Lagatar Desk
Ranchi : वफ्फ संशोधन बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हो गया. इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई. बहस के दौरान जो बातें आयीं, उससे लगता है कि केंद्र सरकार फंस सी गई है. सुनवाई के पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में जो हुआ, उसकी 8 बड़ी बातें व बहस को समझें.
- वक्फ अधिनियम 1995 में किए गए संशोधन को लेकर ऐतिहासिक बहस के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल किए और यह साफ कर दिया कि अगर वक्फ बाय यूजर (Waqf by user) को खत्म किया गया, तो यह एक गंभीर संवैधानिक संकट को जन्म देगा.
CJI संजीव खन्ना के तीखे सवाल – जब कोई संपत्ति अल्लाह को समर्पित की गई हो, तो आप रजिस्ट्रेशन का कागज कैसे मांग सकते हैं? मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या सरकार चाहती है कि 14वीं या 15वीं सदी की मस्जिदें अब अपने रजिस्ट्रेशन का सबूत दें? उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कोई संपत्ति सदियों से नमाज़, कब्रिस्तान या धार्मिक उपयोग में है, तो अब यह कैसे साबित किया जाए कि वह वक्फ है?
CJI ने केंद्र सरकार से पूछा – अगर कोई संपत्ति वक्फ बाय यूज़र के तहत इस्तेमाल हो रही है, लेकिन वह रजिस्टर्ड नहीं है, तो क्या अब वो वक्फ नहीं मानी जाएगी? सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी वक्फ संपत्ति बिना रजिस्ट्रेशन के नहीं मानी जा सकती, लेकिन CJI ने स्पष्ट किया कि इतिहास को दोबारा नहीं लिखा जा सकता और सरकार कोई अदालती डिक्री नहीं दे सकती.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने चेतावनी देते हुए कहा – अगर आप वक्फ बाय यूजर को खत्म कर रहे हैं, तो यह बहुत ही गंभीर समस्या है. यह सीधे-सीधे समाज के उस हिस्से को प्रभावित करेगा जो पहले से ही हाशिए पर है. उन्होंने यह भी कहा कि कानून में संशोधन करके अदालत के अधिकारों को कम नहीं किया जा सकता. कोई भी कानून यह नहीं कह सकता कि अदालत का फैसला अमान्य होगा.
केंद्र सरकार का पक्ष – सरकार ने दावा किया कि संशोधन समावेशी (inclusive) है और JPC की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है. बताया गया कि देशभर से 98 लाख से ज्यादा ज्ञापन और सुझाव प्राप्त हुए थे. सरकार ने यह भी कहा कि कई मुसलमान वक्फ की बजाय ट्रस्ट बनाना पसंद करते हैं, इसलिए बदलाव लाया गया.
लेकिन चीफ जस्टिस ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि आप इतिहास को फिर से नहीं लिख सकते. वक्फ की परंपरा और इसकी उपयोगिता को एक प्रशासनिक आदेश से नहीं मिटाया जा सकता.
- सुप्रीम कोर्ट वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता की जांच करेगा और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर केंद्र से मांगा जवाब मांगा है.
CJI संजीव खन्ना और तुषार मेहता के बीच बहस
आप जजों से कैसे तुलना कर रहे हैं? हम फैसले की बात नहीं कर रहे हैं, हम अपना धर्म खो देते हैं. हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं, हमारे लिए एक या दूसरा पक्ष एक जैसा है. अगर हम धार्मिक मुद्दे से निपट रहे हैं, तो मुद्दे उठेंगे. मान लीजिए हिंदू मंदिर में, गवर्निंग काउंसिल में सभी हिंदू हैं, आप जजों से कैसे तुलना कर रहे हैं?
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा- मिस्टर मेहता, क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे? खुलकर कहिए !
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, अगर कोई सरकारी प्रॉपर्टी वक्फ बाय यूजर है तो उस स्थिति में क्या होगा?
सोलिसिटर जेनरल तुषार मेहता ने कहा, उसमें कलेक्टर उसकी जांच करेगा और पता चलता है कि वो सरकारी संपति है तो रेवेन्यू अवॉर्ड में उसे करेक्ट किया जाएगा, अगर किसी को कलेक्टर के फैसले से समस्या है तो वो ट्रिब्यूनल में जा सकता है.
फिर सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से कहा- जमीन वक्फ की है या नहीं ये कलेक्टर क्यों तय करे? ये अदालत पर क्यों नहीं छोड़ा जाता? क्या कलेक्टर को ये अधिकार देना उचित है? वक्फ संपत्ति है या नहीं? अदालत को निर्णय लेने की अनुमति क्यों नहीं दी जाती?
इस पर तुषार मेहता ने कहा– मैं कोर्ट की मदद कर रहा हूं फैसलों के जरिए… अभी तक वक्फ बोर्ड का कार्यकाल तय नहीं हुआ है. और इस मामले में सारे लोग जनहित याचिकाकर्ता हैं. कोर्ट के सामने न कोई वक्फ बोर्ड है, न वक्फ.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा – क तरफ आप कह रहे हैं कि बोर्ड का कार्यकाल खत्म होने वाला है और दूसरी तरफ ये कह रहे हैं कि कोई बोर्ड है ही नहीं… (इसपर) नोटिस जारी करें.
तुषार मेहता – बस एक मिनट दीजिए, मैं एक मिसाल दिखाता हूं… तमिलनाडु के केस में कोर्ट ने कहा था कि पुजारी किसी भी धर्म के हो सकते हैं क्योंकि ये सिर्फ संपत्ति के प्रबंधन (administration) की बात है.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा – वक्फ बोर्ड का CEO मुसलमान ही होना चाहिए.
सोलिसिटर जेनरल तुषार मेहता – माईलॉर्ड्स, क्या आप हमें कल सुन सकते हैं?
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना – हम सब इस मामले को लेकर चिंतित हैं, कोई हल जरूर निकालेंगे.
सोलिसिटर जेनरल तुषार मेहता – माईलॉर्ड्स, कृपया कल हमारी बात जरूर सुनिए.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना – देखिए, नियम के हिसाब से कोर्ट आमतौर पर अंतरिम आदेश (interim order) नहीं देता, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो. लेकिन हमारी चिंता ये है कि अगर किसी यूजर द्वारा घोषित वक्फ को डिनोटिफाई (रद्द) कर दिया गया, तो बहुत गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
अंतरिम आदेश पर क्या हुआ
जो संपत्तियां वक्फ घोषित की गई हैं- चाहे यूजर के आधार पर या कोर्ट के फैसले से, उन्हें डिनोटिफाई (वक्फ से हटाया) नहीं किया जाएगा. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने बीच में कहा कि ‘माय लॉर्ड्स, जो रजिस्टर्ड हैं…’ तो CJI ने टोकते हुए कहा- मेरे मुंह में शब्द मत डालिए.
कलेक्टर अपनी जांच की प्रक्रिया जारी रख सकता है, लेकिन जो संशोधन का ‘प्रोविज़ो’ है (यानि वो हिस्सा जो वक्फ को हटाने की अनुमति देता है), उसे फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा.
वक्फ बोर्ड में जो एक्स-ऑफिसियो (पद के आधार पर सदस्य बनते हैं) सदस्य होते हैं, वो किसी भी धर्म के हो सकते हैं. लेकिन बाकी सभी सदस्य मुस्लिम ही होने चाहिए.
टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से साफ है कि वक्फ बाय यूज़र को हटाना सिर्फ एक संशोधन नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर सीधा हमला है. मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें, जिनका अस्तित्व और उपयोग सदियों से हो रहा है, क्या वे अब सिर्फ इसलिए अवैध हो जाएंगी क्योंकि उनके पास कोई सरकारी रजिस्ट्रेशन नहीं है?
यह मामला सिर्फ मुसलमानों का नहीं, भारत के संविधान और न्याय व्यवस्था का भी है. क्या सरकार कानून बनाकर इतिहास को मिटा सकती है? क्या कार्यपालिका (Executive) अदालत का स्थान ले सकती है?
डिस्क्लेमरः यह स्टोरी मो शादाब खान के सोशल मीडिया एकाउंट पर उल्लेखित तथ्यों से तैयार किया गया है.