रकट किया है. महाराष्ट्र सरकार दिल्ली और दूसरे राज्यों में बढ़ते कारोना वायरस प्रभाव को देखते हुए रेल और हवाईमार्ग की सेवाओं को रोकने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है. 9 महीनों में स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाओं में विस्तार किये जाने के बावजूद अब भी अनेक तरह की कमियां मौजूद हैं. खासकर पिछले छह महीनों में अस्पतालों की व्यवस्था और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी महसूस की जाती रही है.
दिल्ली,हरियाणा,पंजाब,राजस्थान,गुजरात,मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश में एक्टिव केसों में उछाल देखा गया है. कई राज्यों खासकर बिहार में जिस तरह चुनाव और त्योहारों के दिनों में लापरवाही बरती गयी है, उसे लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ बेहद गंभीर हैं. सावधानी बरतने में की जा रही कोताही एक बड़े संकट को पैदा कर सकती है. विशेषज्ञों की इस राय को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. ट्रेसिंग,टेस्टिंग और ट्रीटमेंट के मान्य फार्मुले को लेकर विशेषज्ञ जोर दे रहे हैं.
संसदीय समिति की 123वीं रिपोर्ट में उठाये गये सवालों पर सरकार को गंभीरता से विचार कर ठोस कदम उठाने की जरूरत है. दुनियाभर के जानकार टेस्टिंग के तौर तरीकों और प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 91 लाख के करीब पहुंच चुकी है और 1 लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.