Hazaribagh: परम पूज्य चर्या शिरोमणि आचार्य गुरुवर 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य मुनि श्री 108 सुयश सागर जी महाराज एवं छुल्लक श्री 105 श्रेय सागर जी महाराज के सानिध्य में दस दिनों तक चलने वाले महापर्व दसलक्षण का दूसरा दिन उत्तम मार्दव धर्म पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. रविवार को उत्तम क्षमा पर्व दसलक्षण के पहले दिन कई स्रावकों ने एकदिवसीय उपवास किया और कई ने दस दिवसीय उपवास का व्रत धारण किया. दस दिनों के तप साधना से ओतप्रोत दस लक्षण महापर्व में सुबह से ही पूजा, आराधना, विधान आदि की धार्मिक क्रियाएं शहर के दोनों जैन मंदिरों में हो रहे हैं. साथ ही केसरिया लिबास में स्त्री और पुरुष वर्ग बड़े ही मनमोहक अंदाज में पूजन अभिषेक करते नजर आ रहे हैं. दिगंबर जैन भवन बड़ा बाजार में भी सामूहिक कलश, अभिषेक, शांति धारा और विधान के कार्यक्रम हो रहें हैं.
ग्वालियर से आए मुन्ना लाल जी पंडित जी और भोपाल से प्रदीप जी संगीतकार के युगल प्रयास से सभी श्रावक गण भक्ति रस में डूबे नजर आ रहे हैं. प्रात: 5.00 बजे से 5.45 बजे तक अग्नि ध्यान मुनि श्री के सानिध्य में हुआ. प्रात:5.45 से अभिषेक एवं शांति धारा बड़ा बाजार दिगंबर जैन भवन ऊपर तल्ले में तत्पश्चात प्रातः 6:30 से शांति धारा दिगंबर जैन मंदिर बडम बाजार में हुआ. प्रातः 7:15 से 9:00 तक दसलक्षण विधान एवं पूजन का कार्यक्रम हुआ. प्रातः 9:00 से 10:00 तक मुनि श्री का प्रवचन हुआ. उत्तम मार्दव के दिन मुनिश्री ने बताया कि आचार्य भगवंतो ने दसलक्षण पर्व के बारे में हमें समझाया है कि वस्तुत: धर्म दस नहीं है धर्म तो एक ही है. उसी में पूरी तन्मयता से क्षमा भी है. आर्जव भी है वहीं सत्य भी है, शौच भी है, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और एक धर्म ब्रह्मचर्य भी उसी में है. किसी गुस्से वाले व्यक्ति को क्षमा से समझाया जा सकता है, वहीं अगर कोई अहंकारी हो तो उसे मार्दव से समझाया जा सकता है.
धर्म हमारी आत्मा का ही स्वभाव हैः मुनि श्री
कोई मायाचारी है तो उसे आर्जव से समझाया जा सकता है. ये सारे गुण हमारे आत्मा में ही पाए जाते हैं. हमें बाहर कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है. मुनि श्री ने आगे कहा कि जिसे तुम अपना मान रहे हो वह भी तुम्हारा नहीं है. जितना भी ज्ञान तुमने आज तक अर्जित किया है वो वस्तुत: तुम्हारा है ही नहीं. ना अकूत संपत्ति तुम्हारी है, ना सुंदर शरीर तुम्हारा है, ना वैभव तुम्हारा है, सब नश्वर है. इसलिए तुम्हें घमंड किस बात का है, मान किस चीज का है. मुनि श्री ने बताया की हमें केवल इतना समझना है कि धर्म हमारी आत्मा का ही स्वभाव है. बड़े आश्चर्य की बात है कि हम धर्म से तन्मय होते हुए भी क्रोधमय हो जाते हैं मानमय हो जाते हैं. मुनिश्री के प्रवचन के पश्चात 10:00 बजे से मुनि श्री की आहारचर्या का कार्यक्रम हुआ. दोपहर में मुनि श्री के सानिध्य में धार्मिक कक्षाएं कर लोगों ने धार्मिक ज्ञान अर्जित किया. शाम 6:15 बजे से 7:30 मंगलाचरण, प्रतिक्रमण, णमोकार चालीसा एवं ध्यान का कार्यक्रम हुआ. मंगलाचरण राजेश रचना लुहाड़िया द्वारा किया गया. शाम 7:30 से 8:15 तक महाआरती हुई.
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