New Delhi : सेम सेक्स मैरिज (समलैंगिक विवाह) पर आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर फैसला सुनाया. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराये जाने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए आज मंगलवार को कहा कि विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है और न्यायालय कानून की केवल व्याख्या कर सकता है, उसे बना नहीं सकता. पीठ ने चार अलग-अलग फैसले सुनाये.
वैवाहिक समानता मामला | सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय…
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 17, 2023
#WATCH | Supreme Court refuses to give marriage equality rights to the LGBTQIA+ community in India
Lawyer Karuna Nundy says, “…There were some opportunities today that I believe has been pushed off to the legislators and the central govt has made their stand clear with regards… pic.twitter.com/BerEKzHmCY
— ANI (@ANI) October 17, 2023
सेम सेक्स मैरिज मामले में चार अलग-अलग फैसले
प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा, इस मामले में चार अलग-अलग फैसले हैं. उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है. अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जायेगा.
फैसला सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों वाली इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं. CJI के अलावा न्यायमूर्ति कौल, न्यायमूर्ति भट और न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने अलग-अलग फैसले लिखे हैं.
अदालत केवल कानून की व्याख्या कर सकती है
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ नेकहा कि यह अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है. उन्होंने साथ ही कहा, समलैंगिकता केवल शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं है. उन्होंने कहा, विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय संसद को करना है.
CJI ने कहा, अपना साथी चुनने का अधिकार सबको है
CJI ने कहा, अपना साथी चुनने का अधिकार सबको है. अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन जीना सभी का मौलिक अधिकार है. सरकार को खुद नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. कहा कि विवाह को कानूनी दर्जा जरूर मिला हुआ है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है.
सरकार इस तरह के संबंधों को कानूनी दर्जा दे
स्पेशल मैरिज एक्ट को अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को शादी करने देने के लिए बनाया गया है. समलैंगिक विवाह के लिए इसे निरस्त कर देना गलत होगा. CJI का कहना था कि अगर इसी कानून (स्पेशल मैरिज एक्ट) के तहत समलैंगिक विवाह को दर्जा दिया तो इसका असर दूसरे कानूनों पर भी पड़ेगा. यह सब विषय संसद देखे.
CJI ने कहा, सरकार इस तरह के संबंधों को कानूनी दर्जा दे, ताकि वे जरूरी कानूनी अधिकार हासिल कर सकें. बता दें कि सुनवाई के क्रम में सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह कल्पना करना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा. किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है. बता दें कि इस मामले में 21 समलैंगिक जोड़ों द्वारा याचिका दायर की गयी थी. याचिककर्ताओं ने मांग की थी कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी जाये. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
सेम सेक्स मैरिज पर सरकार का पक्ष
समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि इस मुद्दे पर कानून बनाने का हक सरकार का है. सरकार की दलील थी कि यह ना सिर्फ देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है, बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 160 प्रावधान बदलने पड़ेंगे. पर्सनल लॉ में बदलाव करना होगा.
संविधान पीठ ने सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था
पांच साल पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया था. पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी थी. पहले IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध करार दिया गया था. जान लें कि दुनिया में 33 देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता मिली हुई है. 10 देशों की कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी है. 22 देश में कानून बनाकर मान्यता दी गयी है
ताइवान पहला एशियाई देश है, जहां मान्यता मिली
2001 में नीदरलैंड ने सबसे पहले समलैंगिक विवाह को वैध कहा. ताइवान मान्यता देने वाला पहला एशियाई देश बना. हालांकि कुछ बड़े देशों में सेम सेक्स मैरिज वैध नहीं है. 64 देशों में सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध माना गया है. सजा के तौर पर मृत्युदंड तक का प्रावधान है. मलेशिया ने समलैंगिक विवाह को अवैध करार दिया है, पिछले साल सिंगापुर ने प्रतिबंध तो खत्म कर दिये लेकिन शादियां मान्य नहीं है