Nishikant Thakur
पंजाब से अभी-अभी आतंकवाद का खत्मा हुआ था, लेकिन समाज में अभी भी दहशत का माहौल बरकरार था. उसी समय मेरा स्थानांतरण करके पंजाब से प्रकाशित होने जा रहे अखबार को स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई. दहशत के माहौल में पंजाब जाना इसलिए कठिन लगता था; क्योंकि आतंकवाद का दुष्प्रचार अभी खत्म नहीं हुआ था और तरह-तरह की अफवाहों का बाजार गर्म था. लेकिन काम तो काम है. इस बात को जब मैंने अपने एक सहयोगी से कहा, तो उन्होंने कहा कि इस प्रदेश में कुछ दिन रह लीजिए, फिर आप यहां के समाज से ऐसे घुलमिल जाएंगे कि आप इसी प्रदेश के होकर रह जाएंगे. और सच में ऐसा ही हुआ. वहां के समाज ने इतना अपनापन और प्यार दिया कि मैं अभिभूत हो गया. पंजाब के लोग जितने साहसी होते हैं, उतने ही बड़े दिल के भी होते हैं. कभी भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि यहां कभी आतंकवाद था और यहां के समाज का कोई भी व्यक्ति आतंकवाद का समर्थक है. वे अपनी मेहनत और अपनी कर्मठता पर गर्व करते थे और उन्हें इसका फख्र भी था. पिछले कुछ वर्ष पहले हुई घटनाओं का उन्हें अफसोस था कि उनका राज्य उस कालखंड में पिछड़ गया. अपने साहसी और कर्मठता के कारण जिस गति से वह विकसित हो रहा था आतंकवाद के उस कालखंड में वह गति धीमी हो गई थी. पर आज फिर से संभलकर वह प्रदेश देश के शीर्ष पर है.
लेकिन, आज फिर देश ही नहीं, विदेश में जाकर अपनी हरकतों से समाज को डरा रहे हैं, भारत के प्रति विष वमन करके विश्व का ध्यान अपनी बेतुकी मांग को लेकर आकर्षित कर रहे हैं. दुर्भाग्य तो यह है कि वहां की सरकार भी उनका समर्थन कर रही है, जो कभी भारत का अच्छा मित्र था और जहां शिक्षा के लिए भारत के विद्यार्थी और रोजगार पाने के लिए पढ़े-लिखे लोग जाना पसंद करते थे. जहां हिन्दू-सिख भाईचारा उदाहरण के रूप में दिया जाता था. आज वही सिख, हिंदुओं के मंदिरों पर हमला कर रहे हैं. सूचनाओं को मानें, तो ब्रैंपटन में हिंदुसभा मंदिर के पास खालिस्तान समर्थकों का विरोध-प्रदर्शन हिंसा में बदल गया. हमलावर मंदिर में जबरन घुस गए,
श्रद्धालुओं की पिटाई की, महिलाओं और बच्चों के साथ बेरहमी की. वैसे ही हिंदुओं पर हमले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया. उधर, हिन्दू संगठन ने कहा है कि खालिस्तानी उग्रवाद से निपटने तक नेताओं को मंदिरों का इस्तेमाल नहीं करने देंगे. कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा है कि हैम्पटन के हिंदू सभा मंदिर में हुई हिंसा स्वीकार्य नहीं है. हर कनाडाई को अपने धर्म का स्वतंत्र तरीके से और सुरक्षित माहौल में पालन करने का अधिकार है. भारतीय समुदाय की सुरक्षा और इस घटना की जांच के लिए तुरंत कार्यवाही करने पर पील क्षेत्रीय पुलिस को धन्यवाद भी प्रधानमंत्री ने दिया है.
अब उस कारण को देखने का प्रयास करते हैं कि भारत और कनाडा के बीच इतनी खटास क्यों आ गई. कभी दोनों देशों के बीच आपसी संबंध घनिष्ठ थे, आज दोनों एक-दूसरे देश को दुश्मन देश घोषित कर रहे हैं. वैसे, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टुडू ने निझ्झर की हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता के आरोप लगाए थे, जिससे यह कूटनीतिक विवाद ने जन्म लिया, लेकिन भारत और कनाडा के बीच तनाव मुख्य रूप से सिख अलगाववादी, खालिस्तान आंदोलन और उसके सक्रिय समर्थकों पर मतभेदों के कारण बढ़ा है. ज्ञात हो कि कनाडा में लगभग 18 लाख भारतीय रह रहे हैं, जिसमें नौकरीपेशा और छात्र शामिल हैं. कनाडा-भारत संबंध, कनाडा और भारतीय गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंध है, जो कनाडा की सरकार के अनुसार लोकतंत्र के लिए आपसी प्रतिबद्धता, बहुलवाद और लोगों के बीच परस्पर संबंधों पर आधारित है .
ब्रैंपटन में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं पर विश्व के बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्षों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर में श्रद्धालुओं पर हुए हमलों का कड़ा विरोध किया है. खालिस्तान समर्थकों द्वारा की गई इस करतूत की निंदा करते हुए कहा कि कनाडा सरकार को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पीड़ितों को न्याय दिलाने के नाम पर धोखा दिया जा रहा है. वहीं, आचार्य सत्येंद्र दास श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी ने मांग की है कि हिन्दू श्रद्धालुओं पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी काईवाई होनी चाहिए. कनाडा के प्रधानमंत्री ने इसकी निंदा की है, लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा इस पर तुरन्त कार्रवाई होनी चाहिए. केंद्र सरकार को कनाडा पर दबाव बनाना चाहिए, ताकि वहां का प्रशासन दोषियों को पकड़े और सख्त कार्रवाई करे. ब्रैंपटन के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि हम शांतिपूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन का सम्मान करते हैं, लेकिन हिंसा और आपराधिक कृत्यों को बर्दाश्त नहीं करेंगे. हमलावरों को गिरफ्तार कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
वैसे भी भारत अपने पड़ोसी देशों से अलग-थलग होता जा रहा है, लेकिन कनाडा सरकार, जिससे हमारी प्रगाढ़ दोस्ती थी, उससे हमारे सम्बन्ध इस तरह बिगड़ जाएं कि दोनों एक-दूसरे देश को दुश्मन देश घोषित करने लग जाए, तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है? रही बात कनाडा सरकार की तो यहां देखने से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वह अपनी दादागीरी के बलबूते भारत को धौंस में लेना चाहता है. लेकिन, किसी भी तरह से अच्छा निर्णय कनाडा का नहीं हुआ है कि वह भारत को दुश्मन राष्ट्र कहने की हिम्मत करे. यह कौन सी बात हुई कि कनाडा में रहकर यदि भारत के खिलाफ साजिश करे, तो कोई देश कैसे बर्दाश्त कर सकेगा?
कनाडा यह प्रमाणित करने में किसी तरह सफल नहीं है कि किसी आतंकी संगठन से संबंध रखने वाले को कनाडा अपने यहां का नागरिक कहकर देश के उतने पुराने संबंधों से नाता तोड़ ले और यह कहकर भारत को बदनाम करे कि भारत ने उसके नागरिक की हत्या की है. किसी भी समस्या का समाधान मिल बैठकर ही किया जाता है. अब तक ऐसा ही होता रहा है, अन्यथा अमेरिका और वियतनाम की तरह, अथवा रूस यूक्रेन की तरह और न जाने कितने युद्ध वर्षों लड़े जाते रहे, लेकिन परिणाम शांति से बैठकर समझौता करने से ही होता रहा है, अन्यथा हजारों हजार आम आदमी युद्ध की बलिवेदी पर चढ़ा दिए जाते हैं. हासिल कुछ नहीं होता, इसलिए युद्ध और नरसंहार से अंत तक बचने का भरसक प्रयास करना ही पड़ेगा. संबंध-विच्छेद करना तो बिना किसी प्रयास के ही हो जाता है. अतः कनाडा सरकार को अपनी बातों पर विचार करने की जरूरत है.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,ये इनके निजी विचार हैं.