Praveen Kumar
Ranchi/Khunti : खूंटी लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं का मिजाज बदला हुआ नजर आ रहा है. युवाओं में चुनाव को लेकर पहले की तरह उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है. इनकी शिकायत चुनाव लड़ रहे जनप्रतिनिधियों से है. जो चुनाव के समय नजर तो आते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद लोगों को उनको खोजना पड़ता है. राजनीतिक में रुचि रखने वाले युवा कहते हैं कि मुख्य मुकाबला केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और कालीचरण मुंडा के बीच है. लेकिन कुछ स्थानों पर दूसरे उम्मीदवार भी इनका खेल बिगाड़ सकते हैं.
सिलादोन, तिलमा, तारूप, सायको के इलाके में शुभम संदेश ने युवाओं से बात की. युवा अर्जुन मुंडा के बारे में कहते हैं कि केंद्रीय मंत्री रहते हुए आदिवासी हितों के लिए उन्होंने कुछ खास नहीं किया, जो याद किया जा सके. खूंटी की पहचान अफीम की खेती के रूप में बनती जा रही है. लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं. वहीं कालीचरण मुंडा को लेकर युवाओं का कहना है कि वह जल, जंगल और जमीन की लड़ाई से दूर रहते हैं. डीलिस्टिंग आंदोलन के समय भी उनकी सक्रियता नहीं दिखी. कालीचरण मुंडा का भाई भाजपा में 25 सालों से विधायक है. नीलकंठ सिंह मुंडा के विधायक रहते ही खूंटी में अफीम की खेती शुरू हुई, ऐसे में कालीचरण सिंह मुंडा इलाके का कितना विकास करेंगे, इसमें संदेह है.
मारंगहादा बाजार में मिले एक राम सहाय मुंडा कहते हैं कि खूंटी के लोगों के सामने एक ओर गहरी सुरंग है, तो दूसरी ओर खाई है. चुनाव कोई भी जीते, लेकिन खूंटी की जनता की हार होगी. ग्रामीण मतदाता चुनाव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है. इन सब स्थितियों के बीच मतदान के बाद ही पता चलेगा कि यह चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है.
रोजगार-शिक्षा के साथ-साथ जल-जंगल-जमीन का मुद्दा अहम
खूंटी लोकसभा में आज भी जल, जंगल, जमीन के साथ-साथ भाषा-संस्कृति मुद्दे को लेकर भी आंदोलन होते रहे हैं. चुनाव में सीएनटी एक्ट, पेसा कानून, वन अधिकार कानून, पारंपरिक शासन व्यवस्था के साथ-साथ रोजगार, शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दे पर ग्रामीण के युवा चर्चा कर रहे हैं.
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