Brijendra Dubey
मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई में भी इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश हो चुकी है. बारी-बारी दोनों के पक्ष में जवाब मिल चुके हैं – और एक जवाब तो यही है कि न मंडल, न कमंडल ये वक्त ही तय करता है कि हाथी नाव पर होगा, या नाव हाथी को नदी पार कराएगी. बीते एक दशक से भारतीय राजनीति में धर्म का ही बोलबाला महसूस किया गया, लेकिन अब वही राजनीति जाति की तरफ जाती हुई दिख रही है. भाजपा के लिए यह बहुत ज्यादा परेशान करने वाली बात है. तभी तो आरएसएस ने अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़ाव बनाये रखने के लिए धार्मिक सम्मेलन का प्लान किया है. और यह बीड़ा थमाया गया है सबसे विश्वसनीय संगठन विश्व हिंदू परिषद को. वही विहिप जिसने हिंदुत्व की राजनीति को ऐसी धार दी कि भाजपा सहयोगी दलों के साथ केंद्र सत्ता से बाहर होने के बाद फिर से काबिज हो गई, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनते ही, हालत यह हो गई, जिसकी उस खेमे में कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी – लोकसभा चुनाव में भाजपा अयोध्या ही हार गई. भाजपा को अयोध्या हराने वाले इंडिया ब्लॉक की असली ताकत राहुल गांधी को तभी महसूस हुई जब 4 जून, 2024 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और फिर वे सारी भूल-चूक-लेनी-देनी को दरकिनार कर मिशन को पूरा करने निकल पड़े हैं.
बीते एक दशक में भाजपा ने राहुल गांधी का जीना हराम कर रखा था, यह तो पूरा गांधी परिवार मानता है. 2014 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल जाने के बाद राहुल गांधी को वे सारे दिन और रातें भी देखनी पड़ीं, जिनके बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. मां सोनिया गांधी के साथ कोर्ट में जाकर जमानत कराने से लेकर, ईडी के दफ्तर जाकर अफसरों के सामने पूछताछ के लिए पेश होने तक. कुछ देर के लिए तो गिरफ्तारी तक का खतरा भी मंडराने लगा था. राहुल लगे रहे. अपने हिसाब से अपनी लड़ाई लड़ते रहे. एक एक करके सारे ही हथियार नाकाम होते जा रहे थे, लेकिन बंदा चलता रहा. लंबी भारत जोड़ो यात्रा के बाद, एक और न्याय यात्रा भी पूरी की. तब भी, जब ज्यादातर गठबंधन साथी नाराज हो गये. नीतीश कुमार ने तो साथ ही छोड़ दिया.
ब्यूटी कॉन्टेस्ट में राहुल के जातीय ऐंगल खोजने को लेकर भाजपा नेता मजाक उड़ा रहे हैं. पप्पू वाली बातें बालक बुद्धि पर आ चुकी हैं, लेकिन राहुल गांधी को अब ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. बिलकुल वैसे ही जैसे संसद में अनुराग ठाकुर की बातों से बेअसर रहे थे. अनुराग ठाकुर का कहना था, जिनकी जाति का कुछ पता ही नहीं है, वे भी जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं. राहुल गांधी जातीय राजनीति के असर को जो दूर तक देख चुके हैं. प्रयागराज में संविधान का सम्मान और उसकी रक्षा कार्यक्रम में हिस्सा लेते वक्त राहुल गांधी सवाल उठाते हैं, मैंने मिस इंडिया की लिस्ट चेक की… इसमें कोई दलित, आदिवासी या ओबीसी महिला नहीं थी… प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश सुपर पावर बन गया… कैसे सुपर पावर बन जाएगा, जब 90 फीसदी लोग सिस्टम से बाहर बैठे हैं.
यह बात राहुल गांधी ने कोई पहली बार नहीं कही है. संसद का विशेष सत्र बुलाकर जब महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया था, तब भी राहुल गांधी ने ऐसी बातें की थी. राहुल गांधी ने तब केंद्र सरकार में तैनात ओबीसी सचिवों की संख्या का मुद्दा उठाया था – और वैसे ही बजट सत्र में हलवा बनाये जाने को लेकर भी सवाल खड़ा किया था. राहुल गांधी की मंशा तो भाजपा के रणनीतिकारों और सलाहकारों को तभी समझ लेनी चाहिये थी, जब राहुल गांधी महिला आरक्षण के मामले में अपने ही पुराने स्टैंड से यू-टर्न ले लिया था.
जिस मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव और लालू यादव की पार्टियों के विरोध के चलते कांग्रेस चाह कर भी महिला बिल नहीं पास करा सकी, उसी मुद्दे पर खुद राजी ही नहीं हुई, बल्कि ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग नये सिरे से शुरू हो गई. भाजपा को ये बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर उसके एनडीए साथी चिराग पासवान और नीतीश कुमार भी राहुल गांधी के साथ ही खड़े नजर आ रहे हैं. भाजपा कैसे भूल जाती है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर एक बयान से 2015 के बिहार में हार का मुंह देखना पड़ा था. और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तो भाजपा के खिलाफ संविधान बदल कर आरक्षण खत्म करने की आशंका वाला नैरेटिव चला ही दिया और भाजपा को यूपी में 33 सीटों पर सिमट जाना पड़ा.
बता दें कि राहुल गांधी की जातीय राजनीति के निशाने सिर्फ बीजेपी नहीं है, बल्कि वे सारे ही राजनीतिक दल हैं जिनकी कास्ट वोट बैंक से ही डायनेस्टी पॉलिटिक्स चलती है. अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के साथ साथ चिराग पासवान के भी सुर में सुर मिलाने की सबसे बड़ी वजह भी यही है. जब कांग्रेस में संगठन का चुनाव चल रहा था, तो शशि थरूर ने मल्लिकार्जुन खरगे को चैलेंज किया था. वे चुनाव तो हार गये, लेकिन शशि धरूर ने तब एक बहुत बड़ी बात कही थी. शशि थरूर का कहना था कि कांग्रेस को अपने कोर वोट बैंक के पास जाना चाहिए और रूठे हुए को मना कर वापस लाना चाहिए. हो सकता है तब शशि थरूर की बातों को अन्य कांग्रेस नेताओं ने हवा में उड़ा दिया हो, लेकिन राहुल गांधी के मिशन में तो लगता है कि शशि थरूर के सुझाव को गंभीरता से लिया गया है.
राहुल गांधी का मिस इंडिया के मामले में भी जातीय ऐंगल ढूंढ लेना यूं ही नहीं है. राहुल गांधी अपने वोटर तक अपना संदेश अच्छी तरह पहुंचा रहे हैं और राहुल का वोटर धीरे धीरे मानने लगा है कि कोई तो है जो उनकी बात उठा रहा है. बिहार की राजनीति में लालू यादव को सोशल जस्टिस का पुरोधा माना जाता है. जैसे बिहार में राजद का वोटर कहता है कि सड़कें भले न बनवाई हो, विकास भले न किया हो लेकिन लालू यादव ने समाज में वंचित तबके को जो इज्जत दिलाई है, वह सबसे बड़ी बात है और राहुल गांधी भी राजनीति की उसी राह पर फिर से चल पड़े हैं. राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर उनका वोटर मान कर चल रहा है कि देर हो सकती है, लेकिन अंधेरा खत्म होकर रहेगा.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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