जीरा फूल सुगंधित धान की फसल उगाने वाले गांव के रूप में बन रही जोरी की पहचान
कहां है जोरी गांव
- – लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 100 किमी दक्षिण.
- – लातेहार के महुआडांड़ प्रखंज के रेगाईं पंचायत का गांव.
- – पहाड़ की तराई में बसा गांव, दोनों तरफ पहाड़ियों से घिरा गांव.
Pravin Kumar
Ranchi/ Latehar : ढाई दशक पूर्व तक जोरी गांव के 200 आदिवासी परिवारों के लिए आजीविका का एक मात्र साधन था, लकड़ी बेचना. गांव के लोग जंगल से लकड़ी काटते थे और महुआडाड़ में बेचते थे. इससे जो कमाई होती थी, उसी से घर का गुजारा चलता था. आज इस गांव की तस्वीर बदल चुकी है. खेत-खलिहान में अब जीरा फूल जैसे सुगंधित चावल की खेती हो रही है. रब्बी के सीजन में बड़े पैमाने पर छोटा मटर, मसूर और गेहूं उगाये जाते हैं. अब गांव के लोग लकड़ी के बजाय धान, मटर सहित अन्य अनाज बेचते हैं. गांव के युवक अजित लकड़ा बताते हैं कि सामान्य बारिश की स्थिति में दो लाख से अधिक का धान हर साल बेचते हैं. पिछले साल जब राज्य का अधिकांश हिस्सा सुखाड़ की चपेट में था, तब भी उन्होंने 27 हजार रुपये का धान बेचा था. इस बार बारिश ठीक है, धान की बंपर उपज होने की उम्मीद है.
काम के बदले अनाज से बना हर्रा और हगरी बांध
जोरी गांव की आर्थिक समृद्धि की असल कहानी गांव से करीब एक किलोमीटर पश्चिम में लेटो नदी में घाघरी नामक स्थान है. यहीं पर नदी की पानी को रोक कर नहर निर्माण किया गया. छलकु नगेसिया बताते हैं कि करीब तीन पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वजों सुखन बूढ़ा, भुखला बूढ़ा, चुटिया बूढ़ा, पौलूस मास्टर सरीखे लोगों ने काम के बदले अनाज योजना से हर्रा बांध और हगरी बांध का निर्माण किया था. आज यही दोनों बांध धान की खेत में तब्दील हो चुके हैं. उन दिनों बुजुर्गों ने अपने खुद के ज्ञान से उसी घाघरी के पास बड़े पत्थरों से लेटो नदी के पानी को डायवर्ट कर पहले हर्रा बांध तक पहुंचाया, फिर बाद में हगरी बांध में पानी को संग्रहित किया. बरसात में गांव के सभी पानी वाले जगहों में मछलियां मिलते थे. दोनों बांधों के अगल-बगल, लेटो नदी और गांव के आस-पास धान के खेतों का निर्माण किया गया.
कोविड के बाद गांव को अत्मनिर्भर बनाने में जुटे ग्रामीण
समय के साथ पूर्वजों द्वारा बनाया गया नहर मरम्मत के अभाव में टूट गया. इसी बीच वर्ष 2020 में कोविड 19 का कहर आया. शहरों व स्थानीय बाजारों की आर्थिक गतिविधियां ठप हो गयी. तब ग्रामीणों ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्त्ताओं से मनरेगा योजना को जाना-समझा. ग्राम सभा में जरूरी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर पास किया. सबसे पहले घाघरी से काठो पुल तक नहर का जीर्णोंद्धार किया गया. दो चरणों में प्रशासनिक स्वीकृति मिली. गांव के लोगों ने इस काम को ठेकेदार को करने नहीं दिया. मनरेगा योजना के तहत गांव के लोगों ने ही काम किया. गांव की महिला मनरेगा मेठ बसंती देवी ने ईमानदारी से काम कराया. नहर जीर्णोंद्धार का काम पूरा भी हो गया. वर्ष 2022 में घाघरी में एक अन्य सरकारी योजना से पक्का चेकडेम का निर्माण भी किया जा चुका है. नहर व चेकडैम के पानी से गांव के 500 एकड़ जमीन पर पानी पहुंच रहा है.
सरकारी योजना सही रूप में गांव में लागू होगा तो पलायन की जरुरत नहीं पड़ेगी
समाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज और अफसाना खातून बताते हैं कि अगर सरकारी योजना को सही रूप में गांव में लागू किया जाये तो गांव के लोगों को पलायन करने की जरुरत नहीं पड़ेगी. गांव के किसान समृद्ध होंगे. ग्रामीण सरकार से ये अपेक्षा करते हैं कि इस उपयोगी नहर का कई जगहों पर मिट्टी कटाव से टूट जाने की आशंका है. ऐसी जगहों की पहचान कर नहर का पक्कीकरण किया जाये. ताकि आने वाले सालों में भी खेतों को पानी मिलता रहे.
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