Lagatardesk : सान्या मल्होत्रा की फिल्म मिसेज ने खूब सुर्खियां बटोरी है. यह फिल्म एक नवविवाहित महिला की कहानी बताती है, जिसे प्रतिगामी कई परंपराओं से निपटना पड़ता है. लेकिन हाल ही में इस फिल्म को आलोचना का भी सामना करना पड़ा.
Why are we opposing this movie called Mrs?
Feminists have a simple habit. For example,
– They demand alimony laws for a woman with 2 kid, who is married for 15 years. But once the law is made, they apply same law for alimony to a woman with 6 months marriage and no kids.
-… pic.twitter.com/4VYnc7l3l4— SIFF – Save Indian Family Foundation (@realsiff) February 15, 2025
“>
दरअसल एसआईएफएफ (सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन) मे एक्स पर पोस्ट शेयर किया है.जिसमें उन्होंने लिखा- कि घर के काम इतना बोझिल नहीं हैं. जितना उन्हें दिखाया गया. खाना बनाना, कपड़े धोना और कपड़ों को प्रेस करना जैसे काम बहुत ज्यादा स्ट्रेस नहीं देते.
क्या सच में किचन में काम करते वक्त और गैस स्टोव पर खाना बनाते वक्त या ग्लव्स पहनकर बर्तन धोते टाइम एक महिला को इतना तनाव महसूस होता है .बिल्कुल नहीं बल्कि कुकिंग करना मेडिटेशन करने जैसा है.
उन्होंने आगे लिखा- ‘पुरुषों से 50% घरेलू कामों में हिस्सा लेने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. यह तर्क दिया गया कि महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा फाइनेंशियल सपोर्ट और बच्चों का साथ मिलता है. पुरुषों को कभी भी 50% घरेलू कामों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि 70-80% घर के सामान, कपड़े, फर्नीचर और गैजेट महिलाओं को पसंद होते हैं और वे ही उनका ज्यादा इस्तेमाल करती हैं.
यहां तक कि बच्चे भी बुढ़ापे में या किसी और चीज में पिता से ज्यादा मां की तरफ होते हैं. फिर पुरुषों को 50% घरेलू काम क्यों करना चाहिए . पुरुष भी बिना सैलरी के काम करते हैं जैसे कि चीजों को ठीक करना, गाड़ी चलाना, बिना सैलरी के फैमिली की सुरक्षा करना और देखभाल करना. इसीलिए पुरुषों को 20-25% से ज्यादा घरेलू काम नहीं करना चाहिए’.
निर्माता हरमन बावेजा ने दिया जवाब
एसआईएफएफ की आलोचना पर रिएक्श देते हुए मिसेज के निर्माता हरमन बावेजा ने कहा कि फिल्म में ये मैसेज नहीं दिया दिया गया है कि सारे पुरुष एक जैसे होते हैं. सबसे घर की कहानी अलग-अलग है. फिल्म एक खास महिला के एक्सपीरियंस को दिखाती है जिससे भारत की ज्यादातर महिलाएं सहमत हैं. जो लोग इस तरह की जिंदगी नहीं भी जी रहे हैं वे भी फिल्म में दिखाए गए संघर्षों को समझ रहे हैं. हरमन ने कहा, ‘फिल्म का मैसेज एकदम स्पष्ट है, हम जो भी करते हैं उसके लिए एक दूसरे का सम्मान करें. मैं भी अपनी पत्नी से प्यार करता हूं और उनका सम्मान भी करता हूं.