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बाबूलाल को जब भाजपा कार्यकर्ता ही नेता नहीं मानते, तो सत्ता पक्ष क्यों मानेगा

Anand Kumar झारखंड में भाजपा के नेता- कार्यकर्ता असमंजस में हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि पार्टी में चल क्या रहा है. निजी बातचीत में नेताओं-कार्यकर्ताओं का दुख छलक ही आता है. पार्टी के एक सीनियर नेता कहते हैं कि अजीब ही स्थिति है. पार्टी में जिस नेता की सर्वमान्यता सर्वाधिक है, उसे राज्य की राजनीति से बाहर कर दिया गया है. जिस आदमी को कोई अपनाने को तैयार नहीं है, उसे जबरन नेता मानने को कहा जा रहा है और जिन पर पार्टी चलाने की जिम्मेदारी है, वे निजी गुट चला रहे हैं. पार्टी के अंदर हेमंत सरकार गिराओ और अपनी सरकार बनाओ अभियान चल रहा है. मगर सरकार गिराने की क्षमता भी तो होनी चाहिए. ये लोग सारी उम्मीद केंद्रीय नेतृत्व से लगाकर बैठे हैं. पार्टी  के एक सीनियर लीडर कहते हैं, पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के एक उम्मीदवार को लोग चुनाव हरवाने के लिए थैलियां खोल कर बैठे थे. इसका सबूत भी मिला, लेकिन कार्रवाई तो दूर की बात है, शोकॉज भी नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि रघुवर दास, नीलकंठ मुंडा जैसे सीनियर लोगों ने पार्टी विरोधी काम किये, लेकिन यही लोग नेता बने बैठे हैं. बाबूलाल मरांडी को लेकर झारखंड की सियासत गर्म है. सत्ता पक्ष उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने को तैयार नहीं. दसवीं अनुसूची में दल-बदल मामले को लेकर स्पीकर ने उन्हें नोटिस जारी कर दिया है. और हाइकोर्ट से राहत पाने की उनकी कोशिशें भी नाकाम हो चुकी हैं. पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं कि जिस आदमी को भाजपाई ही अपना नेता नहीं मानते, उसे सत्ता पक्ष क्यों मान्यता देगा. उन्होंने कहा कि पार्टी में आने के बाद बाबूलाल भाजपा में अपना अलग ही संगठन चला रहे हैं. जो लोग उनके साथ भाजपा छोड़ कर गये थे. उनके आने के बाद वही लोग हावी हो गये हैं. समर्पित कार्यकर्ताओं को कोई पूछनेवाला नहीं है. उक्त सीनियर नेता के पास संगठन की एक अहम जिम्मेदारी है. उनका कहना है कि आज तक बाबूलाल जी ने उन्हें एक बार फोन कर हालचाल नहीं पूछा. कुछ अन्य नेताओं की भी यही पीड़ा है. उनका कहना है कि संगठन और पार्टी में बाबूलाल जी की कोई दिलचस्पी नहीं दिख रही है. वे सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस करने और बयान देने तक ही सीमित हैं. नेताओं के अनुसार, यही हाल प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का है. उनका कहना है कि दीपक जी अध्यक्ष बन गये. सांसद भी बन गये. उनका काम हो गया. अब सरकार बने न बने, पार्टी चले न चले, उन्हें इसकी ज्यादा चिंता नहीं है. उन्होंने दो महामंत्री बना दिये हैं. यही दो लोग संगठन का कामकाज देख रहे हैं. दीपक जी बेफिक्र हैं. नाराजगी संगठन महामंत्री धर्मपाल से भी है. उनका कहना है कि धर्मपाल जी दस बार फोन करने पर फोन उठा लें तो गनीमत है. उनका भी एक अलग ग्रुप है. उन्हें पार्टी से ज्यादा अपने ग्रुप के लोगों के हित की ही चिंता रहती है. अगर दीपक प्रकाश का ‘ए’ ग्रुप है, तो धर्मपाल का ‘बी’ ग्रुप. ये लोग अपने ग्रुप के साथ ही बैठते, बात करते, हंसते और बोलते हैं. उक्त नेता के अनुसार रघुवर दास को बाबूलाल मरांडी फूटी आंख नहीं सुहा रहे. वे बाबूलाल को एक क्षण भी बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं. लेकिन पार्टी ने थोप दिया है, सो मजबूरी में झेल रहे हैं. एक नेता ने कहा कि पार्टी के अंदर हेमंत सरकार गिराओ और अपनी सरकार बनाओ अभियान चल रहा है. कैसे गिरायेंगे हेमंत सरकार. सरकार गिराने की क्षमता भी तो हो. इन्हीं रघुवर दास ने बाबूलाल के छह विधायक तोड़ कर पूर्ण बहुमत की सरकार चलायी और पांच साल बाद जनता ने अपना फैसला सुनाया. हेमंत भी पांच साल सरकार चलायेंगे और बाबूलाल ज्यादा तेज बनेंगे, तो दल-बदल में उनका काम तमाम कर देंगे. यह राह रघुवर दास ने ही दिखाई है. अब हेमंत भी उसी रास्ते पर चलें, तो उन्हें गलत कैसे कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि बाबूलाल जब हमलोगों को अपना नहीं मानते, तो हम उन्हें कैसे नेता मान लें. उन्होंने कहा कि पार्टी के अंदर बाबूलाल को दुमका उपचुनाव लड़ाने पर चर्चा हुई थी. कहा गया कि यदि वे जीत जाते हैं, तो यह मामला ही खत्म हो जायेगा, लेकिन वे इसके लिए भी राजी नहीं हुए. अब दिक्कत यह है कि पार्टी किसी दूसरे को नेता प्रतिपक्ष बनाना भी नहीं चाहती. मामला फंस गया है. नेताओं का कहना है कि पार्टी की स्थिति सुधारनी है, तो अब केंद्रीय नेतृत्व को ही हस्तक्षेप करना पड़ेगा. और नेतृत्व पश्चिम बंगाल के चुनाव तक व्यस्त है.

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