Ranchi: झारखंड विधानसभा का परिणाम इस बार भाजपा के लिए ठीक नहीं रहा. पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार सीटों की संख्या में कमी आई. इसकी एक प्रमुख वजह यह भी रही कि दूसरे दलों से आए नेताओं को तरजीह दी गई. राजनीतिक जानकारों की मानें तो बाहर के गैर आदिवासी चुनाव प्रभारियों ने यहां के लोकल लीडरशिप को किनारे रखा. वहीं प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी सीएम फेस के रूप में नजर नहीं आए.
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बड़े आदिवासी नेता अपने ही क्षेत्रों तक सिमटे रहे
भाजपा के बड़े आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन अपने ही क्षेत्रों तक सिमटे रहे. वहीं हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने पूरे प्रदेश में 100 से अधिक सभाएं की. दूसरा कारण यह भी रहा कि भाजपा ने ओबीसी समाज को साधने की कोशिश नहीं की. हालांकि पीएम में अपने भाषण के दौरान ओबीसी एकजुटता पर जोर दिया था.
टिकट बंटवारे में अंदरूनी विवाद
टिकट बंटवारे में अंदरूनी विवाद भी भाजपा की हार का कारण बना. बाहर से आए नेताओं को टिकट थमा दिया गया. लोबिन हेंब्रम, गीता कोड़ा, कमलेश सिंह जैसे कई एक नेताओं को चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल कराकर सिंबल दिया गया. इससे भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी उत्साह कम हो गया. वहीं उम्मीदवारों पर टॉप लीडर और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय का भी आभाव रहा.
योजनाओं में राशि का अंतर भी
मईंया सम्मान योजना और गोगो दीदी योजना की राशि में अंतर भी भाजपा की हार का कारण बना. मईंया सम्मान योजना के तहत दिसंबर से 2500 रुपए प्रति महीने देने की घोषणा की गई है. वहीं गोगो दीदी योजना के तहत प्रति महीना 2100 रुपए देने की घोषणा की गई थी. वहीं भाजपा द्वारा गौस सिलेंडर 500 रुपए में देने की घोषणा की गई थी. जबकि भाजपा शासित राज्यों में गैस सिलेंडर की कीमत में भी एकरूपता नहीं है. इसके अलावा बांग्लादेशी घुसपैठ और भ्रष्टाचार का मुद्दा भी बेअसर रहा.
वोट प्रतिशत भी घटा
भाजपा का वोट प्रतिशत भी घट गया. इस बार के चुनाव में भाजपा के हिस्से में 33.18 फीसदी वोट आए. जबकि 2019 के चुनाव में भाजपा को 33.37 फीसदी वोट मिले थे. जबकि 2014 के चुनाव में भाजपा को 31.26 फीसदी वोट मिले थे.
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