– किसी ने अपना पति-बेटा गिरवी रखा तो किसी ने घर-जमीन और देह,
– नावाबाजार में कर्ज से दबे एक व्यक्ति ने की आत्महत्या
Arun Kumar Singh
Medininagar: नावाबाजार के नजबुदीन उर्फ महंगू ने मंगलवार को कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली. इस आत्महत्या की पूरी कहानी आपको बेचैन कर देगी. दरअसल नावाबाजार में कुछ स्थानीय सूदखोर हैं जो दस रुपये प्रति सैंकड़ा के दर से ब्याज लगाते हैं. ऐसे ही एक व्यक्ति ने नजबुदीन को सुनहरे सपने दिखाकर उसे कर्ज दिया और शेष राशि फाइनेंस करवाकर दो ट्रक खरीदवा दिया. बाद में वह सूद की राशि के लिए उसके सिर पर सवार रहने लगा. ट्रक से मृतक को उतनी ही कमाई हुई जितने में वह सूद भर सकता था. वह फाइनेंसर का किस्त समय पर नहीं भर सका तो उसकी दोनों गाड़ी फाइनेंस कंपनी वालों ने खींच ली. इसके बाद भी वह कर्ज में डूबा था.
तगादा करने वाले हर दिन उसे जलील कर रहे थे. आखिरकार उसने फांसी लगा ली. फांसी लगाने वाले स्थान से पुलिस ने सल्फास और पानी का बोतल भी बरामद किया है. यह कोई पहली और इकलौती घटना नहीं है. पलामू के हर शहर, कस्बे और गांव में अधिकतर लोग कर्ज में डूबे हैं. काम मिलने की उम्मीद पर कर्ज लिया, काम मिला नहीं. रोजगार चलने की उम्मीद पर कर्ज लिया, रोजगार चला नहीं. खेती किसानी ईश्वर भरोसे है. पिछले दो साल से मॉनसून दगा देते आ रहा है. महंगाई बेतहाशा बढ़ रही है और खर्चे भी. नयी पीढ़ी से उम्मीद थी, जो रात दिन मोबाइल में या तो रील देखने में मगन है या बनाने में. इन सारी स्थितियों के बीच फंसा हुआ परिवार का मुखिया, जो आत्महत्या जैसा गलत निर्णय ले रहा है.
सूदखोरों के चंगुल में फंसी है 60-70% आबादी
सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में पिछले एक युग से काम कर रही संस्था ‘युद्ध’ ने पलामू के ग्रामीणों के वर्तमान हालात का अध्ययन करते हुए एक ऐसा आंकड़ा पेश किया है जो प्रबुद्ध व्यक्तियों को डरा सकता है. संस्था की एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि पिछले पांच वर्षों में पलामू के ग्रामीण इलाकों के लोगों की स्थिति बद से बदतर हुई है. लगभग 60 से 70% आबादी सूदखोरों के चंगुल में फंस गयी है. ये सूदखोर मॉडर्न हैं जो गांव गांव घूमकर मजबूर, बेबस और बेरोजगार लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. वक्त पर सूद सहित इनकी राशि न लौटा सकने वाले कई लोग आत्महत्या कर चुके हैं और कई उस कगार पर खड़े हैं. कई महिलाओं ने तो मानव तस्करी में शामिल लोगों के हाथों पैसा लेकर अपने बेटे और पतियों तक को गिरवी रख दिया है. कई ने खेत भी बेचे और किसी-किसी का घर तक बिका. कई महिलाओं के साथ कर्जदारों ने दैहिक बदसलूकी तक की.
‘युद्ध’ के संयोजक अम्बिका सिंह ने बताया कि हर प्रखंड अथवा अनुमंडल मुख्यालय में कई नॉन-बैंकिंग या फाइनेंस कंपनियां बैठी हुईं हैं. ये कंपनियां कानूनी रूप से अपना व्यवसाय कर रहीं हैं अथवा गैरकानूनी रूप से, इसे देखने की जहमत उस इलाके में बैठे हुए सक्षम अधिकारी नहीं उठाते. जब ऐसी संस्थायें आम लोगों को करोड़ों का चपत लगा जाती हैं अथवा कोई गंभीर शिकायत मिलती है तो संबद्ध अधिकारी कुछ पल के लिए जगते हैं. अखबारों में ‘कड़ी कानूनी कार्रवाई’ से सम्बद्ध उनके बयान छपते हैं और फिर मामला रफा-दफा हो जाता है.
महिलाओं को एक लाख रुपये तक का लोन बांटते हैं
रिजर्व बैंक के संबद्ध नियमों को ताक पर रखकर बिना किसी संबद्ध कागजात के कई ऐसे मिनी और फाइनेंस बैंक चलाये जा रहे हैं जिन्हें आप मॉर्डन सूदखोर कह सकते हैं. ये अपने ग्राहकों से सालाना 26 से 30 प्रतिशत तक ब्याज वसूल रहे हैं. पलामू जिले का शायद ही कोई शहर या कस्बाई इलाका हो, जहां ऐसे संस्थान न हों. विभिन्न नाम से शहरों में ये दर्जनों के हिसाब से हैं जिनके यहां कार्यरत लोग गांव गांव में घूम घूमकर महिलाओं को 20 हजार से लेकर एक लाख रूपये तक का लोन बांटते हैं. कुछ तो लोन देने के नाम पर प्रति व्यक्ति हजार-पांच सौ रुपये वसूल कर भाग भी चुके हैं. इन सूदखोरों के विरूद्ध जब भी कोई भुक्तभोगी शिकायत करता है तो पहले तो संबद्ध अधिकारी उसे न्याय का भरोसा दिलाते हैं लेकिन बाद में अक्सर ‘खेला’ हो जाता है और कोई कार्रवाई नहीं होती.
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